
रांची: राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को एक और चिट्टी लिखी है।
इसमें जमशेदपुर के मानगो में 14 मई 2016 को हुई एक घटना की अब तक जांच न होने का जिक्र किया है।
जांच न करने वाले अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
उन्होंने कहा है कि अगर एक हफ्ते के भीतर सरकार के स्तर पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई
तो वह अपने स्तर पर कार्रवाई सुनिश्चित कराने के लिए संवैधानिक और वैधानिक विकल्प अपनाएंगे।
क्योंकि इससे शासन की विश्वसनीयता और पुलिस की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्न खड़ा हो रहा है।
दरअसल 14 मई 2016 को विपक्ष के बंद के दौरान एक बस में आग लगा दी गई थी।
आरोप है कि एफआईआर में कुछ निर्दोष लोगों के नाम भी दर्ज कर लिए गए थे।
सरयू राय में पत्र में कहा है कि पुलिस और प्रशासन के आला अफसरों को समय-समय पर
लिखित और मौखिक रूप से बताया, पर कोई नतीजा नहीं निकला।
जमशेदपुर पुलिस ने डीजीपी, गृह सचिव और मुख्य सचिव का आदेश भी नहीं माना।
तब मैंने 18 सितंबर 2018 को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और संगठन मंत्री से मार्गदर्शन मांगा।
उन्होंने आपको सूचित किया, मगर कोई नतीजा नहीं निकला।
इतने दिन बाद भी जांच न होना दुर्भाग्यपूर्ण है।
राज्य के एक मंत्री द्वारा लिखित रूप से प्रमाणिक सूचना पर कार्रवाई करने की अफसरों पर बाध्यता है।
मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को उनके पर पत्र संज्ञान लेकर शीघ्र कार्रवाई करनी चाहिए थी।
अब अंतिम प्रयत्न के रूप में मुख्यमंत्री को पत्र लिख रहा हूं।
राज्य में कानून के शासन के प्रति जिम्मेदार अफसरों का यह रवैया किस कारण से है?
क्या इस घटना की जांच न करने के लिए उन पर कोई दबाव है या वे अपने कर्तव्य के प्रति सजग नहीं हैं?
क्या उन्होंने कानून-व्यवस्था के प्रति दायित्वों से मुंह फेर लिया है या घटना को अंजाम देने वालों के प्रभाव में हैं?
जमशेदपुर पुलिस ने क्या इस कांड में दोषियों को बचाने और निदोर्षों को फंसाने की नीयत से फर्जी एफआईआर दर्ज की है?
क्या उन्होंने कानून-व्यवस्था के प्रति दायित्वों से मुंह फेर लिया है या घटना को अंजाम देने वालों के प्रभाव में हैं?
जमशेदपुर पुलिस ने क्या इस कांड में दोषियों को बचाने और निदोर्षों को फंसाने की नीयत से
फर्जी एफआईआर दर्ज की है?
ऐसा तभी होता है, जब शासकीय अधिकारी अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी पर
नियम विरुद्ध निर्देश या दबाव को तरजीह देने लगते हैं।