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प्रॉक्सिमा सेंचुरी के तारा से आ रहा है संकेत
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खास ध्वनि तरंग की अलग से पहचान हुई है
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इस तरंग की बनावट प्राकृतिक नहीं लगती है
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खगोल वैज्ञानिकों ने इलाके की पहचान की
राष्ट्रीय खबर
रांचीः नजदीक के एक तारा से रेडियो संकेत पकड़ में आये हैं। खगोल वैज्ञानिकों को धरती
पर स्थापित रेडियो टेलीस्कोप की मदद से इन संकेतों को पकड़ने में कामयाबी मिली है।
वैसे किसी दूसरे ग्रह अथवा तारा से किसी वाह्य जगत के प्राणियों पर आधारित कई
साइंस फिक्शन फिल्में बन चुकी हैं। इन सभी को काफी पसंद भी किया गया है। हिंदी
फिल्म जगत की बात करें तो इस कड़ी में सबसे कामयाब फिल्म कोई मिल गया रहा है।
जिसकी कई कड़ियां बाद में भी बन चुकी हैं। इसमें भी बाहरी जगत के प्राणियों के धरती
पर आने पर ही फिल्म की कहानी आधारित थी।
अब अत्याधुनिक रेडियो टेलीस्कोप इस दिशा में वैज्ञानिकों की काफी मदद कर रहे हैं। वर्ष
2015 में एक अमीर व्यक्ति यूरी मिलनर ने इसके लिए अलग से प्रयासों को समर्थन दिया
था। इस तकनीकी प्रयास के तहत नजदीक के लाखों तारों से मिलने वाले संकेतों की
पहचान करने का काम प्रारंभ किया गया था। पांच साल के निरंतर प्रयास के बाद अब यह
पाया गया है कि प्रॉक्सिमा सेंचुरी में स्थित एक तारा से लगातार ऐसे रेडियो संकेत आ रहे
हैं, जो प्राकृतिक नहीं हो सकते हैं। अंतरिक्ष का यह इलाका पृथ्वी से करीब 4.2 प्रकाश वर्ष
की दूरी पर है। वैसे इस रेडियो तरंग को पकड़ने वाले अभी तुरंत किसी निष्कर्ष पर पहुंचना
नहीं चाहते हैं। फिर भी वे प्रारंभिक तौर पर यह मानते हैं कि यह संकेत संभवतः प्राकृतिक
तौर पर तैयार नहीं हो रहे हैं। अगर वाकई यह सोच सही है तो यह भी माना जा सकता है
कि वहां के कोई प्राणी ही अत्याधुनिक विज्ञान की सहायता से हम तक यह संकेत भेज रहा
है।
नजदीक का एक तारा का संकेत पकड़ने में वक्त लगा
सुदूर अंतरिक्ष से आने वाले रेडियो संकेतों को पकड़ने के लिए खास किस्म के रेडियो
टेलीस्कोप की आवश्यकता पड़ती है। ऐसा ही एक टेलीस्कोप ऑस्ट्रेलिया अथवा पश्चिमी
वर्जिनिया के ग्रीन बैंक वेधशाला में है। यहां लगे उपकरण लगातार ऐसे रेडियो संकेतों की
जांच पड़ताल करते रहते हैं। अप्रैल और मई 2019 में पहली बार यहां के वैज्ञानिकों को
आम संकेतों से कुछ अलग सुनाई पड़ा था। उस वक्त लगातार तीस घंटे तक 980
मेगाहर्टस के तरंग पर यह संकेत आता रहा। इस अलग किस्म का संकेत मिलने के बाद
उस सुक्ष्म रेडियो तरंग के केंद्र की पहचान का काम प्रारंभ किया गया था। जिसके बाद उस
तारे की पहचान की गयी, जहां से यह संकेत आने का अनुमान लगाया गया है।
प्रॉक्सिमा सेंचुरी में स्थित तारा से यह संकेत आने की वजह से भी वैज्ञानिक उत्साहित है।
इसकी खास वजह अंतरिक्ष की स्थिति के मुताबिक इस इलाके का पृथ्वी के काफी करीब
होना है। वैसे यह भी बताते चलें कि इतने करीब होने के बाद भी हमारा आधुनिक अंतरिक्ष
विज्ञान वहां तक पहुंचने की गति का यान अथवा उपकरण फिलहाल तैयार नहीं कर पाया
है। मौजूदा अंतरिक्ष विज्ञान में सबसे तेज अंतरिक्ष यान वोयजर 1 है। यह पिछले तीस वर्षों
में एक प्रकाश वर्ष का छह सौंवा हिस्सा तय कर पाया है। वर्तमान में वह प्रकाश की गति के
18 हजारवें हिस्से की गति से सफर कर रहा है। इस लिहाज से उसे भी प्रॉक्सिमा सेंचुरी
तक पहुंचने में 80 बजार वर्ष लगेंगे।
अभी भी हमारा विज्ञान वहां पहुंचने के लायक आधुनिक नहीं
इस रेडियो संकेत की जांच करने वाले वैज्ञानिक मानते हैं कि यह किसी एक तारा अथवा
उसके चक्कर काट रहे किसी ग्रह से आ रहा है। अंतरिक्ष के इस इलाके में पृथ्वी के लायक
माहौल वाले तारा अथवा ग्रह हैं, इसकी पुष्टि पहले ही हो चुकी है। वर्ष 2016 में एक ऐसे ही
एक्सोप्लानेट की पहचान भी कर ली गयी थी। इसलिए सैद्धांतिक तौर पर यह माना जा
रहा है कि ऐसे रेडियो संकेत वहां निवास करने वाले प्राणियों द्वारा प्रेषित हो सकते हैं
लेकिन वैज्ञानिक इसे अंतिम निष्कर्ष नहीं मानते हैं। जिस संकेत के आधार पर यह सब
कुछ हो रहा है, उसे दूसरे संकेतों से अलग करने के लिए बीएलसी 1 का नाम दिया गया है।
यह रेडियो तरंग अब गहन वैज्ञानिक शोध के दौर से गुजर रहा है। अंतरिक्ष में पृथ्वी के
जैसे अनेक इलाके एक एक कर पाये जा रहे हैं। लेकिन वहां किसी भी किस्म का जीवन है
अथवा नहीं उसकी पुष्टि अब तक नहीं हो पायी है। आधुनिक विज्ञान इस बात को समझने
की लगातार कोशिश कर रहा है कि अगर सौरमंडल में कहीं और जीवन है तो वह किस
किस्म का है। यह सारा शोध भी उसी पर आधारित है।
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