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मेंढक के स्टेम सेल से तैयार हुई जीवित प्रजाति
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कई किस्म के काम भी कर सकता है यह जीवित रोबोट
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वैज्ञानिक इसे आगे और विकसित करना भी चाहते हैं
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जेनेटिक्स और रोबोटिक्स का मिश्रित परिणाम है यह
प्रतिनिधि
नईदिल्लीः जिंदा रोबोट सुनने में भी अजीब लगता है। वैसे हमलोग
कई फिल्मों में ऐसा देख भी चुके हैं। हिंदी फिल्मों में रोबोट नाम से ही
एक फिल्म बनी थी जबकि दूसरी फिल्म रावण थी। लेकिन विज्ञान के
जगत में लगातार हो रहे अनुसंधान के दौरान पहली बार ऐसी सफलता
मिली है। इसे मेंढक के स्टेम सेल से तैयार किया गया है। यह जिंदा
रोबोट कई काम कर सकता है। यहां तक कि घायल होने की स्थिति में
वह अपनी आंतरिक संरचना की मदद से खुद के चोट को ठीक भी कर
लेने में सक्षम है। इसे बनाने वालों ने इसे जेनबोट नाम दिया है। यह
दावा किया गया है कि यह जिंदा रोबोट सामान उठा सकता है और चल
फिर भी सकता है। इस शोध से जुड़े वैज्ञानिक यह उम्मीद कर रहे हैं कि
इनका पूरी तरह सफल परीक्षण होने के बाद जेनेटिक संशोधन की
मदद से उनका बेहतर उपयोग भी किया जा सकेगा। वर्तमान में इस
शोध से जुड़े वैज्ञानिक इन जीवित रोबोट का इस्तेमाल समुद्र में
प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण बनने वाले माइक्रो प्लास्टिक को हटाने
और अगले चरण में इंसानों के शरीर के अंदर दवा पहुंचाने में करने की
सोच रहे हैं।
जिंदा रोबोट का बहुआयामी इस्तेमाल की योजना
इस जिंदा रोबोट को तैयार करने वालों ने मेंढक के जीवित स्टेम सेल
को क्रमवार तरीके से जोड़कर इसे बनाया है। वेरमोंट विश्वविद्यालय
के रोबोटिक्स विशेषज्ञ तथा इस शोध संबंधी प्रबंध के सह लेखक
जोशुआ बोनगार्ड ने कहा कि यह सामान्य किस्म के जीवित मशीन हैं।
इन्हें न तो कोई प्राणी माना जा सकता है और न ही ये पारंपरिक रोबोट
की श्रेणी में आते हैं। यह रोबोटिक्स की दुनिया का बिल्कुल नया
आविष्कार है। अच्छी बात यह है कि इसे किसी खास काम के लिए
निर्देशित भी किया जा सकता है। इसी वजह से समुद्र के अंदर की
माइक्रोप्लास्टिक की सफाई के लिए इनके उपयोग पर विचार किया
जा रहा है। इन जिंदा रोबोट के बारे में बताया गया है कि इनकी संरचना
को एक सुपर कंप्यूटर में तैयार किया गया था। इसी संरचना के आधार
पर यह एक मिलीमीटर लंबा जिंदा रोबोट बन पाया है। इसे अंतिम रुप
प्रदान करने के पहले वैज्ञानिकों ने सुपर कंप्यूटर द्वारा बताये गये
हजारों आकृत्रियों के त्रि आयामी मॉडल तैयार किये और एक एक कर
सभी की जांच की। इस जिंदा रोबोट को बनाने के पहले ही कंप्यूटर
मॉडल से यह परखा भी गया कि किस आकृति का यह जिंदा मशीन
कितना कारगर होगा और कैसे कुशलता के साथ काम करेगा। सब
कुछ जांच लेने के बाद इस वर्तमान आकृति को ही अंतिम रुप देने का
निर्णय लिया गया था। इसे परखने के लिए तैयार होने वाला जीवित
रोबोट क्या कुछ कर पायेगा, यह उसकी आकृति पर भी निर्भर
था। इसी वजह से काफी सावधानी से सब कुछ समझ लेने के बाद इसे
अंतिम रुप प्रदान किया गया है। इस डिजाइन में यह ख्याल रखा गया
है कि यह जीवित रोबोट चल फिर सके और अपने हाथों से सामानों को
पकड़ भी सके।
इसका काम खत्म होने के बाद यह खुद ही मिट जाएगा
इन्हें तैयार करने वालों ने साफ किया है कि वर्तमान में ऐसे रोबोट
अपने अंदर की ऊर्जा को एक सप्ताह से लेकर दस दिनों तक संजोकर
रख गया है। इस ऊर्जा को संचालित करने में उसके अंदर मौजूद
मांसपेशियों की मदद मिलती है, जो खुद ही काम करते हैं। प्रारंभिक
परीक्षण में उनकी कार्य क्षमता को भी बेहतर पाया गया है। कुछ ऐसे
जिंदा रोबोटों ने अपने सामने रखे छोटे टुकड़ों को धकेलकर आगे तक
पहुंचाने में सफलता पायी है। दूसरी तरफ एक अन्य प्रयोग के तहत
इन्हें एक डिश पर पानी के ऊपर रखा गया था, वहां भी वे अपने सामने
की वस्तु को पूर्व निर्धारित स्थल तक धकेलकर ले जाने में सफल रहे।
पारंपरिक मशीनी रोबोट के मुकाबले इन्हें ज्यादा बेहतर इसलिए भी
माना जा रहा है क्योंकि धातु अथवा प्लास्टिक से तैयार होने वाले
रोबोट इस्तेमाल समाप्त होने के बाद कबाड़ हो जाते हैं। इस प्रजाति
का जिंदा रोबोट अपने नहीं होने के बाद कोई कबाड़ नहीं छोड़ता। उनके
जैविक गुण प्रकृति में शामिल हो जाते हैं। यानी दूसरे शब्दों में यह भी
कहा जा सकता है कि इस किस्म का जिंदा रोबोट पर्यावरण के लिहाज
से भी लाभप्रद हैं। उनके जिंदा नहीं रहने के बाद उनके अवशेष यूं ही
मिट्टी में घुल मिल जाते हैं। इस बारे में टूफ्ट्स विश्वविद्यालय के
निदेशक मिशेल लेविन का कहना है कि अगली पीढ़ी में ऐसे जिंदा
रोबोट में रक्त कोष, स्नायु तंत्र और अन्य आवश्यक संरचना जोड़े जा
सकते हैं, उससे उनकी कार्यकुशलता और बढ़ जाएगी। इससे इनका
आकार भी बड़ा किया जा सकेगा। लेकिन यह सारा कुछ करने में अभी
काफी वक्त लगना है क्योंकि हर एक कदम के बाद परीक्षण से नफा
नुकसान को तौलना बड़ी बात है।
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