फसलों पर कीटों का प्रभाव एक सामान्य प्रक्रिया है। फिर भी पूर्वोत्तर में जिस तरीके से
अचानक चीन के गुबरैले फैल रहे हैं, उससे वैज्ञानिकों का दिमाग ठनका है। वे मानते हैं कि
यह भी परोक्ष किस्म के जैविक आक्रमण का हिस्सा हो सकता है। इसके जरिए फसल को
चौपट करने की नई साजिश भी रची जा सकती है। वैसे अब तक यह सिर्फ संदेह है और इस
विषय पर वैज्ञानिक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं। कोरोना वायरस का प्रकोप जारी
रहने के दौरान ही कई राज्यों में बर्ड फ्लू फैलना वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों के बदलते रूप
को बयां करता है। दुनिया कोविड के पहले से भी कई बीमारियों से जूझ रही थी। इन
बीमारियों में दिखने वाली अहम प्रवृत्ति पशुओं एवं पक्षियों से इंसानों को होने वाले
संक्रमण में तीव्र वृद्धि की है। तकनीकी तौर पर ‘जेनेटिक’ यानी पशुजन्य कही जाने वाली
ये बीमारियां अमूमन संक्रामक, काफी हद तक जानलेवा और देखरेख में मुश्किल होती हैं।
अधिक चिंताजनक यह है कि जेनेटिक बीमारियां फैलाने वाले अधिकांश पशु-पक्षी इंसानों
की खाद्य शृंखला का हिस्सा हैं। पशु-पक्षियों और उनके मांस के सेवन से पैदा होने वाली
बीमारियों को मोटे तौर पर खाद्य-जनित जेनेटिक बीमारी कहा जाता है। विश्व स्वास्थ्य
संगठन (डब्ल्यूएचओ) कहता है कि हरेक चार में से तीन नए संक्रामक रोग जेनेटिक श्रेणी
के ही हैं और किसी-न-किसी रूप में जानवरों से संबंधित हैं। पशु-पक्षियों से इंसानों तक
बीमारियों का प्रसार वायरस, बैक्टीरिया, परजीवी, कवक या रोगाणु करते हैं। पशुओं से
होने वाला एचआईवी जैसा जानलेवा संक्रमण भी जेनेटिक बीमारी के ही तौर पर शुरू हुआ
था लेकिन बाद में वह सिर्फ इंसानी संक्रमण तक सीमित रह गया।
इबोला, एवियन इन्फ्लूएंजा (बर्ड फ्लू) और साल्मोनेला जैसे दूसरे जेनेटिक रोगों में तेजी
से फैलने की प्रवृत्ति देखी जाती है जिससे वे महामारी जैसे हालात पैदा कर सकते हैं।
फसलों पर कीटों का हमला पैदावार प्रभावित कर सकते हैं
नॉवल कोरोनावायरस श्रेणी के वायरस अधिक संक्रामक हैं और मौजूदा कोविड-19 की ही
तरह दुनिया भर में महामारी का प्रसार कर सकते हैं। जेनेटिक एवं खाद्य-जनित जेनेटिक
स्वास्थ्य समस्याएं काफी लंबी हैं। उनमें से कुछ चर्चित नाम कोविड-19, बर्ड फ्लू, स्वाइन
फ्लू, इबोला, निपाह, डेंगू, इन्सेफेलाइटिस और सार्स हैं। इस समय सक्रिय पशु-पक्षी
जनित बीमारियों में से बर्ड फ्लू (एच5एन1 वायरस) और कोविड-19 (नॉवल कोरोना
वायरस) पर खास ध्यान देने की जरूरत है। इसकी वजह यह है कि बर्ड फ्लू एवं कोविड-19
दोनों बीमारियों में स्वास्थ्य एवं आर्थिक दुष्प्रभाव बहुत गहरे होते हैं। बर्ड फ्लू में पोल्ट्री
एवं अन्य पक्षियों की दम घुटने से मौत होने लगती है। इन पक्षियों से सुअरों, कुत्तों एवं
बिल्लियों को वायरस का संक्रमण हो सकता है लेकिन इंसानों के चपेट में आने की आशंका
बहुत कम होती है। हालांकि वे लोग जरूर चपेट में आ सकते हैं जो पक्षियों की देखभाल में
समुचित सावधानी नहीं बरतते हैं। भारत में इस वायरस से किसी इंसान के मरने का अब
तक कोई भी मामला सामने नहीं आया है। बर्ड फ्लू की वजह से इंसानी मौत के मामले पूर्व
एशियाई देशों में ही हुए हैं जहां पर पोल्ट्री एवं अन्य पक्षियों को अच्छी तरह पकाए बगैर ही
खाने का चलन है। यह वायरस इंसानों से इंसानों में नहीं फैलता है और न अच्छी तरह
पकाए गए पोल्ट्री उत्पादों के सेवन से ही हो सकता है। लेकिन पूर्वोत्तर भारत में चीनी
गुबरैले कीड़ों का आतंक फसल के उत्पादन को प्रभावित कर रहा है। जिस पर कृषि
वैज्ञानिकों की नजर बनी हुई है। फिर से कोरोना वायरस की चर्चा कर लें तो यह एक
जंगली वायरस है जो संभवत: चमगादड़ों से इंसानों तक आया है। कुछ लोग मानते हैं कि
छोटी बिल्ली जैसी दिखने वाली मास्क्ड पॉम सिवेट के जरिये यह वायरस इंसानों तक
पहुंचा था।
कोरोना वायरस भी चीन से ही पूरी दुनिया में फैला था
चीन के कुछ हिस्सों में सिवेट को काफी लजीज माना जाता है। ऐसा संदेह भी है कि इस
वायरस को चीन के वुहान प्रांत की एक प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों ने ईजाद किया था।
हालांकि डब्ल्यूएचओ ने इससे इनकार किया है। भारत के विशेष संदर्भ में जारी 2015 के
आंकड़े बताते हैं कि पांच साल से कम उम्र के करीब 1.05 लाख बच्चों की इन बीमारियों से
मौत हो गई। सामुदायिक अध्ययनों को देखें तो हरेक भारतीय बच्चे को साल भर में दो-
तीन बार डायरिया या अन्य खानपान-जनित बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
खाद्य-जनित जेनेटिक बीमारियों से भारत को हर साल करीब 28 अरब डॉलर का आर्थिक
नुकसान होने का अनुमान है। हालिया अनुमानों के मुताबिक 12 में से एक शख्स खानपान
से जुड़ी संक्रामक बीमारियों की चपेट में आता है। इससे भी बुरा यह है कि जेनेटिक
बीमारियों के मामले वर्ष 2030 तक 70 फीसदी बढऩे की आशंका है जिसके लिए मांसाहार
का बढ़ता चलन जिम्मेदार होगा। इसलिए फसलों पर कीट का प्रकोप भारत की कृषि
आधारित अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
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