-
चूहों पर प्रारंभ हुआ था अनुसंधान
-
अपने से बड़े प्रोटिन तक को नियंत्रित करते हैं
-
डीएनए और आरएनए की कड़ी को बदल रहे हैं यह
-
आंखों से नजर नहीं आता पर बदल रही है यह अदृश्य दुनिया
प्रतिनिधि
नईदिल्लीः मिनी प्रोटिन की कारगुजारियों का वैज्ञानिकों को अब पता चल पाया है।
आम तौर पर यह आम इंसानों की नजर से ओझल गतिविधियां ही हैं।
जैविकी और जेनेटिक्स की दुनिया में तेजी से बदलाव हो रहा है।
हम आम इंसानों को भले ही यह परिवर्तन नजर नहीं आता हो
लेकिन सुक्ष्म गतिविधियों पर बारिक नजर रखने वाले वैज्ञानिकों की नजर
से यह बच नहीं पाया है। इस बदलाव के कारणों को जांचने के क्रम में पता
चला है कि इसके लिए जिम्मेदार अति सुक्ष्म प्रोटिन के अंश हैं। इन्हें
वैज्ञानिक परिभाषा में मिनी प्रोटिन कहा जाता है। इसकी तरफ वैज्ञानिकों
का ध्यान चूहों पर होने वाले परीक्षणों के दौरान गया था। यह पाया गया
था कि किसी लोहे के चकरी में छोड़ा गया चूहा रात में करीब दस
किलोमीटर तक चल लेता है।
यूं तो उसके कदम बहुत छोटे होते हैं, लेकिन चूहे जैसी छोटे जीव के लिए
यह बहुत लंबी दूरी होती है। लेकिन जब मांसपेशियों पर शोध करने वाले
जीव विज्ञानी एरिक ओल्सन ने सकी दोबारा जांच की तो यह पाया गया
कि सामान्य पैदल चाल यंत्र पर चूहा सिर्फ दस प्रतिशत लक्ष्य हासिल
कर पाया। इसके अलावा वह करीब डेढ़ घंटे तक चलने के बाद थक गया।
टेक्सास विश्वविद्यालय के साउथ वेस्टर्न मेडिकल सेंटर डलास में
यह शोध तब प्रारंभ किया गया। बाद में शोध आगे बढ़ा तो इस बात की
जानकारी हुई कि लोहे के चकरीनूमा पिंजड़े अथवा ट्रेड मिल पर चलने
को अभ्यस्त चूहे आम चूहों के मुकाबले 31 प्रतिशत अधिक शक्ति अर्जित
इस बदलाव की वजह से वैज्ञानिकों का ध्यान उस सुक्ष्म बदलाव की तरफ गया था,
जिसे इससे पहले जांचा परखा नहीं गया था।
मिनी प्रोटिन के अनुसंधान के कई चरण एक के बाद एक हुए
चूहों की मांसपेशियों में यह अतिरिक्त शक्ति कैसे और क्यों आयी,
इसकी जांच में इन सुक्ष्म प्रोटिनों पर से पर्दा उठता चला गया।
शोध वैज्ञानिक ओल्सन ने कहा कि यह कुछ वैसी परिस्थिति थी, मानों
आपने किसी चलती गाड़ी का ब्रेक खोल दिया हो और वह लगातार
अधिक से अधिक गति को प्राप्त करती चली जा रही है।
इस पर जो अनुसंधान हुए तो उस निर्णायक प्रोटिन की पहचान हो पायी,
जो इन मांसपेशियों को अतिरिक्त ताकत प्रदान करता है।
इसकी पहचान तो पहले ही हो चुकी थी। इसे डायस्ट्रोफिन कहा जाता है।
लेकिन इसकी अतिरिक्त शक्ति अथवा भूमिका के बारे में वैज्ञानिकों को
पहले पता नहीं चल पाया था। अब शोध का नतीजा है कि यह प्रोटिन खास
परिस्थिति के लिए अपने साथ 3600 एमिनो एसिड लिया चलता है।
जो जेनेटिक बदलाव के बाद अतिरिक्त ऊर्जा पैदा करने की क्षमता रखते हैं।
चूहों पर हुए परीक्षण से टिटिन का भी पता चला जो दरअसल मांसपेशियों को
लचीलापन प्रदान करता है। इस टिटिन में पहले से ही 34 हजार से अधिक
एमिनो एसिड के गुण मौजूद होते हैं। इनकी जांच के दौरान ही उस प्रोटिन
का पता चला जिसे अब माइओरेगुलिन कहा गया है। यह मांसपेशियों पर
जबर्दस्त असर डालता है। अति सुक्ष्म अवस्था के इन प्रोटिनों को भूमिका
की जैसे जैसे जांच होती गयी, वैज्ञानिक हैरान होते चले गये।
यह पाया गया कि इन प्रोटिनों की भूमिका तेजी से बदलती चली जा रही है।
जिसके बारे में खुली आंखों से कुछ भी समझ पाना कठिन है ।
इसी शोध के दायरे को और बढ़ाते हुए वैज्ञानिकों ने अन्य प्राणियों के अंदर भी हो रहे इस बदलाव को देखा-परखा।
इसके बाद वैज्ञानिकों ने इंसान के अंदर भी इसी बदलाव की जांच की और मनुष्य के अंदर भी हो रहे
बदलाव को दर्ज किया।
एक के बाद एक कर नई कड़ियां इसमें जुड़ती चली गयी
इस शोध की जानकारी रखने वाले कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के
बॉयोकेमिस्ट जोनाथन वेइसमैन कहते है कि दरअसल यह हमारी दुनिया
के बीच मौजूद एक नई दुनिया के आविष्कार के जैसा ही है। अजीब स्थिति
यह भी है कि अपने अंदर के बदलाव की वजह से यह सुक्ष्म प्रोटिन अब
शरीर में मौजूद बड़े प्रोटिनों तक को नियंत्रित करने लगे हैं।
कई बार बड़े प्रोटिन को काम करने से रोकने का नियंत्रण भी इन मिनी
प्रोटिनों के हाथ चला जाता है। जैसे जैसे इस पर शोध आगे बढ़ रहा है
इन सुक्ष्म प्रोटिनों की शरीर पर नियंत्रण की भूमिका के बारे में नई नई
जानकारी मिल रही है। यह हर प्राणी में मौजूद हैं और वे प्राणी को जीवित
और स्वस्थ रखने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। अब पता चल रहा है कि
यह सुक्ष्म जीवन ही शरीर के जिनोम श्रृंखला को भी समझते और बदलते हैं।
डीएनए और आरएनए में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती चली जा रही है।
शोध से जुड़े लोग मानते हैं कि इसकी कड़ी के विस्तार से खास तौर पर
इस डीएनए और आरएनए की रहस्यमय गुत्थियों को सुलझान में
और मदद मिलने वाली है।
[…] सुक्ष्म जीवों पर हो रहे शोध में हर रोज कुछ न कुछ नई […]
[…] उल्कापिंडों को खाने वाले सुक्ष्म जीवन का पहली बार पता चल पाया है। यह ऐसे […]
[…] है। उसके तहत यह पाया गया है कि प्रोटिन का प्रभाव सीधे […]
[…] मधुमक्खियों को बचाने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग […]
[…] आर्कटिक के ऊपर रहस्यमय तरीके से बना हुआ ओजोन की छेद अपने […]
[…] संरचना एमिनो एसिड के जैसी है। लेकिन यह वायरस के जेनेटिक […]