भोपालः परित्यक्त गायों का भी बेहतर इस्तेमाल करने का नया उदाहरण मध्यप्रदेश में
प्रस्तुत किया गया है। मध्यप्रदेश के वन विभाग ने परित्यक्त अनुपयोगी गायों का
उपयोग कर रोपणियों को उत्कृष्ट गुणवत्ता की जैविक खाद के मामले में आत्म-निर्भर
बनाया। प्रधान मुख्य वन संरक्षक पी.सी. दुबे ने बताया कि फसलों के लिए रासायनिक
खाद और कीटनाशकों के दुष्प्रभावों को देखते हुए वन विभाग दो साल से विकल्प के रूप में
जैविक खाद और जीवामृत के प्रयोग के लिये प्रयासरत रहा है। इस दिशा में इंदौर की
बड़गोंदा रोपणी एक मॉडल के रूप में स्थापित हो रही है। करीब 100 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली
इस जैविक रोपणी में रोपणी में अक्टूबर 2018 से मात्र दो गायों थी। यहाँ अब 21 गायें हैं,
जिनसे रोज 120 किलो गोबर, 25 लीटर गौमूत्र मिलता है, जिसका प्रयोग जैविक खाद और
जीवामृत बनाने में किया जा रहा है। इससे न केवल रोपणी आत्मनिर्भर बनी है बल्कि
पौधों को भी रासायनिक दुष्प्रभावों से मुक्त खाद और कीटनाशक मिलने से उनकी
गुणवत्ता और स्वास्थ्य में बढ़ोत्तरी हुई है। नर्सरी में 50 किलो गोबर का उपयोग गैस
संयंत्र में और शेष 70 किलो केंचुआ खाद बनाने में किया जाता है। गायों के लिये यहाँ 25
हेक्टेयर चराई और 10 हेक्टेयर विचरण क्षेत्र के साथ पीने के पानी के लिये तालाब और
पानी की टंकी भी बनाई गई है। नर्सरी की निंदाई से भी गायों के लिये काफी चारा मिल
जाता है। अनुत्पादक होने के कारण लावारिस हो चुकी ये गायें अब वापस लोगों को प्रिय
होने लगी हैं। पंचायतें और जन प्रतिनिधि भी इन गायों के लिए पशु आहार देने लगे हैं।
परित्यक्त गायों से फायदा हुआ तो लोगों ने चारा भी दिया
श्री दुबे ने बताया कि रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रयोग ने अनेक बीमारियों को
जन्म दिया है। गाय की मदद से वन विभाग ने जैविक रोपणी शुरू की हैं। इंदौर के बाद
भोपाल, रीवा और सागर में भी यह कार्य शुरू किया गया है। गौवंश से प्राप्त गौमूत्र को
जीवामृत का रूप दिया जाता है, जो पौधों के विकास में अमृत के समान है। गौवंश के सींग
से बॉयो डायनामिक खाद भी बना सकते हैं। जैविक खाद एवं जैविक कीटनाशक पौधों की
वृद्धि में सहायक होने के साथ ही स्थानीय स्तर पर सरलता से प्राप्त और सस्ते हैं। इससे
पौधों की समुचित वृद्धि होती रहती है। जैविक खाद एवं कीटनाशक के रूप में नीम खली,
नीम का तेल, नारियल जूट से कोकोपिट निर्माण भी किया जा रहा है।
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