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जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों
रजत कुमार गुप्ता
रांचीः सजल चक्रवर्ती की मौत से लेकर उनका अंतिम संस्कार भारतीय न्यायपालिका के
लिए भी एक संदेश है। जिस व्यक्ति को चारा घोटाला के आरोप में सजायाफ्ता किया गया
था, वह वाकई चारा घोटाला की कमाई से आगे बढ़ा था अथवा नहीं, यह सारा घटनाक्रम
इन तीन दिनों में एक फिल्म की तरह दिमाग में घूमता रहा। जिस तरीके लोग उनसे
उनकी मौत के बाद भी प्यार करते रहे, उससे जाहिर हो गया कि अदालत के फैसले का
जनता के दिलोंदिमाग पर कोई असर नहीं पड़ा था। उनसे अंतिम दिनों में हुई लंबी बात-
चीत इसी चारा घोटाला से संबंधित हैं, जो मेरी प्रस्तावित पुस्तक का हिस्सा है। लेकिन
उस विषयानांतर से मूल पर लौटते हुए यह कहना प्रासंगिक होगा कि घाघरा के अंतिम
संस्कार के वक्त भी जितने लोग पहुंचे थे, उससे साबित हो गया कि किसी का अपने खून
का रिश्ता होना भी उसके कर्मों पर भारी नहीं पड़ता। जो चेहरे हवाई अड्डा से अंतिम
संस्कार तक दिखे, उनमें से अधिकांश से उनका खून का रिश्ता नहीं था। लेकिन वे अपने
परिवार का सदस्य मानकर उसकी अंतिम क्रिया में शामिल रहे। इस पूरी कार्रवाई में
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को धन्यवाद कहना भी समय की मांग है क्योंकि उनकी पहल के
बिना यह सम्मान किसी सेवानिवृत्त अधिकारी को प्राप्त नहीं होता है। वैसे कर्नाटक
सरकार ने भी उनकी मौत पर वहां अंतिम सलामी देते हुए उन्हें वहां से विदा किया, उसके
लिए उस सरकार को भी धन्यवाद।
अक्खड़ शब्द को पूरे सम्मान से याद किया जाना चाहिए
सजल चक्रवर्ती यानी एक भूक्खड़ और अक्खड़ व्यक्ति। भूक्खड़ शब्द परिहास में है
क्योंकि उनकी शारीरिक बीमारियों का मूल कारण ही अधिक भोजन रहा। लेकिन अक्खड़
शब्द को पूरे सम्मान से याद किया जाना चाहिए क्योंकि तीन मुख्यमंत्रियों के साथ वह
अपने इसी अक्खड़ स्वभाव के साथ मिले थे। तीनों शायद इसे खुले तौर पर स्वीकार ना
करें लेकिन एक आइएएस अधिकारी के तौर पर जल संरक्षण की उनकी योजना को आधार
बनाकर ही बिहार और झारखंड में अन्य सारी योजनाएं बाद में बनी हैं।
चारा घोटाला की चर्चा प्रासंगिक है क्योंकि चाईबासा कोषागार से निकासी के लिए उन्हें
घूसखोरी का आरोपी बनाया गया था। कई बार अधिक दिमाग का व्यक्ति अदालत में बैठे
जज की सोच के ऊपर की बातें कर जाता है। शायद सजल चक्रवर्ती के साथ भी कुछ ऐसा
ही हुआ। वरना उसी दौर में अनेक ऐसे अधिकारी भी थे (इनमें से कुछ अब भी महत्वपूर्ण
पदों पर हैं) जिनके कार्यकाल में सजल चक्रवर्ती के चाईबासा ट्रेजरी से अधिक की निकासी
पशुपालन विभाग द्वारा की गयी थी। सारे बेदाग निकल क्या गये। कुछ ने तो अपनी
कमाई जांच अधिकारियों से बांट भी ली थी। फिर से यह सवाल खड़ा है कि क्या अंतिम
समय के बाद भी लोग उन्हें वाकई घूसखोर कहना चाहेंगे।
कई कारणों से अंतिम दिनों में एकाकी जीवन से परेशान सजल चक्रवर्ती को मैंने तो कभी
किसी के आगे सर झूकाते नहीं देखा। अलबत्ता अनेक लोगों को इस बात का भ्रम अवश्य
रहा कि वह उन्हें बॉस कहकर पुकारा करते थे। ऐसे लोगों को अब यह जान लेना चाहिए कि
वह अपने घर के नौकर को भी बॉस कहकर ही सम्मान दिया करते थे।
सजल की मौत से अंतिम क्रिया के दो घटनाक्रम इसमें याद आ रहे है
इसमें प्रथम हैं चारा घोटाला में सबसे प्रमुख अभियुक्त समझे गये श्याम बिहारी सिन्हा
का अंतिम संस्कार। जिनके अपने परिवार के लोगों को लाश जलाने की जल्दबाजी थी।
सच यह था कि घरवालों के दबाव में वहां अंतिम क्रिया करने वालों ने पूरी लाश जले बिना
ही उसे किनारे कर दिया। यानी साफ शब्दों में कहें तो श्याम बिहारी सिन्हा की पूरी लाश
भी नहीं जल पायी थी। ऐसा तब था जब उनके परिवार और रिश्तेदारों के अलावा उनसे
फायदा पाने वालों की एक बड़ी फौज वहां मौजूद थी। अब दूसरा घटनाक्रम सजल चक्रवर्ती
का, जहां मुख्यमंत्री की पहल की वजह से प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे। साथ ही मौजूद
थी वह भीड़, जिनमें से अधिकांश सजल चक्रवर्ती को अपना मानते थे।
सजल को कांग्रेसियों ने सिर्फ शोक संदेश तक ही याद किया
इस बात को देखकर भी दुख हुआ कि युवा कांग्रेस से युवावस्था में जुड़े रहे सजल को
कांग्रेसियों ने सिर्फ शोक संदेश तक ही याद किया। वैसे अधिकांश चेहरे भी नहीं दिखे,
जिन्हें किसी न किसी मौके पर लीक से हटकर सजल चक्रवर्ती ने मदद पहुंचायी थी। ऐसे
नामों की सूची बड़ी लंबी है, जिन्हें उन्होंने नौकरी दी, कारोबार स्थापित करने में मदद की,
राशन दुकान दिया या फिर बंदूक के लाईसेंस जारी किये। कोयले के कारोबार में भी अनेक
लोगों ने उनके नाम का नाजायज फायदा उठाया था। इसके बाद भी वह जीवन में निजी
रिश्तों के मामले में बिल्कुल अकेला ही थे। लेकिन उनका अंतिम संस्कार ही यह साबित
कर गया कि वह यारों का यार थे और कहावत सच साबित हुई कि जिसका कोई नहीं
उसका तो खुदा है यारों।
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