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अमेरिकी शोध पत्रिका में दो रिपोर्ट प्रकाशित
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ओ ब्लड ग्रूप पर कोरोना का असर कम देखा
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हैजे के वक्त भी रोगियों मेंयह अंतर देखा गया
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डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने प्रारंभिक निष्कर्ष निकाला
राष्ट्रीय खबर
रांचीः खून का वर्गीकरण हम सभी जानते हैं। यह चिकित्सा शास्त्र का एक अन्यतम प्रमुख
विषय है। पहली बार कुछ वैज्ञानिकों का ध्यान इस ओर गया है कि क्या खून के ग्रूप का भी
कोरोना पर अलग अलग प्रभाव पड़ता है। प्रारंभिक तौर पर जिस निष्कर्ष की बात
वैज्ञानिक कर रहे हैं, उसके मुताबिक खास तौर पर ओ ग्रूप के खून वाले लोगों पर कोरोन
का प्रभाव कम पाया गया है। लेकिन इस आंकड़े के सामने आने के बाद हर खून के ग्रूप के
बारे में और गहन शोध का काम तेज भी हो गया है। अजीब स्थिति यह है कि इस एक
प्रारंभिक निष्कर्ष ने कई और सवाल खड़े कर दिये हैं, जिसका समाधान फिलहाल
वैज्ञानिकों के पास नहीं हैं और वे इसकी खोज कर रहे हैं।
इस बारे में अमेरिकन सोसायटी ऑफ हेमाटोलॉजी की पत्रिका में एक शोध प्रबंध प्रकाशित
हुई है। इसमें डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने अपने यहां के करीब पौने पांच लाख लोगों के खून
का विश्लेषण किया था। इन सभी लोगों की कोरोना जांच की गयी थी। पिछले फरवरी माह
से लेकर जुलाई तक के इन आंकड़ों में जिन लोगों के नमूने शामिल थे, उनमें से अधिकांश
की जांच रिपोर्ट नेगेटिव आयी थी। खून के इन नमूनों में से 7422 लोग कोरोना पॉजिटिव
पाये गये थे। इसी आधार पर जांच की गाड़ी आगे बढ़ी थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि
दरअसल खून के वर्ग का भी इसमें बड़ा अंतर नजर आया। इसी आधार पर वे इस नतीजे
पर पहुंचे हैं कि ओ समूह के खून वाले लोगों पर कोरोना का अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ा था।
इस नतीजा का समर्थन इसलिए किया गया क्योंकि जांच के दायरे में आये अन्य ब्लड ग्रूप
के लोगों के जैसी ही स्थिति के बीच वे कोरोना संक्रमण के दौरान रहे थे।
खून का वर्गीकरण वैज्ञानिक परीक्षण संकेत देता है
लेकिन वैज्ञानिकों ने यह स्पष्ट किया है कि ऐसा नहीं है कि इस ओ ब्लड ग्रूप के लोगों को
कोरोना नहीं हुआ था। इस ब्लड ग्रूप के लोगों में भी कोरोना पाया गया था, लेकिन उनकी
संख्या तुलनात्मक तौर पर बहुत कम थी। विनकॉंसिन मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन
विभाग के अध्यक्ष डॉ रे सिल्वरस्टेन ने इस बारे में कहा है कि इस अध्ययन से ऐसे संकेत
मिलते हैं कि ओ ब्लड ग्रूप के लोगों पर कोरोना संक्रमण का शायद कम खतरा होता है।
लेकिन यह स्पष्ट है कि इस खून के ग्रूप का अर्थ यह कतई नहीं है कि इस ब्लड ग्रूप को
कोरोना नहीं होगा। उनकी बातों को गंभीरता से इसलिए भी लिया गया है क्योंकि वह
अमेरिकन सोसायटी ऑफ हेमाटोलाजी के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं। साथ ही वह इस शोध के
साथ जुड़े हुए भी नहीं थे। यानी उनका बयान एक तटस्थ विशेषज्ञ के तौर पर अधिक
महत्वपूर्ण माना गया है। इसी क्रम में डॉ सिल्वरस्टेन ने डाक्टरों को सभी मरीजों का
कोरोना का एक जैसा ईलाज करते रहने की भी सलाह दी है।
बुधवार को इससे संबंधित रिपोर्ट प्रकाशित
इसी बीच बुधवार को एक और रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। कनाडा के वेंकूवर में शोधकर्ताओं ने
फरवरी से अप्रैल तक के 95 कोरोना मरीजों का विश्लेषण किया गया। यह सभी लोग
गंभीर संक्रमण की चपेट में थे और सभी को अस्पताल के इंटेंसिव केयर यूनिट में भर्ती
कराना पड़ा था। वहां भी ब्लड ग्रूप का यह अंतर सामने आया है। वहां के मुताबिक अथवा
एबी खून के ग्रूप के मरीजों को मैकनिकल वेंटीलेंशन की आवश्यकता अधिक समय के
लिए पड़ी थी। दूसरी तरफ ओ अथवा बी रक्त समूह के लोगों को कम समय में ही राहत
मिल गयी थी। कोरोना संक्रमण का अलग अलग खून के समूह पर असर पर अब दुनिया
के अन्य वैज्ञानिक भी ध्यान देने लगे हैं। लेकिन अब तक के आंकड़ों में यह स्पष्ट है कि
कोई भी ऐसा ब्लड ग्रूप नहीं है जो कोरोना संक्रमण से खुद को पूरी तरह मुक्त रख सकता
है। वैसे विशेषज्ञ मानते हैं कि इस प्रारंभिक निष्कर्ष के बाद भी सभी ब्लड ग्रूप के लोगों को
संक्रमण से बचने के लिए एक जैसा बचाव का तरीका अपनाना चाहिए, जिसमें मास्क
पहनना और एक दूसरे से दूरी बनाकर रखना शामिल है।
खास बीमारी का खान ब्लड ग्रूप पर असर पूर्व प्रमाणित
किसी खास बीमारी का खून के वर्गीकरण का प्रभाव पहले भी देखा गया है। जैसे हैजे का
प्रभाव ओ ब्लड ग्रूप के लोगों पर अधिक पाने का रिकार्ड पहले से मौजूद है। इस बीमारी में
छोटी आंत में एक बैक्टेरिया का प्रभाव बढ़ने से लोग बीमार पड़ता है। वैसे खून के समूहों
के वर्गीकरण पर कोरोना के असर पर अभी और शोध किये जाने की जरूरत है, यह सभी
विशेषज्ञ मानते हैं।
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