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पुराने आंकड़ों से मिलान के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं
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इंसानों को इस परिवर्तन का एहसास नहीं होता
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अंतरिक्ष अभियानों के लिए समय महत्वपूर्ण
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एटोमिक घड़ी से होता है बदलाव का मिलान
राष्ट्रीय खबर
रांचीः पृथ्वी के घूमने की गति पिछले पचास वर्षों में तेज हुई है। कोरोना पीड़ित वर्ष 2020
में यह आंकड़ा भी हमारे लिए कुछ अजीब अवश्य है लेकिन यही सत्य है। वर्ष 1960 से अब
तक के आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह नतीजा निकाला है। इस बात का उल्लेख
जरूरी है कि कोरोना और उसकी वजह से लॉकडाउन के दौरान वर्ष 2020 हम सभी के लिए
किसी बुरे सपने की तरह रहा। इस वर्ष पृथ्वी के तेज घूमने के 28 दिन का आंकड़ा दर्ज हुआ
है। अपनी धूरी पर घूमती हुई पृथ्वी ने कुछ मिलि सेकंड में अपनी चक्कर पूरी की है।
हमलोगों को भले ही इस बदलाव का पता नहीं चल पाया हो लेकिन वैज्ञानिक यंत्रों ने इसे
अच्छी तरह दर्ज किया है। यूं तो यह कोई विशेष चिंता की बात नहीं है क्योंकि अंतरिक्ष के
कई कारणों से सूर्य के चारों तरफ घूमती हुई पृथ्वी में यह बदलाव हो सकता है। ऐसा कोई
पहली बार भी नहीं हो रहा है। लेकिन इस एक साल में बीस बार ऐसा होना निश्चित तौर
पर वैज्ञानिकों को पूरे घटनाक्रम का बारिकी से विश्लेषण करने को मजबूर कर गया है।
वैज्ञानिक परिभाषा में पृथ्वी के तेज घूमने के आंतरिक और वाह्य कारण हो सकते हैं। कई
बार वायुमंडल के दवाब, हवा के प्रवाह, समुद्री प्रवाह और पृथ्वी के केंद्र में होने वाली
गतिविधियों से भी यह प्रभावित होता है। इसके अलावा सौरजगत में ग्रहों और तारों के
आकर्षण और गुरुत्वाकर्षण की वजह से भी ऐसा मामूली अंतर पड़ सकता है। लेकिन
वैज्ञानिकों के समक्ष असली प्रश्न यह है कि ऐसा अगर एक वर्ष में बीस बार हुआ है तो
उसकी वजहें क्या रही हैं। वैज्ञानिक अपने अत्याधुनिक यंत्रों में दर्ज समय और उस वक्त
की परिस्थितियों का विश्लेषण कर रहे हैं, ताकि किसी नतीजे पर पहुंचा जा सके।
पृथ्वी के घूमने का सही आंकडा एटमिक घड़ी बताता है
पृथ्वी के तेज घूमने का आंकड़ा हमें भले ही महसूस नहीं होता हो लेकिन वैज्ञानिक कार्यों
के लिए इस्तेमाल होने वाली परमाणु घड़ी में यह बदलाव नियमित तौर पर दर्ज होता है।
इसी एटोमिक घड़ी में यह अंतर दर्ज किया गया है। वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में समय के
बदलाव को दर्ज करने के लिए ऐसे ही परिष्कृत उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। पिछले
पचास वर्षों में सिर्फ एक ही वर्ष में बीस बार ऐसा क्यों हुआ, यह सवाल फिलहाल तो
वैज्ञानिकों के लिए भी एक पहेली है। जब कभी 0.4 सेकंड का अंतर हो जाता है तो घड़ी मे
समय को बदला जाता है ताकि सब कुछ सही तरीके से चल सके। इससे पहले भी पृथ्वी के
घूमने की गति में बदलाव आये हैं। यह आम तौर पर एक लीप सेकंड का होता है जो
सामान्य तौर पर जून या दिसंबर के अंत में होता रहा है। समय के इस बहुत ही छोटे से
बदलाव को इंसान महसूस भी नहीं कर पाता है। वर्ष 1960 के बाद 70 के दशक में वर्ष
1972 तक यह क्रम चलता आया है। वैज्ञानिक इस बदलाव को समझ चुके थे इसीलिए
प्रति डेढ़ साल के अंतराल पर एक लीप सेंकड का बदलाव दर्ज किया जाता रहा है।
इससे पहले अंतिम बार वर्ष 2016 के नये साल में इसे दर्ज किया गया था। नेशनल
इंस्टिट्यूट ऑफ स्टैंडर्डस एंड टेक्नोलॉजी में उस कालखंड में 23 घंटे 59 मिनट और 59
सेकंड के बदले एक लीप सेकंड जोड़कर साल को पूरा किया गया था। लेकिन इस बार की
स्थिति कुछ अलग ही है क्योंकि वर्तमान में पृथ्वी के घूमने की गति उल्टी दिशा में तेज
हुई है यानी समय से पहले ही पृथ्वी का अपनी धूरी पर घूमने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
समय से पहले घूमना कोई नई बात नहीं है
आम तौर पर एक दिन में 86,400 मिलि सेकंड होते हैं। इसलिए चालू वर्ष में हमारे समय में
19 मिलि सेकंड और जोड़ने की नौबत आयी है। वैसे इसका क्या कुछ प्रभाव पड़ सकता है,
इस बारे में वैज्ञानिक किसी त्वरित नतीजे पर पहुंचने से परहेज कर रहे हैं। सिर्फ वैज्ञानिक
आंकड़ों के आधार पर यह बता रहे हैं कि समय के बढ़ने अथवा घटने का काम पहले भी
होता आया है। इस किस्म के बदलाव को अंतरिक्ष अभियानों के लिए बारिकी से देखा जाता
है। लेकिन समय में अधिक बदलाव होने पर समय आधारित सूचना तकनीक पर निर्भर
सारे यंत्रों में भी ऐसा ही बदलाव किये बिना भारी गड़बड़ी हो सकती है। इस बदलाव के बारे
में इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशंस यूनियन ने सुझाव दिया है कि आणविक स्तर पर होने
वाले इस बदलाव को टेलीकम्युनिकेशंस आधारित संयंत्रों के लिए भी महत्वपूर्ण माना है।
पेरिस (फ्रांस) स्थित इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम्स सर्विस अभी इस पर
आगे का अनुसंधान कर रहा है।
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