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चुनाव आयोग अब निष्पक्ष रह पायेगा क्या

लोकसभा ने गुरुवार को मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 पारित कर दिया। विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर 10 अगस्त को राज्यसभा में यह विधेयक पेश किया था।

सुप्रीम कोर्ट के 2 मार्च, 2023 के फैसले में कहा गया था कि जब तक केंद्र सरकार भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) में नियुक्तियों पर कानून नहीं लाती है, तब तक नियुक्तियां पीएम, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) और लोकसभा में विपक्ष के नेता वाली एक समिति की सलाह पर की जानी चाहिए।

इसके बाद उच्च सदन ने 12 दिसंबर को विधेयक पारित कर दिया। नतीजतन, इसे आज लोकसभा में पेश किया गया। उल्लेखनीय है कि 11 दिसंबर को सरकार ने विधेयक में कुछ संशोधनों का प्रस्ताव किया था। कुछ इसी तरह दिल्ली के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार नये कानून के तहत वहां की चुनी हुई सरकार को शक्तिहीन करने का नियम लागू कर चुकी है।

वैसे चुनाव आयोग संबंधी मूल विधेयक में कहा गया था कि खोज समिति में कैबिनेट सचिव और दो सदस्य शामिल होंगे जो भारत सरकार के सचिव के पद से नीचे के नहीं होंगे। प्रस्तावित संशोधन में कैबिनेट सचिव के स्थान पर कानून और न्याय मंत्री शब्द का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा, संशोधन में प्रस्ताव किया गया है कि सीईसी और ईसी के भत्ते और सेवा शर्तें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के समान होंगी।

इसने यह भी सुझाव दिया है कि सीईसी को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को हटाने जैसी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, इसमें कहा गया है कि सीईसी की सिफारिश के बिना ईसी को कार्यालय से नहीं हटाया जा सकता है। इसके अलावा, विधेयक में एक नया प्रस्तावित खंड 15 ए कहता है कि कोई भी अदालत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सिविल या आपराधिक कार्यवाही पर विचार नहीं कर सकती है, जो अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में उनके द्वारा किए गए, किए गए या बोले गए किसी भी कार्य, चीज या शब्द के लिए सीईसी या ईसी है या था।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा था कि बिल भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से खतरे में डाल सकता है। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा था कि यदि विधेयक कानून बन जाता है तो मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में अंतिम फैसला कार्यपालिका का होगा, जिससे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव प्रभावित होंगे।

उन्होंने कहा था, अगर आप मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों को इस तरह नियुक्त कराने जा रहे हैं तो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कोरी कल्पना बन जाएंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में कार्यपालिका के अत्यधिक हस्तक्षेप के बारे में चिंताओं का जवाब देते हुए, अर्जुन राम मेघवाल ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 50 में निहित शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का हवाला दिया और कहा कि सीईसी और ईसी का मूल्यांकन एक कार्यकारी कार्य था।

यह समझना होगा कि भारत में चुनाव आयोग एक स्वतंत्र और स्वतंत्र संघ है जिसका उद्देश्य निरपेक्ष और स्वतंत्र चुनाव आयोजन करना है। यह चुनावी प्रक्रिया को सुरक्षित, विश्वसनीय, और सामान्य जनता के लिए न्यायपूर्ण बनाए रखने के लिए काम करता है। चुनाव आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में है और यह तीन सदस्यों से मिलकर बनता है, जिन्हें चुनाव आयोग के आयुक्त कहा जाता है।

चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए अधिकारियों को भी नियुक्त कर सकता है।सुप्रीम कोर्ट भारत का सर्वोच्च न्यायिक संस्थान है। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय संविधान की रक्षा करना और न्यायिक प्रणाली को संचालित करना है। सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के सर्वोच्च न्यायिक होता है और वह भारत के न्यायिक प्रणाली को नेतृत्व करता है।

मुख्य न्यायाधीश का कार्यक्षेत्र सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक कार्यप्रणाली को संचालित करने में शामिल है, और उन्हें भारतीय संविधान की रक्षा करने और न्यायिक विधियों की सही तरीके से लागू करने का जिम्मा होता है। इस संशोधन के चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति केंद्र सरकार की मर्जी पर निर्भर हो चुकी है।

इससे पहले कई मुद्दों पर सरकार द्वारा सुझाये गये नामों पर मुख्य न्यायाधीश की आपत्ति की वजह से सरकार अपनी पसंद के अधिकारियों को कुछ बड़ी संस्थानों में बहाल नहीं कर पायी थी। इसलिए अब इस कानून का लाभ उठाते हुए सरकार पूरे आयोग को मुट्ठी में करने जा रही है, यह लगभग स्पष्ट हो चुका है।

वर्तमान चुनाव आयोग भी कई गंभीर विषयों पर यह दर्शा चुका है कि वह वर्तमान सरकार की पक्षधर है। दूसरी तरफ चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में भी सरकार की सोच सामने आ चुकी है। अब चुनाव आयोग की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह खुद को निष्पक्ष साबित करे। वैसे वर्तमान हालात में इसकी बहुत कम उम्मीद है।

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