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रडार चित्रों के विश्लेषण से पता चला
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कंप्यूटर मॉडल ने दिखाया नदी का ठिकाना
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कई स्थानों पर नदी पांच सौ मीटर गहरी भी
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बर्फ की चादरों से ढकी नदी एक हजार मील लंबी
प्रतिनिधि
नईदिल्लीः दुनिया के अत्यंत ठंडे इलाकों में से एक ग्रीनलैंड है। हमेशा
ही शून्य से अनेक डिग्री नीचे के तापमान वाले इस इलाके में आबादी
भी बहुत कम है। अब वैज्ञानिकों ने वहां एक ऐसे नदी का पता लगाया
है, जो बर्फ की इन्हीं चादरों के नीचे ढकी हुई है। आधुनिक विज्ञान की
तकनीक से इस नदी के अस्तित्व का पता चला है। प्रारंभिक सर्वेक्षण
के आंकड़ों के मुताबिक इस नदी की लंबाई करीब एक हजार मील
आंकी गयी है। इसका स्रोत ग्रीनलैंड के मध्यक्षेत्र में देखा गया है। यह
नदी बर्फ के नीचे से बहती हुई उत्तरी छोर तक जा रही है।
होक्काइडो विश्वविद्यालय, ओस्लो विश्वविद्यालय और अमेरिकन
जिओफिजिकल यूनियन के शोधकर्ताओं के सम्मिलित शोध का यही
निष्कर्ष है। इस जानकारी के सामने आने के बाद इसे दुनिया की
अन्यतम लंबी नदियों में से एक माना जा रहा है। इसके बारे में पहले
से किसी को कोई जानकारी नहीं थी। दरअसल बर्फ से ढके इलाकों के
नीचे ऐसी कोई नदी हो सकती है, इसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की
थी।
वहां की भौगोलिक स्थिति के आंकड़ों को कंप्यूटर में दर्ज कर उनका
विश्लेषण करने के बाद जो कंप्यूटर मॉडल सामने आया है, उससे इस
लंबी दूरी तय करने वाली नदी का खुलासा हो पाया है। इसका पता
चलने के बाद वैज्ञानिकों ने इस नदी के बहाव के आंकड़ों की भौगोलिक
स्थिति की भी गहन जांच की है। इस वीरान इलाके में बर्फ की मोटी
चादरों के नीचे से यह ग्लेशियरों के खंडों के बीच से कहीं कहीं बहती हुई
भी नजर आयी है। लेकिन इसके पहले इस नदी के इतना लंबा होने का
अनुमान तक नहीं लग पाया था।
दुनिया के अत्यंत ठंडे इलाके के रडार चित्रों की मदद
रडार के चित्रों के माध्यम से पूरी नदी के बहाव का चित्र तैयार कर पाना
संभव हुआ है। अब इसके आंकड़ों का खुलासा होने के बाद कई स्थानों
पर इस नदी के काफी गहरे होने का भी पता चल गया है। कुछेक
स्थानों पर इस नदी की गहराई तीन सौ मीटर से लेकर पांच सौ मीटर
तक आंकी गयी है। इसके बीच कुछ छोटी नदियां भी इसमें मिलती हुई
नजर आयी हैं।
नदी की गहराई कुछ स्थानों पर काफी अधिक होने के संबंध में
शोधकर्ताओं का मानना है कि जमीन के क्षरण और नदी में मिट्टी जमा
होने की वजह से ढलान वाले इलाकों में नदी गहरी होती चली गयी है।
इस शोध के बारे में प्रकाशित एक प्रबंध के मुख्य लेखक क्रिस्टोफर
चैंबर्स ने कहा कि एक हजार मील की दूरी तय करने वाले नदी की
शुरुआत कहां से होती है, यह तो खुली आंखों से सभी को दिखता है।
लेकिन यह बर्फ की मोटी चादरों और ग्लेशियरों के बीच छिपती हुई
इतनी लंबी दूरी तय करती है, इसका अंदाजा पहले नहीं लग पाया था।
आधुनिक विज्ञान के उपकरणों की मदद से जमीन के अंदर पांच सौ
मीटर तक आसानी से झांक लेने की तकनीक उपलब्ध होने की वजह
से ही इस नदी का खुलासा हो पाया है। प्राचीन काल में हो सकता है कि
यह नदी पूरी तरह सतह पर नजर आती रही हो। बाद में निरंतर
बर्फबारी और कड़ाके की ठंड की वजह से नदी के ऊपरी सतह पर बर्फ
की चादरें जमती चली गयी। इसी वजह से नदी इस बर्फ और ग्लेशियरों
के नीचे ढकी रह गयी। लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी नदी में पानी
का प्रवाह लगातार कायम रहा।
घने बर्फ के नीचे से नदी का प्रवाह लगातार बना रहा है
अधिकांश स्थानों पर काफी अधिक बर्फ के नीचे दबे होने की वजह से
ऊपर से नदी के प्रवाह का पता चल नहीं पाया था। क्योंकि इतनी
गहराई तक सामान्य जानकारी में झांक पाना संभव भी नहीं था।
ग्रीनलैंड के कुछ इलाकों में बर्फ की चादर भी करीब तीन किलोमीटर
तक मोटी है। जाहिर है कि इतनी मोटी बर्फ की चादर के नीचे से बहती
नदी का पता चल पाना कठिन ता। अब रडार के आंकड़ों और चित्रों के
माध्यम से इसके संकेत मिलने के बाद नदी के प्रवाह का खुलासा
कंप्यूटर मॉडल के माध्यम से हो पाया है।
इसी क्रम में वैज्ञानिकों ने यह चेतावनी भी दी है कि ग्रीनलैंड के इलाके
में भी प्रतिवर्ष करीब 234 खबर टन बर्फ पिघलता जा रहा है। यह
आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। इससे ग्रीनलैंड के बर्फ की मोटी चादर भी
काफी तेजी से पतली होती जा रही है, जो पृथ्वी के पर्यावरण के लिए
खतरा है।
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