ये क्या हुआ और क्या होने जा रहा है। अइसा तो ग्रासरूट वाले जान रहे थे लेकिन अब
रिजल्ट आउट हो गया है तो ऊपर वाले भी जान गये होंगे। जी हां मैं पंजाब के स्थानीय
निकायों के चुनाव परिणामों की बात कर रहा हूं। दिल्ली की सीमा पर बैठे किसानों के
आंदोलन को नजरअंदाज करने वाली केंद्र सरकार को कम लेकिन उत्तर प्रदेश के भाजपा
नेताओं को इसकी अब ज्यादा चिंता सताने लगी है। अगले दो महीनो में पंचायत चुनाव
होने वाले हैं, अगर उसमें भी गाड़ी पटरी से उतर गयी तो यकीन मानिये योगी जी के
दोबारा उत्तर प्रदेश फतह करने का सपना, सपना ही रह जाएगा। लेकिन कंफ्यूजन इस
बात को लेकर भी है कि कहीं मोटा भाई असल में योगी जी को ही निपटाना तो नहीं चाह
रहे हैं। आपलोग भी शायद नहीं भूले होंगे कि जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत हुई थी
तो मनोज सिन्हा का नाम सबसे ऊपर आया था। मंदिरों में उन्हें पूजा करते हुए दिखाया
जा रहा था और कहा जा रहा था कि मनोज सिन्हा ही उत्तर प्रदेश के अगले सीएम बनने
जा रहे हैं। इस बीच गुस्से से तमतमाया हुआ योगी जी का चेहरा भी दिखा था। अंदरखाने
में पता नहीं क्या बात हुई कि योगी जी को सीएम बनाने का एलान कर दिया गया।
कई कारणों से दूसरे किस्म का संदेह भी हो रहा है
इसलिए शंका हो रही है कि कहीं मोटा भाई योगी जी को निपटाकर अपनी पसंद के किसी
को फिर से यहां आगे बढ़ाना तो नहीं चाह रहे हैं। राजनीति में अइसा तो होता ही रहता है।
जब जिसकी चल गयी, उसके अपने से ज्यादा ताकतवर को निपटा ही दिया। सिंपल ही
बात है कि अगर भाजपा के लोकप्रिय नेताओं में अमित शाह को नंबर मिले तो यह तय है
कि वह पहले नंबर के नेता तो नहीं हैं। सीनियरिटी में नीतीश गडकरी और राजनाथ सिंह
के बाद अगर सबसे तेवरदार नेता कोई है तो वह हैं योगी आदित्यनाथ। इसी लिए
कंफ्यूजन है कि आखिर भाजपा के अंदरखाने में चल क्या रहा है।
इसी बात पर एक पुरानी हिंदी फिल्म की गीत फिर से याद आ रहा है। इस फिल्म का नाम
था अमर प्रेम, इस गीत को लिखा था आनंद बक्षी ने और संगीत में ढाला था राहुल देव
वर्मन ने। आम तौर पर चुहल और तेज गति के गीत गाने वाले किशोर कुमार ने अपने धीर
गंभीर आवाज में इस गीत में चार चांद लगा दिये थे। गीत के बोल इस तरह हैं।
ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ
अब क्या सुनाएं?
(ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ,
क्यूँ हुआ, जब हुआ, तब हुआ )
(ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ,
क्यूँ हुआ, जब हुआ, तब हुआ )
ओ छोड़ो, ये ना सोचो, ये क्या हुआ…
हम क्यूँ, शिकवा करें झूठा, क्या हुआ जो दिल टूटा
हम क्यूँ, शिकवा करें झूठा, क्या हुआ जो दिल टूटा
शीशे का खिलौना था, कुछ ना कुछ तो होना था, हुआ
ये क्या हुआ…
ऐ दिल, चल पीकर झूमें, इन्हीं गलियों में घूमें
ऐ दिल, चल पीकर झूमें, इन्हीं गलियों में घूमें
यहाँ तुझे खोना था, बदनाम होना था, हुआ
ये क्या हुआ…
हमने जो, देखा था सुना था, क्या बताऐं वो क्या था
हमने जो, देखा था सुना था, क्या बताऐं वो क्या था
सपना सलोना था, खत्म तो होना था, हुआ
ये क्या हुआ…
खैर गीत की बात छोड़िये लेकिन हरियाणा में भी अपने खट्टर साहब की हालत खटारा होती
जा रही है। सहयोगी दल किसानों का विरोध कर कितने दिनों तक उनका साथ देंगे, यह
कहना मुश्किन है। इशारों इशारों में खुद खट्टर के सहयोगियों ने कई बार इसकी बात कह
दी है। आखिर पार्टी- पॉलिटिक्स में हैं तो चुनाव जीतना अंतिम लक्ष्य तो होता ही है। अब
अगर वोट बैंक ही खिसक गया तो पॉलिटिक्स किसके सहारे करेंगे।
पश्चिम बंगाल की चुनावी फिल्म एक्शन से भरी पड़ी है
अलबत्ता पश्चिम बंगाल के चुनावी पर्दे पर एक्शन से भरपूर फिल्म चल रही है। पार्टी के
राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं होने के बाद भी इस मोर्चे पर खुद अमित शाह ही सबसे आगे हैं।
उनकी कोशिश है कि इस बार जैसे भी हो ममता दीदी को निपटा ही दिया जाए। लेकिन
ममता दीदी भी सौ जिद्दी की एक जिद्दी है। शहरी इलाकों में ममता के खिलाफ जयश्री राम
के नारे भले ही लग रहे हैं, ग्रामीण बंगाल ममता दीदी द्वारा पिछले पांच वर्षों में गरीबों के
लिए किये गये कार्यों का याद रखे हुए हैं। अपने रांची में सरस्वती पूजा के लिए प्रतिमा
बनाने वाले जितने भी कारीगर पश्चिम बंगाल से आये थे, सभी ने साफ कर दिया कि वे
जयश्री राम का नारा तो लगायेंगे लेकिन अंत में वोट तो ममता दीदी को ही देंगे। इसलिए
किसान आंदोलन को नजरअंदाज कर बंगाल के चुनाव पर फोकस करने वालों को अंत में
फिर से यह नही कहना पड़ जाए कि आखिर ये क्या हुआ।
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