जिंदगी की यही रीत है भाई साहब। देहाती कहावत है कभी नाव पर गाड़ी तो कभी गाड़ी पर
नाव। बिहार चुनाव में जिस तरीके से राजनीति के शतरंज पर चालें चली जा रही है, उससे
तो यही पता चलता है। अब तो चुनावी गाड़ी नौकरी और रोजगार के बीच फंसी हुई है।
अच्छी बात यह है कि फिर से यह राज्य के विधानसभा का चुनाव राज्य के मुद्दों पर लड़ा
जा रहा है। वरना आज तक तो हमलोग पाकिस्तान के विरोध और चीन को सबक सीखाने
तक ही सीमित हो गये थे। अब आज अंतिम राउंड का दंगल है देखिये आगे आगे होता क्या
है। ढेर सारे इफ एंड बट लग गये हैं, इस चुनाव में अइसा तो दोनों तरफ से कहा जा रहा है।
लेकिन कुछ भी कहिए इतना तो तय है कि नये जेनरेशन के तेजस्वी ने भाजपा और
नीतीश को अपने बड़े भाई चिराग पासवान के साथ मिलकर किनारे लगाने में कोई कसर
नहीं छोड़ी है। इससे तो बात समझ में यह भी आती है कि बिहार में भी नये नेतृत्व का
क्रमिक विकास हो रहा है। ठीक उसी तरह जिस तरह कभी हमलोग चिंपाजी से इंसान बने
थे। अच्छी बात है। इसी बात पर एक चर्चित सुपरहिट हिंदी फिल्म मिस्टर इंडिया का एक
गीत याद आने लगा है। इस गीत को लिखा था जावेद अख्तर ने और संगीत में ढाला था
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी ने। इसे किशोर कुमार और कविता कृष्णमूर्ति ने अपना
स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।
जिंदगी की यही रीत है
हार के बाद ही जीत है
थोड़े आँसू हैं, थोड़ी हँसी
आज ग़म है, तो कल है ख़ुशी
जिंदगी की यही रीत…
जिन्दगी रात भी है, सवेरा भी है जिंदगी
जिंदगी है सफ़र और बसेरा भी है जिंदगी
एक पल दर्द का गाँव है, दूसरा सुख भरी छाँव है
हर नए पल नया गीत है
जिंदगी की यही रीत…
ग़म का बादल जो छाए, तो हम मुस्कराते रहें
अपनी आँखों में आशाओं के दीप जलाते रहें
आज बिगड़े तो कल फिर बने, आज रूठे तो कल फिर मने
वक़्त भी जैसे इक मीत है
जिंदगी की यही रीत…
खेलते-खेलते एक तितली ना जाने कहाँ खो गयी
एक नन्ही किरण क्यूँ अँधेरे में यूँ सो गयी
सबकी आँखों में फ़रियाद है
सबकी दिल में तेरी याद है
तू नहीं है, तेरी प्रीत है
जिन्दगी की यही रीत है…
इंटरनेशनल दौरा करना है तो सीधे अमेरिका ही चलते हैं
अब हिंया इलेक्शन से निकले हैं तो थोड़ा मुंबई होते हुए अमेरिका भी हो आते हैं। बेचारे
अर्णव गोस्वामी का जो गत गिरफ्तारी के पहले नहीं हुआ था वह तो गिरफ्तारी के बाद हो
गया। किसी को आत्महत्या करने के लिए उकसाने के आरोप में वह गिरफ्तार क्या हुए,
भूचाल आ गया। मानो पूरी भाजपा को ही यह आपातकाल लगने लगा। हर छोटा बड़ा नेता
उनके समर्थन में इतना कुछ बोलने लगा कि आम पत्रकारिता से सरोकार रखने वाले मेरे
जैसे पत्रकारों को भी अर्णव के मामले में चुप हो जाना पड़ा। भाई लोगों ने मिलाजुलाकर
यह साबित कर दिया कि दरअसल अर्णव उन्हीं के आदमी हैं और पत्रकार बनकर उन्हीं का
एजेंडा चला रहे हैं। वरना इससे पहले भी अनेक पत्रकारों के साथ इस किस्म की घटनाएं
घटी थी, उसमें हमलोग तो सड़क पर आये थे लेकिन भाजपा के लोग तो कभी नजर नहीं
आये। अब तो केस से जमानत पाकर बाहर आने के बाद भी अर्णव को अपने ऊपर लगे इस
ठप्पे को मिटा पाना कठिन हो गया है। अभी गाड़ी पर नाव है तो सब कुछ ठीक है लेकिन
अगर सेंटर में नाव पर गाड़ी आयी यानी सत्ता किसी और के हाथ गयी तो बेचारे अर्णव
जैसे लोगों का क्या होगा, यह भी सोचने वाली बात है। यह इसलिए भी सोचना चाहिए
क्योंकि कोई लगातार भारत पर राज करेगा, इस बात की कल्पना सपना देखने जैसी बात
है।
अमेरिकी गाड़ी भी अजीब ढंग से फंसी हुई है
चलिए अमेरिका झांक आते हैं, वहां गाड़ी अब भी जो बिडेन 264 और डोनाल्ड ट्रंप 214 पर
अटके हुए हैं। पूर्ण बहुमत के लिए 270 का आंकड़ा चाहिए। कुछ कहिये लेकिन अमेरिका में
इस तरीके का मतदान होने जा रहा है, अइसा तो शायद खुद ट्रंप भाई साहब ने भी नहीं
सोचा था। नाराजगी में अब वोट चोरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की बात करने लगे हैं।
लेकिन गलती से भी कोई राय अभी मत बना लीजिएगा। वह अमेरिका है भाई, वहां की
राजनीति भी सिर्फ और सिर्फ पूंजी के प्रभावित होती है। इसलिए जिसे हम इंडिया में आंख
बंद और डब्बा गायब कहते हैं, वइसा भी हो सकता है।
खैर अपने झारखंड में लौट आते हैं। दो सीटों पर चुनाव हो चुका है। अब देखना है कि इसके
परिणाम 2-0, 1-1 अथवा 0-2 होता है। इसके अलावा कोई और गणितीय समीकरण इसमें
संभव नहीं है। जो भी हो लेकिन सरकार और भाजपा के बीच जारी जंग में इसके बाद भी
चालें चली जाएंगी, इतना तो फाइनल होता दिख रहा है।
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