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अवशेषों के वैज्ञानिक अध्ययन के बाद मॉडल तैयार
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ठंडे प्रदेशों में रहने का अभ्यस्त था यह प्रजाति
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करीब 55 मिलियन वर्ष पहले थे इस धरती पर
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विलुप्त क्यों हो गये इस पर शोध अभी जारी है
राष्ट्रीय खबर
रांचीः सांप के जैसी मक्खी भी प्राचीन धरती पर होती थी। उनके कई अवशेष पाये जाने के
बाद उन पर गहन अनुसंधान हुआ है। इन्हीं फॉसिलों की बदौलत वैज्ञानिकों ने इस सांप के
जैसी मक्खी का मॉडल भी तैयार किया है। वैज्ञानिक भाषा में पृथ्वी से काफी पहले ही
विलुप्त हो चुकी इस प्रजाति को स्नैक फ्लाई का नाम दिया गया है। इस नाम का अर्थ
स्नैक यानी सांप और फ्लाई यानी मक्खी है। हाल के दिनों में ब्रिटिश कोलंबिया और
वाशिंगटन के इलाके में हुए खोज में इन प्रजातियों का पता चला है। काफी अरसे से दबे पड़े
इन फॉसिलों के कुछ हिस्से नष्ट भी हुए हैं। फिर भी अलग अलग फॉसिल से अलग अलग
हिस्सों का आकार समझते हुए उसका मॉडल तैयार किया जा सका है। मॉडल के मुताबिक
यह बिल्कुल सांप के जैसी मक्खी ही नजर आती है। लेकिन इन अवशेषों के पाये जाने के
बाद क्रमिक विकास की कड़ी में नये संशोधनों की आवश्यकता महसूस की जा रही है। साथ
ही यह भी समझने का प्रयास हो रहा है कि आखिर इस प्रजाति के समाप्त होने के बाद
इसी प्रजाति से कौन सी दूसरी प्रजाति विकसित हुई है। इसके लिए कड़ी से कड़ी जोड़ने के
काम में वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। उन्हे अनुमान है कि फॉसिलों के जेनेटिक विश्लेषण से भी
धीरे धीरे इस गुत्थी को सुलझा लिया जाएगा। सिमोन फ्रेजर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक
ब्रूस आर्चबॉल्ड और रशियन एकाडेमी ऑफ साइंस के ब्लादिमीर माकारकिन ने इस पर
काम किया है। दोनों ने अपने शोध दल के साथ इस काम को अंजाम दिया है।एक प्रमुख
वैज्ञानिक पत्रिका जूटाक्सा में इस बारे में विस्तारित जानकारी देते हुए एक शोध प्रबंध भी
प्रकाशित किया गया है। जिसमें फॉसिल आधारित सूचनाओँ का विश्लेषण भी किया गया
है। इसमें प्राचीन कीट पतंगों की वर्तमान प्रजातियों का भी उल्लेख है।
सांप के जैसी मक्खी एक प्राचीन और विलुप्त प्रजाति है
मिले फॉसिल्स के आधार पर यह आकलन किया गया है कि सांप के जैसी मक्खी की यह
प्रजाति इस धरती पर आज से करीब 50 मिलियन वर्ष पूर्व रहा करती थी। उस काल के कई
अन्य कीट, पतंग और जानवरों के बारे में पहले ही पता चल चुका है, जो अब विलुप्त हो
चुके हैं। वैसे इन सांप जैसी मक्खी के आकार प्रकार और शारीरिक गठन को देखकर यह
अनुमान लगाया जा रहा है कि वे मांसाहारी और शिकारी प्रजाति के थे। अब तक के
उपलब्ध साक्ष्य यह भी बताते हैं कि यह प्रजाति पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ही पायी गयी
है। इसके आधार पर ऐसा भी माना जा रहा है कि यह प्रजाति शायद ठंडे प्रदेशों में ही रहती
थी क्योंकि तापमान की कमी के दोरान उनका शारीरिक विकास होता था। अब तक जो
फॉसिल पाये गये हैं, वे यही बताते हैं कि इन इलाकों में प्राचीन काल में तापमान
अपेक्षाकृत बहुत कम हुआ करता था। लेकिन कुछ ऐसे स्थानों पर भी सांप जैसी मक्खी के
अवशेष मिले हैं, जो इस वैज्ञानिक अवधारणा में फिट नहीं बैठते हैं। मौसम और तापमान
आधारित प्रजातियों के विकास के रिकार्ड पेड़ पौधों के तौर पर पहले से ही विद्यमान है।
अनेक ऐसे पेड़ पौधे हैं जो विकसित होने के साथ साथ ठंडे प्रदेशों में बिल्कुल भी नहीं पाये
जाते हैं। लेकिन वैंकूवर अथवा सियेटल के इलाकों में सांप जैसी मक्खी के फॉसिल का
पाया जाना इस सिद्धांत के खिलाफ है क्योंकि वहां बहुत कम ठंड पड़ती है।
उत्तरी वाशिंगटन के एक हजार किलोमीटर के आस पास पाये गये फॉसिल
उत्तरी वाशिंगटन के इलाके में करीब एक हजार किलोमीटर के दायेर में वैज्ञानिकों को
हाल के दिनों सांप जैसी मक्खी के दो परिवारों के अवशेष मिले हैं। इन दोनों परिवारों के
अवशेष यह बताते हैं कि उन्हें ठंडे इलाकों में रहने का अच्छा अभ्यास था। शायद इसी
वजह से उनका शारीरिक विकास भी कुछ अलग किस्म से हुआ था। इस प्रजाति के पतंग
के फॉसिल इसके पहले यूरोप, रुस के प्रशांत क्षेत्र, ऑस्ट्रेलिया जैसे इलाकों में भी पाये गये
हैं। अब इससे नया सवाल यह पैदा हो रहा है कि आखिर इन्होंने क्रमिक विकास के दौर में
खुद को दूसरे मौसम के लायक क्यों नहीं ढाला या फिर अचानक से बढ़े तापमान की वजह
से यह प्रजाति पृथ्वी से पूरी तरह विलुप्त हो गयी थी। अगरऐसा हुआ था तो भी यह नये
जांच का विषय है कि सांप जैसी मक्खी के विलुप्त होने के काल में इस धरती पर क्या कुछ
बदलाव अचानक से हुए थे।
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