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मॉलिक्यूलर मेडिसीन के रिसर्च में नई जानकारी मिली
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तीसरा प्रोटिन ही सब कुछ नियंत्रित करता है
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दिमाग से संकेत पाकर सक्रिय होता है यह
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चोटों का ईलाज पहले से ज्यादा बेहतर होगा
राष्ट्रीय खबर
रांचीः मांसपेशियों को लेकर अब तक कई किस्म की भ्रांतियां रही हैं। खास कर युवा वर्ग में
इनदिनों अच्छी सेहत भले ना हो लेकिन अच्छी डील डौल का क्रेज चल रहा है। इसी
मकसद से युवा अक्सर ही जिम में कसरत कर अपनी मांसपेशियों को सुधारते हुए भी
नजर आते हैं। लेकिन इस में लोगों पर इसका अलग अलग प्रभाव कई बार लोगों को हैरानी
में डाल देता है। एक ही किस्म की लाइफ स्टाईल और एक ही किस्म का व्यायाम करने के
बाद भी एक जैसे लोगों में मांसपेशियों का विकास अलग अलग किस्म का होता है। यह
आम आदमी के लिए भले ही हैरत की बात हो लेकिन अब वैज्ञानिक इसकी वजह जान चुके
हैं। इस बात को समझने की शुरुआत की कहानी भी बड़ी रोचक है।
वीडियो में समझ लीजिए यह शरीर के अंदर कैसे होता है
किसी चोट की वजह से शरीर के किसी हिस्से की मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने पर वे कैसे
फिर से पूर्वावस्था में लौटती हैं, इसकी जांच से यह काम प्रारंभ किया गया है। जब शरीर के
किसी हिस्से में ऐसी चोट पहुंचती है तो शरीर के अंदर फिर के कोशिकाओं के विकास के
काम को वैज्ञानिक काफी गहराई से समझना चाहते थे। किसी भी कोष के दोबारा विकसित
होने के लिए शरीर के अंदर मौजूद स्टेम सेल पर निर्भर है। यह वैसी कोशिकाएं हैं जो न
सिर्फ खुद का विकास कर सकती हैं बल्कि शरीर के किसी हिस्से में किसी अन्य
कोशिकाओं की कमी होने पर आवश्यक प्रोटिन पैदा कर उसकी भरपाई कर देती हैं।
इसलिए यह बात पहले से ही वैज्ञानिकों की जानकारी में थी कि इसे कार्यों में स्टेम सेल की
क्या भूमिका होती है। उसके आगे शरीर के अंदर क्या कुछ होता है, इस बारे में पूर्व में कोई
जानकारी नहीं थी। अब इस रहस्य की एक सीढ़ी ऊपर पहुंचना वैज्ञानिकों के लिए संभव हो
पाया है।
मांसपेशियों पर यह शोध दो साल पूर्व प्रारंभ हुआ था
इस पर काम प्रारंभ होने के बाद करीब दो वर्ष पूर्व अनुसंधान प्रारंभ किया गया था। आम
तौर पर चिकित्सा शास्त्र यह बताता है कि मांसपेशियों का निरंतर विकास तब तक होता
रहता है जबतक संबंधित मानव का अपना शारीरिक विकास होता रहता है। यह एक
स्वाभाविक प्रक्रिया है। इससे अलग जब कोई व्यायाम और कसरत करने लगता है तो
उसके शरीर में उस काम को पूरा करने के लिए अतिरिक्त मांसपेशियां भी बनने लगती हैं।
बर्लिन स्थित मैक्स डेलब्रूक सेंटर फॉर मॉलिक्यूलर मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने इसके आगे
के रहस्य को समझा है। इस शोध दल के नेता प्रोफसर कारमैन बिरशीमेइर थे। इस शोध
के तहत यह पाया गया कि स्टेम सेल जब किसी मांसपेशी की कोशिका की मदद करते हैं
तो उसमें दो प्रोटिनों की प्रक्रिया बनती है। वैज्ञानिकों ने इन दो प्रोटिनों का नाम एचईएस1
और एमवाईओडी रखा है। यह दोनों मांसपेशी में कितनी कोशिकाओँ की आवश्यकता है,
उसे खुद ब खुद निर्धारित कर लेते हैं। निरंतर अनुसंधान में वैज्ञानिकों ने पाया है कि दोनों
प्रोटिन दरअसल शरीर के किसी भी हिस्से को कितने मांसपेशियों की आवश्यकता है,
उसका निर्धारण कर उसके आगे के काम को संचालित करते हैं। आम शब्दों में यह कहा जा
सकता है कि यह दोनों प्रोटिन उस हिस्से को विकास के लिए कंट्रोल स्विच का काम करते
हैं। काम पूरा होने के बाद यह प्रक्रिया खुद ही बंद कर दी जाती है। वैस भी शरीर के अंदर
यह काम इसलिए भी निरंतर चलता रहता है क्योंकि हर दिन लाखों कोशिकाओँ की मौत
होती हैं और उसी अनुपात में नयी कोशिकाओँ का निर्माण होता रहता है। उम्र बढ़ने के
साथ साथ कोशिकाओं के नष्ट होने की गति तेज होती है जबकि बनने की गति धीमी पड़
जाती है।
प्रोटिन दिमाग से जुड़े स्विच की तरह ही काम करता रहता है
वैज्ञानिकों ने पाया है कि इन दोनों के साथ साथ एक तीसरी ताकत में भी इसमें अहम
भूमिका निभाती है। इसे तीसरे प्रोटिन को डेल्टा प्रोटिन कहा गया है। इस शोध से जुड़े
जापान और फ्रांस के वैज्ञानिकों ने भी इस विधि को समझने में अपनी अपनी भूमिका
निभायी है। इस तीसरे प्रोटिन को संक्षेप में वैज्ञानिकों ने डीआईआई1 कहा है। यह प्रोटिन
शरीर के अंदर हर दो या तीन घंटे तक सक्रिय रहते हुए अपना काम कर जाता है। शरीर के
जिस किसी भी हिस्से पर अतिरिक्त कोशिकाओं के निर्माण संबंधी संकेत दिमाग तक
पहुंचता है तो वहां से जारी निर्देश के तहत संबंधित इलाके में यह प्रोटिन अपना काम
प्रारंभ करता है और काम पूरा करने के बाद गायब हो जाता है। इस बात को समझने के
लिए वैज्ञानिकों ने चूहों पर इसे आजमाया भी है, जो सफल रहा है। इस जानकारी से अब
यह उम्मीद की जा रही है कि मांसपेशियों की चोट संबंधी ईलाज में अब पहल के मुकाबले
और अधिक आसानी होगी और मरीज कम समय में स्वस्थ भी हो पायेंगे।
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