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एक बार पंख हिलाकर एक सौ मील जाती है यह चिड़िया
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खास यंत्र के माध्यम से एकत्रित किये आंकड़े
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ढाई सौ घंटे के आंकड़ों पर विश्लेषण किया है
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यंत्र को पहाड़ से लाने मे लग गये तीन दिन
प्रतिनिधि
नईदिल्लीः दुनिया के सबसे बड़े आकार के पक्षी के तौर पर एंड्रियन कांडोर को जाना जाता
है। इसके पंख फैलाने पर करीब दस फीट की दूरी घेरते हैं और यह वजन में औसतन तीस
पौंड से अधिक का होता है। इस लिहाज से यह माना जा सकता है कि उड़ने वाली पक्षियों में
यह सबसे बड़े आकार का है। वरना कई और भी हैं जो आकार में इससे बड़े हैं लेकिन वे उड़
नहीं सकते। अब वैज्ञानिकों के एक दल ने यह पाया है कि वह एक बार में पंख हिलाने के
बाद करीब एक सौ मील तक की दूरी तय कर लेती है। वैसे भी इस पक्षी को दुनिया के लंबी
दूरी तक सफर करने के लिए पहले से ही जाना जाता है। इस शोध के अधिकाधिक आंकड़े
एकत्रित करने के लिए शोध दल ने एक यंत्र का उपयोग किया था। डेली डायरी नामक यह
यंत्र इन पक्षियों की दिनचर्या के सारे आंकड़ों को उनके साथ रहकर एकत्रित करता जा रहा
था। इसी के दौरान ढाई सौ घंटे की उड़ान के आंकड़े एकत्रित किये जाने के बाद उनका एक
एक कर विश्लेषण भी किया गया। उस यंत्र के माध्यम से वैज्ञानिकों को पहली बार इस
बात की जानकारी मिली कि वे इस दौरान अपने समय का मात्र एक प्रतिशत ही पंख
हिलाने पर खर्च करते हैं। आठ कांडोर के एक दल पर चल रहे शोध में एक पक्षी ऐसा भी
पाया गया जिसने पांच घंटे में सिर्फ एक बार पंख हिलाया और इस एक बार पंख हिलाकर
वह एक सौ मील की दूरी तय करने में सफल रहा।
दुनिया के सबसे बड़े आकार का पक्षी बहुत कुशल पायलट
वेल्स के स्वांसी विश्वविद्यालय के शोध दल ने इस बारे में अपना निष्कर्ष जारी किया है।
इस शोध दल का निष्कर्ष है कि इस प्रजाति की चिड़िया प्राकृतिक तौर पर बहुत कुश
पायलट जैसे होते हैं। उनके उड़ने की क्षमता और बहुत अधिक दूरी तक सफर करने के बारे
में पहले से ही वैज्ञानिकों को जानकारी थी। लेकिन इस उड़ान में वे कितनी कुशलता का
परिचय देते हैं, उसका पता पहली बार चल पाया है। उनके शोध के निष्कर्षों पर आधारित
एक रिपोर्ट नेशनल एकाडेमी ऑफ साइसेंज में प्रकाशित की गयी है।
उड़ान में पंख बहुत कम हिलाने के लिए ऐसे कांडोर पक्षी अपनी पाइलट की कुशलता का
परिचय देते हैं। वे हवा के रुख के बीच से इस तरीके से सफर करते हैं ताकि आगे बढ़ने में
उन्हें अधिक परिश्रम नहीं करना पड़े। इस बारे में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ
डेविड लेंटिक कहते हैं कि यह कुशलता अपने आप में हैरान करने वाली है। उन्होंने कहा कि
हमलोगों की खुली आंखों से आसमान पूरी तरह साफ नजर आने के बाद भी वहां बहुत कुछ
होता है, जिसका सामना इन पक्षियों को करना पड़ता है। तेज हवा, तापमान का हेरफेर,
गर्म हवा का ऊपर उठना, इन सभी प्राकृतिक बदलावों के बीच से उन्हें गुजरना पड़ता है।
इसके अलावा ऊंचे पर्वतों को लांघना भी इस पक्षियों के लिए बड़ी जिम्मेदारी होती है
क्योंकि वहां का माहौल और हवा का दबाव बिल्कुल अलग किस्म का होता है। इसलिए
हवा के झोंकों के बीच से बिना अतिरिक्त परिश्रम के आगे बढ़ना ही किसी कुशल पायलट
की निशानी है।
उड़ने और हवा में तैरने के लिए अलग अलग तरीका
शोध दल ने स्पष्ट किया है कि चिड़ियों को पंखों का इस्तेमाल दो तरीके से करना पड़ता है।
पहला इस्तेमाल तो उन्हें उड़ने के लिए पंख फड़फड़ाना पड़ता है। आसमान पर उड़ने के
बाद अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ने के लिए उन्हें पंख हिलाना पड़ता है। इन दोनों के
अंतर को स्पष्ट करते हुए वैज्ञानिकों ने उदाहरण दिया है कि यह कुछ वैसी स्थिति है
जिसमें एक में आप पहाड़ पर साइकिल से चढ़ते हैं और दूसरे में उसी पहाड़ से उतरते हैं।
दोनों में कोई गड़बड़ी ना हो, इसका पूरा ध्यान रखना पड़ता है।
मोंटना विश्वविद्यालय के पक्षी विशेषज्ञ ब्रेट टोबालस्की कहते हैं कि इस प्रजाति की पक्षी
लाशों को भी ठिकाने लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अपनी इसी जिम्मेदारी की
वजह से उन्हें काफी ऊंचाई पर उड़ते हुए नीचे नजर रखना पड़ता है। ताकि नीचे जमीन पर
उन्हें कोई वैसी लाश नजर आ सके। इसके लिए वे घंटों तक किसी पहाड़ के चक्कर भी
काटते रहते हैं।
पहाड़ों के ऊपर घंटों चक्कर काटते हैं
शोध में यह पाया गया कि पंख कम हिलाने की वजह से उनके शरीर की ऊर्जा का खर्च भी
कम होता है। अपनी शेष ऊर्जा वह काफी बचाकर रखते हैं। विश्लेषण से पता चला कि
अपनी कुल ऊर्जा का सिर्फ एक प्रतिशत ही वे पंख हिलाने पर खर्च करते हैं। उससे अधिक
ऊर्जा उन्हें उड़ने के पहले पंख फड़फड़ाने में खर्च करनी पड़ती है।
इस शोध दल के साथ मजेदार वाकया उनके उपकरणों की वजह से भी हुआ है। यह यंत्र
कुछ इस तरीके से लगाये गये थे कि वे एक सप्ताह के बाद खुद ही इन पक्षियों के शरीर से
अलग होकर नीचे गिर जाते। ऐसा ही हुआ लेकिन यह उपकरण माउंट एंड्रेस के काफी
ऊंचाई पर गिरे। उपकरण कुछ ऐसी जगह गिरे थे, जहां से उन्हें निकाल लाने में शोध दल
को तीन दिन समय लगा।
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