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दोनों तरफ समा गया है पार्टी टूटने का भय
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भाजपा के वार से चित होने लगी थी सरकार
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फिर साबित हुआ कि वसुंधरा राजे का कद क्या है
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राहुल और प्रियंका से हुई है सचिन पायलट की मुलाकात
विशेष प्रतिनिधि
नईदिल्लीः राजस्थानी के सियासी बिसात की बाजी किस तरफ पलटेगी, यह अब सामान्य
बुद्धि के बाहर चला गया है। जब यह संकट प्रारंभ हुआ था तो ऐसा महसूस हुआ था कि
शायद अशोक गहलोत अपनी सरकार नहीं बचा पायेंगे। जैसे जैसे समय बीत रहा है, यह
स्पष्ट होता जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को नजरअंदाज किये जाने
की बड़ी कीमत भाजपा चुका रही है। भाजपा नेतृत्व की तमाम कोशिशों के बाद भी वसुंधरा
समर्थक विधायक नकेल कसने के लिए तैयार नहीं है। अंदरखाने से इस बात की भी चर्चा
होने लगी है कि अगर भाजपा नेतृत्व ने ज्यादा दबाव बनाया तो वसुंधरा राजे अपना चौका
चूल्हा अलग भी करने की तैयारी कर चुकी है। बीती रात से ही सोशल मीडिया पर उनके
समर्थक अलग से इसकी भनक देने लगे हैं।
राजस्थानी बिसात में वसुंधरा राजे का कद अब भी ऊंचा है
अगर वाकई ऐसी राजस्थानी स्थिति अंदरखाने में है तो यह समझा जाना चाहिए कि राजस्थान में
भाजपा नेतृत्व के मुकाबले वसुंधरा राजे का कद अब भी ऊंचा है। पिछले चुनाव के पहले से
ही उनके साथ अमित शाह की दूरी बढ़ते चले जाने के स्पष्ट संकेत मिले थे। लेकिन इस
बार बिना उनकी सहमति के कांग्रेस सरकार गिराने की मुहिम को चालू करने के बाद
उन्होंने अपने हाथ न सिर्फ पीछे खींच लिये हैं बल्कि उनके समर्थकों के तेवर से साफ है कि
वे फिलहाल तो समझौता करने की तैयारियों में नहीं हैं।
भाजपा की उम्मीद बढ़ाने वाले सचिन पायलट भी अंततः भाजपा में शामिल होने से पीछे
हट गये हैं। जिसका नतीजा है कि अब तक मुख्यमंत्री की मांग के बाद भी राज्यपाल ने
विधानसभा में शक्ति परीक्षण की अनुमति नहीं दी है। इसी वजह से पहले कांग्रेस अपने
विधायकों को एकजुट रखने के लिए भागा भागा फिर रहा था। अब भाजपा को अपने
विधायकों के भाग जाने का खतरा नजर आने लगा है। भाजपा के अनेक विधायकों को
इसी वजह से अब गुजरात ले जाया गया है। लेकिन उसके बाद भी ऊंट किस करवट बैठेगा,
यह स्पष्ट नहीं हो पाया है।
शह और मात के खेल में अब सचिन पायलट की यहां राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से
मुलाकात होने के बाद ऐसा समझा जा रहा है कि कांग्रेस खेमा में कोई समझौता फार्मूला
निकल सकता है। लेकिन राजस्थान के सियासी गलियारे से इस बात के भी संकेत मिल
रहे हैं कि पार्टी को दगा देने वालों को फिर से सरकार देने के मूड में गहलोत खेमा नहीं है।
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