-
लॉकडाउन के दौरान निरंतर नजर लगी है वैज्ञानिकों की
-
82 वर्ष पुराने सिद्धांत को अब प्रमाणित किया जा सका
-
इसपर आधारित प्रयोग में भी ऊर्जा का पता चल गया
-
खगोलीय लॉकडाउन के बीच नई जानकारी मिली
राष्ट्रीय खबर
रांचीः सूर्य में अलग किस्म के विकिरण का दौर चल रहा है। सूर्य पर लॉकडाउन लगने के
बाद उस पर नजर रखने वाले वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को समझा है। इस बारे में करीब 82
वर्ष पूर्व यह बताया गा था कि वहां के उच्च ताप में प्रचलित विकिरण की रासायनिक
प्रक्रिया से अलग भी प्रतिक्रिया होती है। इस बार उसे घटित होते हुए देखा जा रहा है। इसके
तहत सूर्य में जो प्रोटोन हैं, वे पिघल नहीं रहे हैं बल्कि हिलियम के साथ प्रतिक्रिया कर
कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन का निर्माण कर रहे हैं। इसे वैज्ञानिक परिभाषा में
सीएनओ साइकल कहा गया है। इसमें अति सुक्ष्म कण न्यूट्रिनों को भी परिभाषित किया
जा सका है, जो भविष्य में अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होने जा रहे
हैं।
यह पहले से ही सभी की जानकारी में है कि सूर्य में ऊर्जा का उत्पादन आणविक विस्फोट
से होने वाले न्यूक्लीयर फ्यूजन की वजह से होता है। इसमें हाइड्रोडन बदलकर हिलियम
हो जाता है। इसका 99 प्रतिशत फ्यूजन सीधे सीधे प्रोटोन स्तर पर होने वाली रासायनिक
प्रतिक्रिया की वजह से होता है। लेकिन वर्ष 1938 में भौतिक विज्ञान के विशेषज्ञों हांस बेथे
और कार्ल फ्रेडरिच वन वेइसेकर ने यह सिद्धांत दिया था कि इसके पीछे कोई और कारण
भी हो सकता है क्योंकि सिर्फ प्रोटोन के स्तर पर होने वाली प्रतिक्रिया से इतनी ऊर्जा का
उत्पादन संभव नहीं है। अब जाकर वह सिद्धांत सही साबित हो रहा है। इसके तहत जो कुछ
पाया गया है, उसमें सीएनओ चक्र में कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन इस रासायनिक
प्रतिक्रिया में शामिल हो जाते हैं।
सूर्य में अलग किस्म के घटना को जानकर कई फायदे होंगे
सूर्य में अलग किस्म की इस रासायनिक प्रतिक्रिया के बारे में जो कुछ वहां हो रहा है, उसे
खगोल दूरबीन से न सिर्फ देखा जा रहा है बल्कि उन आंकड़ों का निरंतर विश्लेषण भी
किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि न्यूट्रिनों के स्तर पर होने वाली इस
प्रतिक्रिया से 17 सौ किलो वोल्ट तक की ऊर्जा पैदा हो रही है। इस बारे में ग्रान सैसो
प्रयोगशाला में एक प्रयोग भी किया गया है। इसमें जमीन के अंदर रखे गये न्यूट्रिनो
डिटेक्टर से आणविक प्रतिक्रियाओं की जांच की गयी थी। जमीन के अंदर रखे गये इस
डिटेक्टर को मोटे स्टील के चादर से बने आवरण के अलावा ठोस पत्थर और कई स्तरों पर
रखे गये तरल पदार्थों के टैंक से घेरकर रखा गया था। इस डिटेक्टर के टैंक के अंदर 278
टन ऑर्गेनिक तरल रखे गये थे। वहां जब यह प्रतिक्रिया हुई तो वहां भी ऊर्जा का निर्माण
हुआ। उससे निकलने वाली रोशनी से इसे रिकार्ड भी किया गया था। लेकिन असली बात
यह थी कि इस प्रक्रिया में 720 लाख सीएनओ न्यूट्रिनों प्रति सेकंड और वर्ग सेंटीमीटर की
दर से पैदा हुआ था। इससे समझा जा सकता है कि सूर्य में भीषण गरमी और अत्यधिक
ऊर्जा का असली राज क्या है। सामान्य विकिरणों के अलावा भी न्यूट्रिनों के स्तर पर होने
वाली इस प्रतिक्रिया से भी ऊर्जा का उत्पादन वहां निरंतर हो रहा है। अब जाकर वैज्ञानिक
यह अनुमान लगा रहे हैं कि कृत्रिम प्रयोग के एक पल की ऊर्जा से अधिक की ऊर्जा सूर्य से
पृथ्वी तक लगातार और पूरे इलाके में निरंतर पहुंच रही है। पृथ्वी पर सूर्य की गरमी का
एहसास होने का मुख्य राज यह भी है। मिलान विश्वविद्यालय का एक शोध दल इस पर
काम कर रहा है।
ऊर्जा के संबंध में यह शोध अंतरिक्ष यात्रा में मददगार
दरअसल सूर्य पर लॉकडाउन की छाया पड़ने के बाद से ही आधुनिक विज्ञान वहां के तमाम
घटनाक्रमों पर और अधिक गहराई से अध्ययन कर रहा है। याद रहे कि सूर्य के बारे में
अधिक जानकारी हासिल करने के लिए नासा का एक अंतरिक्ष यान पार्कर सोलर प्रोव उस
दिशा में चक्कर काटता हुआ बढ़ता जा रहा है। उससे भी सूर्य में होने वाले प्लाज्मा किरणों
की उल्टी बारिश का पता चला है। बता दें कि प्लाज्मा किरणों की यह बारिश सूर्य के ऊपर
कई लाख किलोमीटर से होती है और वापस सूर्य पर ही आ गिरती है। इसके रिकार्ड भी
किया जा चुका है। अब न्यूट्रिनों के स्तर पर होने वाली प्रतिक्रिया के साथ साथ वहां जो
कुछ रासायनिक प्रतिक्रियाएं हो रही हैं, उन्हें वैज्ञानिक गहराई तक समझना चाहते हैं।
इसका एक मकसद ऊर्जा के स्वरुप के बदलाव के दौरान होने वाली तमाम घटनाओँ को भी
विस्तार से समझना है। इसे जान लेने से भविष्य के सुदूर के अंतरिक्ष अभियानों में भी
बेहतर परिणाम मिलने की उम्मीद है।
[…] तलाशने का काम फिलहाल चल रहा है। […]
[…] उसकी पुष्टि अब तक नहीं हो पायी है। आधुनिक विज्ञान इस बात को […]