इशारों इशारों में बात नहीं चल रही है बल्कि युद्ध हो रहा है। पहली बार सरकार जिस सोशल
मीडिया के सहारे अपनी बातों को प्रसारित किया करती थी, वही सोशल मीडिया उन्हें
नागवार लगने लगा है। दरअसल इसी बात हर कोई इशारों इशारों में एक दूसरे पर तंज
कस रहा है। लेकिन राहुल का तंज कि हम दो हमारे दो भाजपा पर लगता है बहुत तीखा
वार कर गया है। राहुल गांधी को पप्पू बताने वाली भाजपा पहली बार पप्पू के बोल से
परेशान और हैरान है। उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया फिर भी सारे लोग इस बात के
मर्म को अच्छी तरह समझ गये। इसी वजह से भाजपा के कई नेताओं की तरफ से फिर से
इसकी काट के बयान जारी कर दिये गये। लेकिन इशारों इशारों में किसान आंदोलन भी
अब सरकार को बहुत कुछ कह रहा है। लेकिन असली सवाल यह खड़ा हो रहा है कि इशारो
इशारों के इस ट्विटर युद्ध के नाम पर क्या भाजपा के अंदर भी किसी को निपटाने की
तैयारी हो रही है। दरअसल यह सवाल इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव
आने वाले हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाजपा के अंदर हाल के दिनों
में एक कद्दावर नेता बनकर उभरे हैं। पिछली बार जब मुख्यमंत्री का चयन हो रहा था तो
मनोज सिन्हा का नाम सामने आने के तुरंत बाद योगी के तेवर बदले तो भाजपा नेतृत्व भी
पीछे हट गया था। इसलिए इशारों इशारों में इस बात को समझने की कोशिश अब होनी
चाहिए कि क्या किसानों से सीधा पंगा लेकर उत्तर प्रदेश में योगी को भी निपटाने की
तैयारी है। भारतीय राजनीति भी कोई गुल्ली डंडा का खेल नहीं है।
इस खेल में चोट कहीं होता है तो असली चोट कहीं और लगती है
यह तो टेबल पर खेले जाने वाले कैरमबोर्ड अथवा बिलियर्ड जैसा पेचिदा खेल है, जिसमें
स्ट्राइक किसी गोटी पर होती है लेकिन लक्ष्य पर कोई और गोटी पहुंचती है। किसानों के
इस हद तक नाराज करने का असर उत्तर प्रदेश में क्या होगा, इसे समझना कोई रॉकेट
साइंस नहीं है। इसी वजह से फिर से एक पुरानी हिंदी फिल्म का रोमांटिक गीत याद आने
लगा है। अपने जमाने की सुपरहिट फिल्म कश्मीर की कली के लिए इस गीत को लिखा था
एसएच बिहारी ने और उसे संगीत में ढाला था ओपी नय्यर ने। इस गीत को आशा भोंसले
और मोहम्मद रफी ने अपना स्वर देकर गीत के शब्दों को वाकई जीवंत कर दिया था। गीत
के बोल कुछ इस तरह हैं।
इशारों इशारों में दिल लेने वाले, बता ये हुनर तूने सीखा कहाँ से
निगाहों निगाहों में जादू चलाना, मेरी जान सीखा है तुमने जहाँ से
मेरे दिल को तुम भा गए मेरी क्या थी इस में खता
मेरे दिल को तड़पा दिया यही थी वो ज़ालिम अदा, यही थी वो ज़ालिम अदा
ये राँझा की बातें, ये मजनू के किस्से अलग तो नहीं हैं मेरी दास्तां से
मुहब्बत जो करते हैं वो मुहब्बत जताते नहीं
धड़कने अपने दिल की कभी किसी को सुनाते नहीं, किसी को सुनाते नहीं
मज़ा क्या रहा जब की खुद कर लिया हो मुहब्बत का इज़हार
अपनी ज़ुबां से माना की जान-ए-जहाँ लाखों में तुम एक हो
हमारी निगाहों की भी कुछ तो मगर दाद दो, कुछ तो मगर दाद दो
बहारों को भी नाज़ जिस फूल पर था वही फूल हमने चुना गुलसितां से।
तो भइया किस गुलसितां से कौन सा फूल चुना जा रहा है, यह देखकर नहीं समझा जा
सकता है।
इशारों को समझना अब तो सरकार के लिए जरूरी है
हो सकता है कि इस बहाने भाजपा के शीर्ष स्तर पर भी काफी कुछ उलटफेर हो जाए
क्योंकि किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी का चुनावी राजनीति पर क्या प्रभाव पड़
सकता है, यह कोई बच्चा भी समझ सकता है। अब वहां से निकलकर पश्चिम बंगाल
चलते हैं जहां ममता दीदी लगातार अपने सहयोगियों के भाग जाने से परेशान है। लेकिन
जो लोग उन्हें छोड़कर जा रहे हैं, उनमें से कितनों का निजी जनाधार है, यह भी देखने
लायक बात है। ममता बनर्जी का हाथ उनकी पीठ पर नहीं होता तो इसमें से अनेक तो वार्ड
पार्षद नहीं बन सकते थे। मुकुल राय जब तृणमूल छोड़कर भाजपा में शामिल हुए, उसी
समय से इस बात की प्रतीक्षा थी कि इस पार्टी में भगदड़ चुनाव के पूर्व ही होगी। यह
आकलन भी सही साबित हो रहा है। अब झारखंड की बात कर लें तो मधुपुर का उपचुनाव
भी हेमंत सोरेन के लिए फिर से अग्निपरीक्षा की घड़ी है। दरअसल यह पेंच हाजी हुसैन
अंसारी के पुत्र को मंत्री बनाये जाने के बाद भी फंसा हुआ है। राजद लगातार दावा कर रही
है कि वह वहां अपना प्रत्याशी खड़ा करेगी। अगले छह महीने के भीतर उन्हें मंत्री बने रहने
के लिए चुनाव जीतना है। ऐसे में उन्हें पराजित करने की सोच रखने वालों की भी कोई
कमी नहीं होगी।
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