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पर्यावरण असंतुलन का खतरा धरती पहले भी झेल चुकी
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उसके बाद फिर से बर्फ बनना तेज हो पाया था
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अनेक इलाके में अचानक समुद्र आ गया था
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स्कॉटलैंड के इलाकों में मौजूद हैं साक्ष्य
राष्ट्रीय खबर
रांचीः समुद्री जलस्तर के ऊपर उठने को लेकर दुनिया भर के वैज्ञानिक चिंतित हैं। यह
माना जा रहा है कि पर्यावरण असंतुलन की वजह से यह स्थिति आने वाले दिनों में और
भयानक होने वाली है। जैसे जैसे बर्फीले प्रदेशों में गर्मी और प्रदूषण की वजह से तेजी से
बर्फ पिघल रहा है, यह खतरे को और बढ़ाता जा रहा है। अनुमान है कि इस सदी के अंत
तक सामान्य अवस्था में भी समुद्र का जलस्तर करीब 3.6 मीटर ऊंचा उठ जाएगा। इसकी
वजह से दुनिया के अनेक इलाके फिर से समुद्र में समा जाएंगे। इनमें देश के अनेक
महानगर भी होंगे। अब वैज्ञानिक बता रहे हैं कि ऐसी स्थिति पहले भी आयी थी। करीब
14,600 वर्ष पहले अचानक से इस पृथ्वी के बर्फ बहुत तेजी से पिघल गये थे। उस वक्त
समुद्र का जलस्तर भी करीब 18 मीटर ऊंचा उठ गया था। दुनिया के अनेक ऐसे इलाके
मिले हैं, जहां कभी समुद्री जल के होने के प्रमाण अभी मौजूद हैं। समुद्र से काफी दूर स्थित
ऐसे स्थानों पर कुछ झील जैसे इलाके भी बन गये थे। जो दरअसल समुद्री जलस्तर के
ऊंचा उठने की वजह से बने थे। बाद में जब समुद्र का पानी उतर गया तो वे सामान्य
बारिश से भी झील जैसी स्थिति में बने रहे। कुल मिलाकर मौसम के चक्र का बदल जाना
पृथ्वी के लिए एक गंभीर खतरा है और यह खतरा दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। इस बात
को लेकर पर्यावरण विशेषज्ञ एकमत हैं कि जैसे जैसे यह स्थिति और बिगड़ेगी, समुद्री
जलस्तर और बढ़ता जाएगा। दरअसल ग्लेशियरों के बर्फ के पिघलने से जो पानी समुद्र में
आयेगी, उसकी वजह से ही यह जलस्तर ऊपर उठेगा। जैसे जैसे यह जलस्तर ऊपर उठेगा,
दुनिया के वैसे इलाके जो समुद्र के करीब हैं इस वजह से समुद्र में समाते चले जाएंगे।
समुद्री जलस्तर का यह शोध डरहम विश्वविद्यालय का
डरहम विश्वविद्यालय के एक दल ने इस पर शोध के बाद नतीजा निकाला है कि ऐसी
स्थिति 14 हजार छह सौ वर्ष पूर्व में आयी थी। इस शोध दल ने उपलब्ध भौगोलिक आंकड़ों
का भी विश्लेषण किया है। ताकि यह पता चल सके कि वर्तमान में वे कौन से इलाके हैं, जो
इस घटना के वक्त समुद्र में डूब गये थे। बाद में पानी उतर जाने के बाद भी इन इलाकों में
समद्र के संपर्क में होने के प्रमाण मौजूद होने की वजह से ही इस सोच की पुष्टि हो रही है।
उस वक्त यानी आज से करीब 14 हजार छह सौ वर्ष पूर्व भी समुद्री जलस्तर के अचानक
बढ़ जाने के बाद के घटनाक्रम यह दर्शाते हैं कि उसके बाद फिर से ऊंचाई वाले इलाको में
बर्फ बनने की प्रक्रिया तेज हो गयी थी। इससे समुद्र का जलस्तर नीचे आया था और
अंटार्कटिका जैसे इलाकों में बड़े बड़े ग्लेशियरों का निर्माण हुआ था। वैसे इन ग्लेशियरों पर
हुए शोध से भी इस बात की पुष्टि हो जाती है कि वहां अलग अलग कालखंड में बने
ग्लेशियरों के नमूने मौजूद हैं। प्राचीन काल के बर्फखंड के ऊपर नये समय के बर्फ की चादरें
बिछी हैं। जिन्हें हम चादर कह रहे हैं, वे भी मोटाई में कई सौ मीटर की हैं। यानी किसी
पुराने बर्फ के पहाड़ के ऊपर नये बर्फ का पहाड़ बैठा हुआ है। इस शोध का यह भी निष्कर्ष है
कि वर्तमान गति से उस वक्त समुद्री जलस्तर के बढ़ने का दर दस गुणा अधिक हो गया
था। पहले ऐसा माना गया था कि ऐसा शायद अंटार्कटिका के किसी विशाल ग्लेशियर के
टूटने की वजह से हुआ होगा लेकिन अब इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि उत्तरी गोलार्ध
में फैले बर्फ के ग्लेशियरों के अचानक पिघल जाने की वजह से ऐसी परिस्थिति बनी थी।
ग्रीन लैंड के आकार जितना बर्फ एक साथ पिघल गया था
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वर्तमान ग्रीनलैंड के आकार के जितना बर्फ अचानक ही
गल गया था। इसी वजह से पृथ्वी की भौगोलिक संरचना भी अचानक से बदल गयी थी।
जिन इलाकों की पहचान हुई है, वहां के वैज्ञानिक आंकड़े यह दर्शाते हैं कि जो समुद्री
जलस्तर ऊपर उठ गया था वह उत्तरी अमेरिका और यूरोशिया के इलाकों के बर्फखंडों के
पिघलने की वजह से हुआ था। इस बारे में डरहम विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग
के प्रमुख यूचेंग लिन कहते हैं कि इस शोध के आंकड़े तो तीस वर्ष पहले ही मिल गये थे।
उनका निष्कर्ष अब जाकर निकाला जा सका है। स्कॉटलैंड के इलाके में अनेक ऐसे स्थान
हैं, जो वहां पूर्व में समुद्र होने का साक्ष्य दे रहे हैं। यानी 14 हजार छह सौ वर्ष पूर्व जब समुद्र
ऊपर उठा था तो इन इलाकों में भी पानी भर गया था। जिनमें से कुछ अब भी झील के तौर
पर विद्यमान हैं।
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