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गौरेया भी खतरनाक डायनासोर थी प्राचीन काल में
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अनेक अनुवांशिक समानताएं अब भी मौजूद हैं इनमें
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हड्डियों का ढांचा और मांसपेशियां भी पहले के जैसी
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आकार छोटा होने के बाद भी आंतरिक संरचना समान
प्रतिनिधि
नईदिल्लीः चिड़ियां अपने आप में हमेशा ही इंसान को पसंद रही हैं।
खास तौर पर अनेक प्रजाति की चिड़िया इस दुनिया में सुरक्षित रहे,
इस पर काफी काम भी चल रहा है। ऐसे इसलिए किया जा रहा है
क्योंकि इनमें से कुछ पक्षी प्रजाति विलुप्ति की कगार पर हैं। लेकिन
अब यह राज भी सामने आ रहा है कि क्रमिक विवर्तन यानी स्वरुप में
बदलाव की कड़ी के लिहाज से चिड़ियों के असली पूर्वज डायनासोर भी
हो सकते हैं। शोध के दौरान यह राज खुला है कि गौरेया, हंस और उल्लु
के बीच जो डीएनए संरचना की समानता है वह उनका रिश्ता प्राचीन
थेरापोड्स से जोड़ती है। यह डायनासोर की ही एक मांसाहारी प्रजाति
है। इस प्रजाति के प्राचीन कुछ पक्षियों में वेलोसिराप्टर जैसे विशाल
डायनासोर पक्षी भी रहे हैं। उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर वैज्ञानिक
यह मान रहे हैं कि इस प्रजाति का अस्तित्व पृथ्वी पर 231 मिलियन
वर्ष पहले थे। यानी यह काल डायनासोर के राज करने के पहले का
समय है। वहां से अब तक के सफर में इसमें जो समानताएं अब भी
कायम हैं, उनमें पंख और अंडे देने के बाद उसे चूजा बनाने तक गर्मी
प्रदान करना प्रमुख है। यह काम प्राचीन काल की डायनासोर की
प्रजातियां भी किया करती थी। आकार में काफी भिन्नता आ जाने के
बाद भी यह सारे गुण अब तक विद्यमान हैं।
चिड़ियां की हर प्रजाति में कमोबेशी यह गुण मौजूद
इस वंश से रिश्ता रखने वाले वर्तमान प्रजाति के कुछ चिड़ियों में उड़ने
का गुण अब नहीं बचा है। लेकिन वे अपनी टांगों की बदौलत तेजी से
दौड़ सकते हैं और जरूरत पड़ने पर बहुत कम दूरी के लिए उड़ भी
सकते हैं। इन कारणों से वर्तमान प्रजाति के कई चिड़ियां को वैज्ञानिक
अब डायनासोर के वंशज मान रहे हैं। इन वैज्ञानिकों का तर्क है कि
प्राचीन काल के विशाल आकार के आक्रामक डायनासोर अब भले ही
पृथ्वी पर नहीं हों लेकिन डायनासोर की प्रजाति के यह स्वरुप तो पृथ्वी
पर वाकई मौजूद हैं। अब तो शोधकर्ता उन चिड़ियों का भी वर्गीकरण
कर रहे हैं तो इस प्रजाति में शामिल समझे जा सकते हैं।
टेक्सास विश्वविद्यालय की प्रोफसर जूलिया क्लार्क का कहना है कि
आकार में काफी परिवर्तन होन के बाद भी उनके शरी के अंशों का
विवरण यही बताता है कि वे इसी प्रजाति के हैं। समय के मुताबिक
इनमें अलग अलग प्रजातियां बनी हैं और सभी के आकार प्रकार भी
बदल गये हैं। लेकिन मूल एक ही है। शोध का निष्कर्ष है कि चिड़ियां
की जितनी भी प्रजातियां अभी मौजूद हैं, उन सभी का इतिहास
डायनासोर के इसी प्राचीन प्रजाति से जाकर जुड़ता है। डायनासोर से
उनकी समानता अब भी पूंछ के पास बने हड्डी के ढांचे से दिखता है।
इसे वैज्ञानिक भाषा में पाइगोस्टाइल कहा जाता है। प्राचीन काल के
थेरोपोड्स में काफी कुछ बदलाव था लेकिन वर्तमान प्रजाति के
चिड़ियों में यह सारे गुण मौजूद हैं। ऐसी राय जापान के फूकाई स्थित
प्रि फेक्चुरल विश्वविद्यालय के रिसर्च इंस्टिटियूट के सहायक
प्रोफसर ताकुया इमान ने व्यक्त की है।
कई विश्वविद्यालयों में इस पर हो रहा है निरंतर शोध
वैज्ञानिकों को प्राचीन काल के पक्षियों के अनेक अवशेष भी मिले हैं,
जिनका अध्ययन किया गया है। इसी वजह से वर्तमान प्रजाति के
पक्षियों को उसी वंश का नया अवतार माना जा सकता है। प्राचीन काल
में चिड़ियों की प्रजाति आकार में बड़ा होने के साथ साथ डायनासोर के
नाम की तरह ही आक्रामक भी थे। समय के साथ यह सब कुछ बदला
है और उनके आकार भी अलग अलग हो चुके हैं। इस बात को समझने
के लिए शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर मॉडल का भी सहारा लिया है।
अलबत्ता बदलाव में यह प्रमुख बात है कि पहले जिन डायनासोर
प्रजाति की चिड़ियों का वजन टन में हुआ करता था वे बदलाव की
प्रक्रिया से गुजरते हुए अत्यंत हल्के हो गये हैं और छोटे आकार के इन
पक्षियों का वजन अब ग्राम में सिमट गया है। लेकिन इससे उनका
प्राचीन वंश नहीं बदला है। कंप्यूटर मॉडल से तुलना करने पर इस बात
का भी खुलासा हुआ है कि आंतरिक मांसपेशियोंकी संरचना भी
लगभग एक जैसी अब भी है जबकि हड्डियों के ढांचे से भी उनके
पूर्वजों का पता चल जाता है। इस बारे में दूसरा साक्ष्य शोधकर्ताओं को
चिड़ियों के पाचन तंत्र का भी मिला है। इसलिए अब जब कभी भी
आपके मन में डायनासोर कैसे दिखता है यह सोच उठे तो अपने घर के
बाहर किसी दीवार पर बैठे कोएं को अथवा तार पर बैठे गोरैया को या
फिर ऊंचाई पर उड़ते चील की गतिविधियों को देख लीजिए। आपको
एहसास हो जाएगा कि डायनासोर की प्रजाति कितनी चालाक और
खतरनाक थी।
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