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विकल्प तैयार करने की हमारी पुराना आदत है
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प्राकृतिक संसाधनों में ही खोजते हैं विकल्प
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जागरूकता से जनता को मिल रहा है फायदा
रांचीः जुगाड़ साफ्टवेयर हमारा एक प्यारा और परिचित नाम है। जब कभी किसी आपात
स्थिति में किसी चीज की जरूरत पड़ती है तो हम भारतीय परिवेश के लायक उसके
विकल्प की भी तलाश कर लेते हैं। कोरोना की वजह से राष्ट्रव्यापी लॉक डाउन के दौरान
अनेक स्थानों पर यह जुगाड़ साफ्टवेयर आजमाया जाता दिख रहा है। हम पहले ही खाली
टैंकर में लोगों के आने, एंबुलेंस और पेपर ढोने वाली गाड़ियों में लोगों के जाने जैसा नजारा
देख चुके हैं। अब कोरोना से बचाव के लिए हर किस्म का प्रचार होने की वजह से संसाधन
हीन लोग भी अपने अपने तरीके से जुगाड़ साफ्टवेयर का इस्तेमाल करने लगे हैं। रांची के
कई इलाकों में इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भी देखने को मिला है। रातू रोड दुर्गा मंदिर के पास
इसका सबसे बेहतर नमूना देखने को मिला। वहां सड़क किनारे बैठी एक महिला को पानी
गर्म करते देख जब पूछा गया कि इसका क्या उपयोग है तो उसका उत्तर हैरान और कई
लोगों के लिए रास्ता बताने वाला भी साबित हो गया। महिला मिट्टी के चूल्हे पर पानी गर्म
करते हुए बोली कि उसे भी कोरोना के खतरों के बारे में जानकारी है। साबुन, डिटॉल और
सैनेटाइजर (इसका उच्चारण वह सही ढंग से नहीं कर पा रही थी)। उसके कहा वह क्या
होता है जिससे वायरस मर जाता है, की जानकारी होने के बाद भी उसके पास इनमें से
कोई भी उपलब्ध नहीं है। इसलिए लोगों ने गर्म पानी पीने की सलाह दी है तो वह गर्म पानी
से ही अपने ऊपर होने वाले किसी भी संक्रमण को रोकने का प्रयास कर रही हैं। वह अपना
हाथ गर्म पानी से धोना चाहती है ताकि वायरस का खतरा कम हो।
जुगाड़ साफ्टवेयर का प्रयोग ग्रामीण इलाकों में भी
ठीक इसी तरह ग्रामीण इलाकों में भी लोग मास्क उपलब्ध नहीं होने की वजह से पत्तों का
मास्क पहनने लगे हैं। विज्ञान सम्मत कोई आधार नहीं होने के बाद भी प्रकृति के
जानकार मानते हैं कि पेड़ पौधों में भी वायरस से लड़ने की अपनी क्षमता होती है। इसलिए
पत्तों का मास्क भी मुंह और नाक के हवा से जब वाष्प बनता है तो यह शरीर पर कुछ न
कुछ असर छोड़ता है। ऐसे जानकार बताते हैं कि जिस तरीके से यूकेलिप्टस की छाल का
उपयोग साबुन के तौर पर किया जाता है और उसके पत्तों का इस्तेमाल सर्दी भगाने में
होता है। इसीलिए पत्तों से बने मास्क के अपने फायदे भी हैं।
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