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देखने वाली नस को दोबारा बनाने में कामयाबी
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जीन थैरापी से मर चुकी नसों में नई जान आयी
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दुनिया में दृष्टिहीनता का बड़ा कारण ग्लूकोमा है
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खास प्रोटिन ही नसों को नये सिरे से सक्रिय बनाता है
राष्ट्रीय खबर
रांचीः अंधापन दूर करने की दिशा में हाल के दिनों में लगातार एक के बाद एक कई
सूचनाएं आ रही हैं। इसके तहत अब यह पता चला है कि वैज्ञानिक अब ऑप्टिक नस को
भी दोबारा बनाने में कामयाब हुए हैं। इस सफलता से ऐसा माना जा रहा है कि ग्लूकोमा से
होने वाले अंधत्व को भी अब दूर करने में यह विधि मददगार होगी। वैसे भी दुनिया में
अंधापन का एक प्रमुख कारण यही ग्लूकोमा की बीमारी ही है। वैसे जीन थैरापी से मिली
इस कामयाबी के बाद शरीर के अन्य नसों को भी नये सिरे से ठीक करने की दिशा में भी
आने वाले दिनों में नई सूचनाएं आ सकती हैं। इससे चिकित्सा जगत में क्रांतिकारी
बदलाव भी आने की पूरी उम्मीद है।
इंसानी शरीर के केंद्रीय नस व्यवस्था जिसे सेंट्रल नर्वस सिस्टम कहते हैं, किसी कारण से
क्षतिग्रस्त होने पर दोबारा ठीक नहीं होते। कई बार अलग अलग किस्म की बीमारियों की
वजह से भी उन्हें नुकसान पहुंचता है। अब तक तो चिकित्सा जगत में सिर्फ इस बात पर
ईलाज होता था कि जितना हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका है वह इस सीएनएस के अन्य
हिस्सों तक नहीं फैले। लेकिन अब लगातार जीन थैरापी से ऐसा कर पाने की दिशा में एक
एक कर कई कामयाबियां मिली हैं। वैज्ञानिकों ने ग्लूकोमा से क्षतिग्रस्त होने वाले नस को
नये सिरे से सक्रिय बनाने में सफलता पायी है। प्रकाशित शोध प्रबंध में यह बताया गया है
कि प्रोट्रूडिन नाम का एक प्रोटिन यह काम कर सकता है।
अंधापन दूर करने में प्रोट्रूडिन नामक प्रोटिन की खोज हुई
इसकी बदौलत नसों की कोशिकाओं को पुनर्जीवित किया जा सकता है। कैम्ब्रिज
विश्वविद्यालय के जॉन वैन गीस्ट ब्रेन रिपेयर सेंटर के वैज्ञानिकों ने इस पर काम किया
है। इस टीम में डॉ रिचर्ड इवा, प्रोफसर केइथ मार्टिन और प्रोफसर जेम्स फॉसेट शामिल थे।
इनलोगों ने एक कोशिका को कल्चर कर ब्रेन की कोशिका को नये सिरे से तैयार करने की
विधि विकसित की है। इसी की मदद से ऑप्टिक नस की सक्रियता को फिर से बढ़ाने में
कामयाबी मिली है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि जैसे जैसे प्रोट्रूडिन की सक्रियता बढ़ी, इन
कोशिकाओं के पुनर्निमाण की गतिविधियां भी तेज होती चली गयी।
रेटिना यानी आंख की पुतली, जो देखने का असली काम करती है के अंदर की रेटिनल
गैंगलायन कोशिकाओं ने भी इस सेंट्रल नर्व सिस्टम से जुड़े रास्ते को सक्रिय बना दिया।
इससे ग्लूकोमा की वजह से दिमाग तक तो संकेत नहीं पहुंच पाते थे, वे फिर से सक्रिय हो
गये और अंधापन दूर हो गया। इस प्रक्रिया को और बेहतर तरीके से समझने के लिए इन
शोध वैज्ञानिकों ने जीन थैरापी के माध्यम से इस प्रोटिन की सक्रियता को नये सिरे से
बढ़ाने में भी कामयाबी हासिल कर ली। अनुसंधान के तहत एक मरीज के आंख के
ऑप्टिक नस को क्षतिग्रस्त होने के बाद फिर से उसे पुनर्जीवित करने की गतिविधियों को
भी आंका गया। यह पाया गया कि चंद सप्ताह के बाद जो नसें पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो
चुकी थी, उनमें नये सिरे से सक्रियता आ गयी। यानी इन नसों ने फिर से सही तरीके से
काम करना प्रारंभ कर दिया। बाद में यह भी देखा गया कि रेटिनल गैंगलायन कोश,
जिन्होंने काम करना बंद कर दिया था, वे भी सक्रिय हो गये हैं।
जीन थैरापी की इस विधि से कई अन्य मेडिकल फायदे होंगे
इस उपलब्धि की वजह से अब माना जा रहा है कि जीन थैरापी की यह विधि अब ग्लूकोमा
की वजह से अंधेपन का शिकार होने वालों को देखने की नई शक्ति देने जा रहा है।
ग्लूकोमा की बीमारी इस दुनिया में अंधापन का अन्यतम बड़ा कारण है। अब जीन थैरापी
से इसे भी दूर किया जा सकेगा। ब्रिटेन में चालीस साल की आयु के बाद हर पचास लोगों में
से एक को यह परेशानी होती है। आंख की नसों का दबाव गलत होने की वजह से धीरे धीरे
इन नसों को नुकसान पहुंचता है। अधिक उम्र में यह परेशानी दस प्रतिशत लोगों को होती
है। इसलिए इस जीन थैरापी की विधि को बहुत मददगार माना जा रहा है।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के क्लीनिकल न्यूरोसाइंस विभाग के डॉ वेसेलिना पेट्रोवा मानती
हैं कि पूरी दुनिया में अंधापन का एक बड़ा कारण ग्लूकोमा ही है। इसलिए अब यह विधि
इस बीमारी की वजह से होने वाली दृष्टिहीनता को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा
सकती है। साथ ही इससे नसों की दूसरी परेशानियों को भी दूर करने में मदद मिल सकती
है। इससे शरीर के अन्य भागों को भी सक्रिय बनाया जा सकता है।
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