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डॉ एचडी शरण
माही भी एक जाना पहचाना नाम ही है। कभी मैं रांची जिला क्रिकेट एसोसियेशन के साथ
सक्रिय तौर पर जुड़ा था। मैं पदाधिकारी तो नहीं था लेकिन मैंने अपने भाई स्वर्गीय
जयदेव शरण के नाम पर ए डिवीजन क्रिकेट लीग को लगातार सात वर्षों तक प्रायोजित
भी किया था। मैं किसी पद पर नहीं होन के बाद भी उस दौर के प्रमुख क्रिकेट प्रशासकों के
निकट संपर्क में था क्योंकि मै एक क्रिकेट प्रेमी था। मै उस आयोजन समिति का भी
सदस्य था, जिसनेउस दौरान कई रणजी और विल्स ट्राफी के मैच रांची में आयोजित किये
थे। उस दौर का कर्ताधर्ता देवल सहाय, स्वर्गीय अरुण ठाकुर, स्वर्गीय डॉ पीडी सिन्हा,
मानो दास जैसे लोगों के साथ अक्सर ही मैं मेकन स्टेडियम में दोपहर के वक्त मिला
करता ता। मेरा अस्पताल वहीं था इसलिए दोपहर के वक्त मैं वहां जाने का वक्त निकाल
लिया करता था।
एक दिन दोपहर को मैं हरमू रोड से गुजर रहा था। वहां हरमू मैदान पर अंतर जिला स्कूल
टूर्नामेंट का फाइनल चल रहा था। मैने सिर्फ क्रिकेट का शौक होने की वजह से गाड़ी रोक
ली और मैच देखने लगा। सोचा थोड़ी देर मैच देखकर काम में निकल जाऊंगा। यह थोड़ी
देर अंततः दो घंटे में तब्दील हो गया। मैं खुद भी नहीं समझ पाया कि मैंने दो घंटे तक
लगातार मैच देखा।
माही के स्कूल के मैच ने मुझे दो घंटे तक बांधे रखा
दरअसल वहां चिपक जाने की खास वजह एक लंबे बाल वाले छात्र की बल्लेबाजी थी।
डीएवी जवाहर विद्या मंदिर का यह बालक जिस तरीके से खेल रहा था, उसने मुझे बांध
रखा था। तीस ओवर के मैच में उसने अविजित दोहरा शतक जमा दिया।
मैंने यह स्थिति देखकर उस दौर में जिला के मुख्य चयनकर्ता अरुण ठाकुर से बात की।
वह अंग्रेजी के प्रोफेसर और एक जाने पहचाने खेल पत्रकार थे। मेरा सौभाग्य़ था कि वह
मुझे अपना मित्र मानते थे। मैंने उनसे चर्चा की और कहा कि माही नाम के इस बच्चे को
मौका मिलना चाहिए। प्रो ठाकुर मेरी बात सुनकर हैरान हो गये। वह हैरान इसलिए हुए
क्योंकि मैं कभी किसी खिलाड़ी की पैरवी नहीं किया करता था। लेकिन उस वक्त का
नियम यह था कि किसी भी खिलाड़ी को जिला टीम में तभी स्थान मिल सकता है जबकि
उसने ए डिवीजन क्रिकेट के मैच में भाग लिया होगा। यह बालक इस नियम के तहत नहीं
चुना जा सकता था। लेकिन मेरा सौभाग्य कि मेरी बात प्रो ठाकुर को जम गयी। स्वर्गीय
ठाकुर ने अपनी पुस्तक में इसका विस्तार से उल्लेख भी किया है।
प्रो अरुण ठाकुर ने मेरा सुझाव माना और अड़ गये
रांची जिला क्रिकेट एसोसिसेय़न के अन्य सारे सदस्य नियम के खिलाफ माही के इस
चयन का विरोध कर रहे थे। लेकिन प्रो ठाकुर अपनी बात पर अड़े रहे और उनकी दलील थी
कि नियम सिर्फ इसलिए बनाये गये हैं ताकि अच्छे खिलाड़ी आगे आ सके और अगर डॉ
शरण यह मानते हैं कि इस बालक को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए तो यह खिलाड़ी के
विकास की बात है। प्रो ठाकुर ने इस स्कूली छात्र को जिला टीम में स्थान दिया। प्रो ठाकुर
ने टीम के कोच को इस बात की भी खास हिदायत दी कि इस बच्चे को नेट प्रैक्टिस में भी
पूरा मौका दिया जाना चाहिए। माही नाम से बाद में दुनिया में प्रसिद्ध होने वाला वह स्कूली
छात्र कोई और नहीं महेंद्र सिंह धोनी ही हैं, जिन्होंने रांची और देश दोनों का नाम रौशन
किया है। धोनी ने छोटे शहर के सपनों को विस्तार देने के रोल मॉडल की भूमिका निभायी
है। स्वभाव से एक तेज तर्रार एथलिट होने के साथ साथ उनके दिमाग की भी दाद देनी
पड़ेगी। वर्ष 2007 के टी 20 वर्ल्ड कप के दौरान बीसीसीआई यह चाहती थी कि सचिन
तेंदुलकर टीम के कप्तान रहे। लेकिन सचिन ने मना कर दिया था। तब बीसीसीआई
अध्यक्ष शरद पवार ने तेंदुलकर से ही कोई नाम सुझाने को कहा था। सचिन ने ही धोनी का
नाम सुझाया था। इस सुझाव से शरद पवार भौचक्के रह गये थे क्योंकि उस दौर में धोनी
एक कनीय खिलाड़ी थे। लेकिन सचिन ने उन्हें भरोसा दिलाया था। दरअसल स्लिप में खड़े
होकर फील्डिंग करते वक्त सचिन ने उसकी बारिकियों को समझा था। शायद इस सुझाव
को भी सचिन द्वारा देश के दिये गये एक प्रमुख योगदान के तौर पर स्वीकार किया
जाएगा।
गौतम ने बताया कि उसे कप्तान बनाया तो मैं शंकित था
मुझे याद है कि जब टी 20 के टीम के कप्तान के तौर पर महेंद्र सिंह धोनी के नाम की
घोषणा हुई तो गौतम (धोनी के रिश्तेदार) ने मुझे इसकी सूचना दी। उस वक्त टी 20 में
भारत का रिकार्ड बिल्कुल ठीक नहीं था। इसलिए मेरे मन में यह बात आयी थी कि रांची के
लड़के यानी माही को कप्तान बनाकर बलि का बकरा बनाया गया है। यह शायद उसे खत्म
कर देने की एक साजिश है। लेकिन उसकी रणनीति की दाद देनी पड़ेगी। अंतिम ओवर गेंद
फेंकने के लिए उसने शर्मा को जिम्मेदारी सौंपी। उस वक्त पाकिस्तान को जीत के लिए 13
रन बनाने थे और स्ट्राइक मिसवाह के पास थी। पहली गेंद वाइड थी और पाकिस्तान को
छह गेंद में 12 रन बनाने थे। मिसवाह एक गेंद खेलने से चूक गये लेकिन अगली फुलटॉस
गेंद को मिसवाह ने मैदान के बाहर छह रनों के लिए पहुंचा दिया। अब चार गेंदों में मात्र
छह रन बनाने थे। माही दौड़कर गेंदबाज के पास गये और उससे कुछ कहा। अगली गेंद
अपेक्षाकृत धीमी थी और सीधे स्टंप्स पर थी। मिसवाह इस गेंद को माही के सर के ऊपर से
स्कूप करने के चक्कर में ऊपर उठाकर मारा। फाइन लेग पर खड़े श्रीसंत ने यह कैच पकड़
लिया। कपिलदेव की टीम के लंदन में विश्व कप विजय के बाद सीमित ओवर के क्रिकेट
प्रतियोगिता में 24 साल बाद यह भारतीय जीत थी। उसके बाद का इतिहास और रिकार्ड
सबकी जानकारी और चर्चा में है।
बड़ी जीत के बाद भी चेहरे के भाव सामान्य ही रहे उसके
मैच के उपरांत अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में साक्षात्कार देते माही पर ना जाने कितनों ने
अपना प्यार लुटाया होगा। यह तो हम सब जानते हैं कि उस समय उसके दिल में क्या चल
रहा होगा लेकिन उसका चेहरा एक दम निर्विकार था। कोई भाव उस युवक के चेहरे पर
नहीं दिख रहा था। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ” कैप्टन कूल” का प्रादुर्भाव हो चुका था।
[…] महेंद्र सिंह धोनी और झारखंड क्रिकेट के कर्ताधर्ता अमिताभ चौधरी के बीच […]