- सुशील मोदी की जीत निश्चित
- कम सीट आने से मोदी को भाजपा करा रही केंद्र का सफर
- बिहार छोड़ने का दर्द बार बार बाहर आ रहा है उनका
- खुद मुख्यमंत्री नीतीश भी जोड़ी टूटने से खुश नहीं हैं
रंजीत कुमार तिवारी
पटना : राज्यसभा के लिए गुरुवार की शाम तक महागठबंधन की ओर से किसी ने
नामांकन पत्र दाखिल नहीं किया। इससे साफ हो गया है कि सुशील मोदी निर्विरोध चुना
जाना निश्चित हो गया। अगर महागठबंधन अपना उम्मीदवार उतारता भी है तो सुशील
मोदी जीत तय है। क्योंकि सदन में महागठबंधन से एनडीए के सदस्यों की संख्या अधिक
है। और लोकतंत्र में संख्या बल का ही महत्व है। राज्यसभा के इस चुनाव से सवालों का
जवाब मिल जाएगा।
राज्यसभा के लिए सुशील मोदी भेजने का भाजपा का उद्देश्य स्पष्ट है
सुशील मोदी राज सभा में भेजने का भाजपा का उद्देश्य स्पष्ट है भाजपा राज्य में
विधानसभा चुनाव में कम सीट आने के कारणों से बहुत खुश नहीं है। भाजपा नीतीश-
सुशील के नेतृत्व वाली जोड़ी को ही दोषी मान रहे हैं। हालांकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस
विषय पर खुलकर कुछ भी बोलने से बचते हुये नजर आ रही है। भाजपा पुराने चेहरे को
साइड कर में नए लोगों को ज्यादा से ज्यादा तरजीह दे रहा है। केंद्र से लेकर राज्य तक
नेतृत्व ने नए लोगों को ही तरजीह देकर स्पष्ट कर दिया है कि पुराने लोगों लोगों अब
सावधान रहना चाहिए। क्योंकि पार्टी शासन में उनकी उपयोगिता को लंबे समय तक
स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है।
महागठबंधन उदास, नहीं मिला उम्मीदवार
महागठबंधन जो विधानसभा चुनाव के दौरान ताल ठोंक रहा था, आज उदास है। उसने
राज्यसभा के लिए अपने उम्मीदवार तक को प्रकाश में नहीं ला सका। एक नाम की चर्चा
भी हुई लेकिन वह भी फुस्स हो गया। उनके इंकार कर देने के बाद महागठबंधन के होश
फाख्ता हो गए हैं। उसने इस उम्मीद से लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान की मां और स्वयं
स्वर्गीय राम विलास पासवान की विधवा का नाम राज सभा उम्मीदवार के तौर पर सोचा
था। ऐसे में राजद एक तीर से दो शिकार करने का दिवास्वप्न पाले हुए था। लेकिन लेकिन
चिराग ने स्पष्ट महागठबंधन का नियत भांप कर खुद को दरकिनार कर लिया। और
अपना उम्मीदवार बनाने से इंकार कर दिया। वैसे पटना में यह भी चर्चा है कि लालू यादव
के पुत्र और राजद नेता से बात की थी दूसरी ओर से राजद के वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के
राज्य अध्यक्ष और अब्दुल बारी सिद्दीकी ने भी उम्मीदवार बनने से इंकार कर दिया। यह
दोनों नेता पार्टी के हार की हैट्रिक बनाना नहीं चाहते थे। हैट्रिक बनाने से भी पार्टी की
किरकिरी हो जाए और तब क्षेत्र में कहने को इनके पास कुछ नहीं बचता।
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