मुंबईः भारतीय व्यापार जगत ने कोरोना संकट के दौरान नासमझी दिखायी है और यह
इंसानियत का तकाजा नहीं था। यह राय जाहिर की है प्रमुख उद्योगपति और टाटा समूह
के अध्यक्ष रतन टाटा ने। उन्होंने कहा कि कोरोना संकट के दौरान सिर्फ मुनाफे की चाह ही
गलत सोच है। ऐसे संकट की स्थिति में खास तौर पर उद्योग जगत को अपने सारे लोगों
की कुशलता पर ध्यान रखते हुए संकट से उबरने पर सोचना चाहिए था। दुर्भाग्य से
भारतीय उद्योग जगत सिर्फ अपने कामगारों की छंटनी जैसा कठोर और क्रूर फैसला लेने
वाला साबित हुआ है। उनका यह बयान तब आया है जबकि टाटा ने इस संकट के दौरान
खर्च कम करने के अनेक उपाय किये हैं लेकिन अपने कर्मचारियों की छंटनी नहीं की है।
श्री टाटा और टाटा घराने अपने सामाजिक दायित्व के लिए अलग पहचान रखता है।
उन्होंने कहा कि व्यापार करने का अर्थ सिर्फ मुनाफा कमाना भर नहीं होता है। यह एक
अनंत यात्रा है और इसमें ध्यान रखना चाहिए कि आपके इस सफर में कितने लोग आपके
साथ कदम से कदम मिलाकर चल पा रहे हैं। उन्होंने साफ साफ कहा कि कोरोना संकट
भारत में यह दिखा गया है कि यहां के कॉरपोरेटन जगत में लीडरशिप से हमदर्दी का
अभाव प्रदर्शित करने वाला रहा है। सड़कों पर बिना किसी आसरे के पैदल चलते मजदूरों
की हालत बयान करते हुए इस स्थिति पर रतन टाटा ने दुख व्यक्त किया है। उन्होंने कहा
कि इस किस्म के संकट के दौर में कंपनी के शीर्ष की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने
हर कामगार की सुरक्षा का ख्याल करे। इसके लिए हरेक को नये विचारों के साथ आगे
बढ़ना पड़ता है। उन्होंने कहा कि वैसे भी संकट के दौर में भारत नये विकल्पों पर विचार
कर उस पर अमल करने की अलग पहचान रखता है।
भारतीय व्यापार जगत में सिर्फ मुनाफा ही मकसद नहीं
रतन टाटा ने कहा कि जब हर कोई मुनाफे की दौड़ में है तो यह सवाल भी उठता है कि आप
अपनी यात्रा में कितनों को साथ लेकर चले। बिजनेस सिर्फ पैसे बनाने के लिए नहीं होता।
किसी भी कंपनी को अपने अपने स्टेकहोल्डर्स और ग्राहक को लेकर ही सब कुछ तय
करना चाहिए। टाटा समूह ने इस संकट के दौर में अपनी शीर्षस्थ अफसरों की वेतन में
बीस प्रतिशत तक कटौती करने का फैसला किया है। लेकिन अपने किसी भी उद्योग में
उसने छंटनी नहीं की है। साथ ही इस संकट के दौर में टाटा ने पीएम केयर्स फंड में भी पंद्रह
सौ करोड़ रुपये का योगदान दिया है।
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