रांची का बड़ा तालाब को जब से सुधारने की कवायद हो रही है, तब से इसकी
स्थिति और बिगड़ती चली गयी है। बात सिर्फ वर्तमान निर्माण कार्यों और
भावी योजनाओं की नहीं है। पिछले चार दशक से इस तालाब की दशा सुधारने
के लिए जो असली काम होना चाहिए, यह आज तक सही तरीके से नहीं हो
पाया। नतीजा है कि नालों का गंदा पानी का बहाव इस तालाब में लगातार
होने की वजह से सारा तालाब की प्रदूषित हो चुका है।
इसलिए सीमेंट के पैदल पथ, घाट और बैठने के स्थान बना देने भर से
बड़ा तालाब सिर्फ देखने के लिए अच्छा स्थान हो जाएगा। इसकी स्थिति
में कोई गुणात्मक सुधार नहीं होने वाला है। सिर्फ इन निर्माण कार्यों के
सफल होने पर लोगों को वहां आने में सुविधा होगी। लेकिन तालाब
जिस मकसद से खोदा गया था, वह मकसद पूरा नहीं हो पायेगा।
रांची का यह तालाब वर्ष 1842 में कैदियों ने खोदा था
52 एकड़ क्षेत्रफल के इस तालाब का निर्माण रांची जेल के कैदियों ने किया था।
वर्ष 1842 में जेल के कैदियों की मदद से तत्काली प्रभारी अंग्रेज अधिकारी
कर्नल ओनस्ले ने इस तालाब का निर्माण कराया था।
समुद्र ताल से करीब 21 सौ फीट की ऊंचाई पर बने इस तालाब में दो स्थानों
पर द्वीप जैसी संरचना है।
दरअसल तालाब की खुदाई के वक्त कितनी मिट्टी वहां से काटी गयी है, उसका
हिसाब रखने के लिए ही इन्हें इस तरीके से छोड़ा गया था।
अब इस पूरे इलाके के सुंदरीकरण के तहत दोनों को पैदल पुल से जोड़ने के
साथ साथ चारों तरफ पैदल चलने का पथ बनाया जा रहा है।
सारा कुछ अगर सही तरीके से बन गया तो यह वाकई देखने लायक सुंदर
स्थान होगा।
इस लिहाज से इसे रांची के अन्यतम बेहतर पर्यटन स्थल के तौर पर भी
जाना जाएगा। लेकिन असली सवाल इस तालाब के पानी का है।
पर्यटन स्थल बनने के बाद भी पानी की समस्या नहीं दूर होगी
इससे पहले भी जब गंदे पानी को तालाब में जाने से रोकने की योजना बनी
थी तो इंजीनियरों को सीमेंट की नाली पसंद आयी थी। आम जनता इसे खुली
नाली बनाने के पक्ष में थी। आम जनता की सोच थी कि नाली खुली रहने की
स्थिति में उसकी सफाई हो सकेगी।
दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो पाया और बनने के चंद साल बाद ही यह सीमेंट की
नाली अपने जरूरत को पूरा करने मे पूरी तरह विफल साबित हुई।
बंद नाली बनी तो चंद वर्षों में ही बेकार हो गयी
अब नये सिरे से जब इसे सुंदर बनाने की बात हो रही है तो सिर्फ इस योजना
के तहत एक गंदे पानी को साफ करने के वाटर ट्रिटमेंट प्लांट से तालाब के
जल की गुणवत्ता सुधरेगी, इस पर संदेह है।
साथ ही तालाब के जल भंडारण क्षमत को फिर से पूर्ववत बनाने पर कोई
योजना नहीं है। यह तालाब और उसके जल भंडारण क्षमता पर आस-पास
का भूगर्भस्थ जल स्तर निर्भर करता है।
इसलिए मूल जरूरत इसे सुधारने की है, जिस पर किसी का ध्यान ही नहीं है।
सुंदरीकरण के नाम पर सीमेंट का जितना काम होता है, उससे लागत बढ़
जाती है। इससे कमीशन भी अच्छा मिल जाता है लेकिन प्राकृतिक संसाधनों
के साथ यह खिलवाड़ आखिर कब तक चलती रहेगी, यह बड़ा सवाल है।
तालाब में अगर साफ पानी नहीं हो और वह आस-पास के इलाके के भूगर्भस्थ
जल स्तर को नहीं सुधार पाये तो इसकी मूल जरूरत ही पूरी नहीं होती।
आस-पास के जल स्तर को भी नहीं सुधार पा रहा यह जलागार
नीति निर्धारकों को चाहिए कि इस सीमेंट के निर्माण कार्यों के साथ साथ वे
बड़ा तालाब की खुदाई कर वहां वर्षों से जमा कचड़े को साफ करें। यह काम
दीर्घकालीन है और सिर्फ ड्रेजिंग के माध्यम से ही किया जा सकता है।
कुछ ऐसा ही उपाय सिकिदिरी सहित अन्य डैमों पर भी आजमाया जाना
चाहिए, जहां सिल्ट जमा होने के कारण जलागारों की जल भंडारण की क्षमता
तेजी से कम होती चली जा रही है।
अब तो ड्रेजिंग के बिना नहीं सुधरेगी इसकी हालत
ड्रेजिंग के जरिए जब तालाब के अंदर वर्षों से जमा कचड़ा साफ होगा तभी
इसके जल भंडारण की क्षमता बढ़ेगी। दूसरी तरफ कचड़ा जो अब पत्थर जैसे
कड़े हो चुके हैं, उनके साफ होने पर पानी का रिसाव बेहतर होगी।
इससे आस पास के इलाकों मे भूमिगत जल का प्रवाह बेहतर होगा। इसलिए
सिर्फ निर्माण कार्य की लागत बढ़ाने की सोच के साथ साथ आम जनता के
हितों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए।
जब तालाब अथवा कोई भी जलस्रोत है, तो वह आम आदमी के काम आये,
इसे प्राथमिकता सूची में रखना होगा। वरना इससे भी भी अनेक किस्म के
निर्माण कार्यों पर खर्च होने वाले सरकारी धन का आम आदमी को कोई
फायदा नहीं मिल पाया है, इसे हम अपनी आंखों से हर तरफ देख पा रहे हैं।
रांची का बड़ा तालाब पर पिछले चालीस वर्षों से जलकुंभी साफ करने की
मजदूरी में जितने पैसे खर्च हुए हैं, उससे कम पैसे में तालाब का पानी पूरी
तरह साफ किया जा सकता था।
चालीस वर्षों की उपेक्षा का परिणाम है यह बदहाली
बड़ा तालाब में जब भी तालाब का शब्द जुड़ता है तो सामान्य समझदारी की
बात है कि इसमें पानी का उल्लेख है। इसलिए पर्यटन विकास और सुंदरीकरण
की योजनाओं के बीच हम यह तो कतई नहीं भूल सकते कि यह दरअसल
पानी के भंडारण का एक केंद्र है। इसलिए हर योजना में पानी कैसे साफ और
स्वच्छ रहे, इस सोच को भी शामिल रखना होगा। वैज्ञानिक जानकारी के
मुताबिक जब तालाब पुराने हो जाते हैं तो उसके तल पर एकत्रित मिट्टी को
साफ कर उसे फिर से बेहतर बनाया जाता है। दुर्भाग्यवश बड़ा तालाब के साथ
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है और लगातार गंदगी और मिट्टी जमने की वजह से
उसके तल पर कई फीट का कचड़ा एकत्रित है। इसकी वजह से उसके जल
भंडारण की क्षमता बहुत कम हो चुकी है। बिना मांगे सलाह देना उचित नहीं
है। फिर भी इसे सुधारने की सोच रखने वालों को सिर्फ और सिर्फ ड्रेजिंग के
बारे में विचार करना चाहिए।
ड्रेजिंग की सफाई की तकनीक को जानना होगा पूरे राज्य को
लागत के तोर पर यह भले ही कुछ लोगों को नागवार गुजरेगा क्योंकि
आपत्ति करने वाले अधिकांश लोगों को इसमें अपनी कमाई नजर ही
नहीं आयेगी। लेकिन अगर वाकई बड़ा तालाब और आस पास के इलाके के
जल स्तर को सुधारना और बेहतर बनाना है तो अब कोई और विकल्प नहीं
बचा है। इस जल भंडारण क्षेत्र की गहराई से मिट्टी और कचड़ा निकालने के
साथ साथ उसकी निरंतर सफाई के साथ साथ पानी को साफ कर दोबारा
तालाब में डालने की पद्धति अपनानी पड़ेगी। जैसे जैसे कचड़ा और मिट्टी
साफ होती जाएगी, वैसे वैसे अंदर की सतह पर कठोर हो चुके आवरण भी
हल्के होंगे, जिन्हें सिर्फ ड्रेजिंग के माध्यम से ही निकाला जा सकता है।
वर्तमान स्थिति में इस रांची का तालाब में कमसे कम सात से दस फीट की
गहराई तक कचड़ा एकत्रित हो गया है। इसे निकालना अब कोई आसान काम
नहीं रह गया है। लेकिन यह भी तय है कि जब एक बार यह काम पूरा कर
लिया जाएगा तो अगले दो दशक तक यह तालाब फिर से रांची के आस-पास
के इलाके को पानी की आपूर्ति करता रहेगा।
इसके प्रयोग से हमें पूरे राज्य के लिए नया रास्ता मिलेगा
साथ ही एक अपेक्षाकृत छोटे से तालाब की सफाई से पूरे राज्य को तालाबों की
सफाई की नई जानकारी प्राप्त होगी। इससे वाकिफ होने के बाद हम क्रमवार
तरीके से राज्य के बड़े डैमों की सफाई का भी काम कर सकेंगे। क्योंकि
प्रारंभिक अनुभव के बाद हम दरअसल यह समझ पायेंगे कि इस ड्रेजिंग के
लाभ क्या क्या है। भविष्य में इसी विधि से मृतप्राय हो चली नदियों की सफाई
का काम भी हम कर सकेंगे. वरना राज्य की अधिकांश नदियों की जो हालत
है, उसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमें हर बार मार्च महीने के अंत से ही दिखने लगता
है। भावी पीढ़ी को रेगिस्तान से बचाने के लिए यह तरकीब फिलहाल हमारे
नियंत्रण में हैं। इसलिए बिना झिझक और निजी कमाई की चिंता किये नीति
निर्धारकों को इस पद्धति को आजमाना चाहिए।
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