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गुरुत्वाकर्षण से बचते हुए आगे निकलने की तकनीक
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इससे स्थिति पूरी तरह किसी हाई वे के जैसी ही होगी
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बृहस्पति और वरुण तक भी पहुंच जाएंगे अंतरिक्ष यान
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इस रास्ते के खतरों की और गहन जांच अभी जारी है
राष्ट्रीय खबर
रांचीः महाकाश में तेज सफर ही वैज्ञानिकों के लिए बहुत बड़ी बाधा बनी हुई थी। दरअसल
इस सौरमंडल अथवा ब्रह्मांड का आकार असीमित है। अपने वर्तमान विज्ञान की तकनीक
से तैयार अंतरिक्ष यान पृथ्वी के लिहाज से काफी तेज गति संपन्न होने के बाद भी
अंतरिक्ष की दूरी के लिहाज से बहुत ही धीमे हैं। इसी वजह से अंतरिक्ष में कम समय में
बहुत दूर तक सफर कर पाना अथवा किसी अंतरिक्ष यान को भेजकर वापस लाना अब तक
संभव नहीं हो पाया है। लेकिन अब इस दिशा में भी नई खोज हुई है। खगोल वैज्ञानिकों ने
महाकाश में तेज सफर का नया तरीका खोज निकाला है। इसके जरिए महाकाश में बहुत
दूर तक कम समय में सफर कर पाना संभव हो पायेगा। इसी वजह से इस पद्धति को
सौरजगत का तेज हाईवे माना गया है। इस रास्ते को तेज सफर के लिए इस्तेमाल करने के
लिए सौर जगत की संरचनाओँ और वहां मौजूद अलग अलग गुरुत्वाकर्षण बल के बीच से
सफर का रास्ता बताया गया है। दरअसल यह सामान्य समझ की भाषा में किसी
अतिरिक्त गुरुत्वाकर्षण से जूझकर आगे बढ़ने से बदले उससे बचते हुए आगे निकलने
जैसी खगोलीय पद्धति है। जिस तरीके से हाई वे पर वाहनों की आसान और तेज आवाजाही
के लिए चौड़े रास्ते बने होते हैं, उसी तरह भीड़ भाड़ यानी अंतरिक्ष के गुरुत्वाकर्षण बल से
बचते हुए आगे निकलने का यह तरीका है। खगोल वैज्ञानिक मानते हैं कि इस पद्धति को
अपनाते हुए तेजी से आगे निकलने का काम किया जा सकता है। इससे कम समय में
अधिक दूरी भी सफलतापूर्वक तय की जा सकती है।
महाकाश में तेज सफर के लिए तकनीक में बदलाव संभव
कुछ वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस तकनीक का प्रयोग कर वर्तमान तकनीक से बने
अंतरिक्ष यान भी हमारे सौरमंडल के बाहर बसे अन्य सौरमंडलों तक पहुंच सकते हैं। इस
सफर में वर्तमान की तुलना में बहुत कम समय खर्च होगा। ऐसे में यानों में अंतरिक्ष यात्री
भी सफर कर सकेंगे और वे कम समय के भीतर अपना काम पूरा कर सकुशल पृथ्वी पर
वापस भी लौट सकेंगे। वरना अभी तो महाकाश में गुरुत्वाकर्षण के भीड़ भाड़ से आगे बढ़ने
में भी अंतरिक्ष यानों को काफी अधिक समय लगता है। इसके बीच इस बात का भी ध्यान
रखना पड़ता है कि आगे बढ़ते वक्त यह यान किसी अन्य ग्रह, उपग्रह अथवा उल्कापिंड के
रास्ते में ना आ जाए।
इस नई तकनीक के बारे में पता चलने के बाद वैज्ञानिक यह उम्मीद जता रहे हैं कि एक
दशक के भीतर ही इस तकनीक के जरिए सुदूर स्थित बृहस्पति ग्रह अथवा वरुण ग्रह तक
पहुंच पाना संभव होगा। इसमें यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि पहले से ही यह संभावना
जतायी गयी है कि अरुण और वरुण ग्रह में शायद वहां की रासायनिक संरचना की वजह
से हीरों की बारिश होती रहती है। तकनीक के संबंध में जानकारी रखने वाले वैज्ञानिक यह
मान रहे हैं कि अब तो सैकड़ों प्रकाश वर्ष की दूरी तक का सफर भी इससे बहुत कम समय
का हो सकता है। जाहिर है कि इस तेज गति के सफर से सौरजगत के अनेक अनजाने
तथ्यों पर वैज्ञानिक अभियानों की मदद से रोशनी पड़ेगी। जिस विधि से यह सफर पूरा
करने की उम्मीद जतायी गयी है, वह अब तक के अंतरिक्ष अभियानों से मिले आंकड़ों पर
तैयार है। इन आंकड़ों को कंप्यूटर पर दर्ज करने के बाद उन सारी परिस्थितियों का
अध्ययन किया गया है, जो किसी अंतरिक्ष यान के रास्ते में आते हैं।
तेज हाई वे की तरह इस रास्ते आगे बढ़ेंगे अंतरिक्ष यान
इसी आधार पर एक तेज हाई वे की तकनीक के बारे में बताया गया है। इसके लिए जिस
पद्धति का इस्तेमाल किया गया है, उसे फास्ट लाइपुनोव इंडिकेटर का नाम दिया गया है।
इस तकनीक का मुख्य मकसद निरर्थक गुरुत्वाकर्षण बल से टकराव की स्थिति को
टालते हुए तेजी से आगे बढ़ते जाना है। यह ठीक किसी हाई वे की तकनीक जैसी ही है। वैसे
इस तकनीक को सैद्धांतिक तौर पर सही पाने के बाद इस बात की जांच की जा रही है कि
इन रास्तों की मदद से अंतरिक्ष यानों के आगे बढ़ने के रास्ते में और कौन कौन सी रुकावटें
अथवा अवरोध आ सकते हैं। सर्विया स्थित बेलग्रेड के अंतर्राष्ट्रीय बेधशाला, एरिजोना
विश्वविद्यालय, और यूपी सैनडियागो के वैज्ञानिकों ने इस शोध के अलग अलग खंडों पर
काम किया है। इन सभी के सम्मिलित प्रयास से तैयार शोध प्रबंध को सार्वजनिक किया
गया है। इस अंतर्राष्ट्रीय शोध दल में नताशा टोडोरविक, दी वू और आरोन रोसेनग्रेन
शामिल थे। वे मानते हैं कि पृथ्वी से सूर्य की 93 मिलियन मील की दूरी को भी इस
तकनीक से बहुत कम समय में तय कर पाना संभव होगा।
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