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चीन अब पानी के रास्ते भी हमला करने की तैयारी में

चीन को गलवान घाटी और तवांग के टकराव से ही जोड़कर नहीं देखा जा सकता। दरअसल चीन ने भारत को पछाड़ने या यूं कहें कि अपने सामने टिकने नहीं देने की योजना काफी पहले ही बनाया थी। सैनिकों का टकराव इसमें शामिल नहीं था। चीन के कब्जे वाले तिब्बत के इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी पर वह चोरी छिपे डैम का निर्माण कर रहा था, इसका खुलासा भी पहले ही हो गया था।

अब वह ब्रह्मपुत्र सहित तिब्बत से आने वाली अन्य नदियों का जल ही अपने रेगिस्तानी इलाकों तक पहुंचाना चाहता है। इससे उत्तरी पूर्वी भारत की नदियों के अस्तित्व को खतरा होगा। इन इलाकों की अर्थव्यवस्था भी खेती आधारित है और यहां की खेती भी इन नदियों से मिलने वाले जल पर आश्रित है।

इस लिहाज से चीन की यह कार्रवाई भारतीय विशेषज्ञों के ध्यान में है। इसी वजह से भारतीय विशेषज्ञ भी अपनी सीमा में इसकी काट की तैयारी कर रहे हैं और भारत भी डैम निर्माण के जरिए अचानक आने वाले पानी से होने वाली तबाही को रोकने तथा सिंचाई के लिए अतिरिक्त जल के भंडारण पर काम कर रहा है।

फिर भी चीन की तरफ से यह आर्थिक हमला जारी है। चीन ब्रह्मपुत्र घाटी में रणनीतिक रूप से बड़ी बांध और जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण की कोशिश में लगा है लेकिन हर बार इन आरोपों को झुठलाया है। हाल ही में चीन का एक झूठ और उजागर हुआ है। अब चीन ब्रह्मपुत्र घाटी पर पूरी तरह से आधिपत्य जमाने की रणनीति बना रहा है।

चोरी-छिपे मजबूत निर्माण कर रहा है। नीदरलैंड की संस्था यूरोपियन फाउंडेशन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत और चीन के बीच ऊर्जा परिवर्तन और क्षेत्रीय शक्ति के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा की वजह से दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय तनाव कम करने के बजाय और बढ़ने की संभावना है।

थिंक टैंक ने कहा कि चीन के लिए ऊर्जा उत्पादन के तौर-तरीकों में परिवर्तन करना उसके विकास मॉडल के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। चीन की इसी ऊर्जा परिवर्तन रणनीति (बिजली उत्पादन के लिए जीवाश्म आधारित प्रणालियों की बजाय अक्षय ऊर्जा पर जोर) की वजह से चीन और भारत के बीच ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली में टकराव के आसार बढ़ गए हैं क्योंकि दोनों ही देश इस क्षेत्र में हरित ऊर्जा के उत्पादन की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

ईएफएसएएस के अनुसार, ब्रह्मपुत्र बेसिन में चीन की नवीकरणीय ऊर्जा की प्राथमिकताएं उसकी रणनीतिक, सामरिक, आर्थिक और मध्यावधि राजनीतिक उद्देश्यों से भी जुड़ी हुई हैं। चीन की तुलना में भारत पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ईएफएसएएस की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास पांचवीं सबसे बड़ी जलविद्युत क्षमता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, यारलुंग जांग्बो नदी (ब्रहम्पुत्र का तिब्बती भाग) पर चीन की जलविद्युत परियोजनाएं ब्रह्मपुत्र नदी को भारत में एक मौसमी नदी में परिवर्तित कर देगी। इस कारण भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सूखे के रूप में सामने आ सकता है। लेकिन चीन की इन कोशिशों से पूरी दुनिया को भी खतरा हो सकता है, यह बात अब सामने आयी है।

जानकारी के लिए बता दें कि चीन में 1954 से 2005 तक करीब 3,486 डैम टूटे। डैम टुटने का सबसे बड़ा कारण था भारी बारिश का होना था। एक डैम टुटने चीन 5 करोड़ लोगों की जीवन को तबाह कर देता था। थ्री गोर्ज नाम के डैम में जब पानी अपने चरम पर पहुंच जाता था तो इसके प्रभाव के कारण पुथ्वी के घूमने की रफ्तार थोड़ी कम हो जाती थी।

इसलिए चीन की हाल की गतिविधियों पर अब दुनिया भर के पर्यावरण वैज्ञानिकों की भी नजर है क्योंकि वहां के तीन अति विशाल डैम पूरी धरती के घूमने की गति को कम करने से क्या कुछ परेशानियां आ सकती है, उसका आकलन अभी किया जा रहा है। आम तौर पर पृथ्वी के धीमी गति से घूमने से दुनिया के कई इलाकों में दिन की लंबाई बढ़ जाएगी।

इससे प्राकृतिक संतुलन को भी नुकसान पहुंच सकता है। कोरोना से तबाह हुई दुनिया अब चीन के दूसरे इस किस्म के प्रयोगों को झेलने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए भारत को नुकसान पहुंचाते हुए अपनी जल विद्युत परियोजना और खेती के लिए पानी का चीन की योजना के पीछे दुनिया की परेशानी भी छिपी हुई है।

पहले भी चीन में डैम टूटे हैं, इस वजह से आशंका इस बात की भी है कि पानी का अत्यधिक दबाब नहीं झेल पाने की स्थिति में अगर ऐसे विशाल डैम टूट गये तो फिर से चीन और भारत में तबाही आयेगी। चीन के इन निर्माणों पर संदेह इसलिए भी है क्योंकि पहले भी चीन के एक डैम को चूहों ने कुतर दिया था, जिसकी वजह से डैम ध्वस्त हो गया था। लिहाजा अब भारत के साथ साथ दुनिया भी चीन की गतिविधियों के बारे में अत्यधिक सतर्क है।

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