बजट के जरिए जनता की कुछेक प्राथमिकताओं को स्पष्ट तौर पर रेखांकित करने का
काम झारखंड की सरकार ने किया है। यद्यपि इसका राजनीतिक विरोध हुआ है फिर भी
समग्र तौर पर इसे बेहतर पहल माना जा सकता है। इस बजट के जरिए सबसे
महत्वपूर्ण निर्णय किसानों के लिए पचास हजार रुपये तक का कर्ज माफ करने का है।
सरकार ने अपने बजट में यह माना है कि राज्य की 75 प्रतिशत की आबादी कृषि एवं
संबंधित प्रक्षेत्र पर निर्भर है। इस प्रक्षेत्र से जुड़े लोगों की बेहतरी के लिए राज्य सरकार
कृतसंकल्प है। ऋण के बोझ से दबे किसान, जिनकी आय का एक बड़ा हिस्सा ऋण चुकाने
में ही चला जाता है, के लिए राज्य सरकार ने अल्पकालीन कृषि ऋण राहत योजना शुरू
करने का निर्णय लिया है। समाज की आर्थिक गाड़ी को सक्रिय बनाने में झारखंड जैसे देश
के अनेक राज्यों में असली भूमिका तो किसान ही निभाते हैं। ऐसे में उन्हें अगर किसी भी
किस्म की राहत मिलती है तो यह देश की बेहतरी में है।
झारखंड के संदर्भ में बात करें तो सरकार द्वारा अलग अलग कालखंड में किसानों के हित
में लिये गये फैसलों से ग्रामीण इलाकों में महाजनी कारोबार पर काफी हद तक नियंत्रण
पाया जा सका है। पूर्व में ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं, जिनमें किसानों ने कर्ज लेने के
एवज में अपनी जमीन ही गवां दी है। इन किसानों को नये सिरे से कृषि उत्पादन के क्षेत्र में
आगे बढ़ने का हम जितना अवसर उपलब्ध करायेंगे, ग्रामीण झारखंड की अर्थव्यवस्था में
उतनी ही सक्रियता आयेगी। कई अवसरों पर आयकर मुक्त किसान के खिलाफ भी राय
व्यक्त कर जाते हैं।
बजट के जरिए किसानों को फायदा देने का विरोध गलत
ऐसे लोगों को याद रखना होगा कि सोशल मीडिया अथवा अन्य माध्यमों पर आप खुलकर
अपनी राय तभी जारी कर पाते हैं जब आपको भरपेट भोजन मिलता है। यह भोजन कितने
परिश्रम से उगाया जाता है, उसकी कल्पना के बाद लोगों का यह नकारात्मक विचार अपने
आप ही समाप्त हो जाएगा। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जिलावार प्रयास प्रारंभ करने
की पहल भी सराहनीय है। झारखंड की भौगोलिक और सामाजिक संरचना दिल्ली जैसे
राज्य के जैसी नहीं है। लिहाजा दिल्ली की तर्ज पर यहां हर कुछ लागू भी नहीं किया जा
सकता है। ऐसे में अगर एक एक कर मॉडल तैयार किये जाएं तो पांच वर्षों में इन्हीं
योजनाओं की बदौलत बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। हम यह नहीं भूल सकते कि
किसी भी परिवार के बजट का संतुलन तब बिगड़ता है जब घर में कोई गंभीर रुप से बीमार
पड़ जाता है। ऐसे में आयुष्मान योजना के दायरे से बाहर वाली बीमारियों को भी झारखंड
सरकार अपने दायरे में रखे तो यह अपने आप में बहुत बड़ी राहत होगी। वशर्ते कि इस पर
निरंतर निगरानी रखी जाए कि ऐसी कल्याणकारी योजनाएं भी फिर से भ्रष्टाचार की भेंट
न चढ़ जाए। स्वास्थ्य बीमा के दायरे में गरीबी रेखा से ऊपर रहने वालों को भी शामिल
करने की पहल भी सराहनीय है। इससे भी अनेक परिवार उस मानसिक चिंता से मुक्त
होंगे, जो अब तक इस भय से पीड़ित रहते थे अथवा इस एक शर्त की वजह से इन परिवारों
को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता था।
ईलाज की चिंता से मुक्ति बहुत बड़ी राहत
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आगामी वित्तीय वर्ष 2020-21 में स्वीकृत किये जाने
वाले आवासों के लिए राज्य सरकार के द्वारा अपने कोष से 50,000 रुपये की अतिरिक्त
राशि प्रत्येक लाभुक को दिये जाने का प्रस्ताव है। साथ ही लाभुकों को झारखंड की
भौगोलिक पृष्ठभूमि को देखते हुए स्थानीय तरीके से घर बनाने की छूट दी जायेगी। राज्य
के विकास दर को आगे बढ़ाना हेमंत सोरेन की सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी।
यह बजट यह स्पष्ट कर गया है कि राज्य को केंद्रीय करों में अपने हिस्से में सही समय पर
उचित भागीदारी नहीं मिल पायी है। सरकार की घोषणा के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2020-
21 में राज्य को अपने कर राजस्व से करीब 21,669.50 करोड़ रुपये तथा गैर कर राजस्व
से 11,820.34 करोड़ रुपये, केन्द्रीय सहायता से 15,839 करोड़ रुपये, केन्द्रीय करों में राज्य
की हिस्सेदारी के रूप में 25,979.91 करोड़ रुपये, लोक ऋण से करीब 11,000 करोड़ रुपये
एवं उधार तथा अग्रिम की वसूली से करीब 61.25 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। यानी राज्य को
अपने स्तर पर भी करों की वसूली पर ज्यादा ध्यान देना होगा। पूर्व की कई व्यवस्थाओं
को और बेहतर बनाने के साथ साथ गैर योजना मद के खर्च में कटौती के अलावा सरकार
को निर्माण कार्यों की प्राथमिकता तय करनी होगी। खुद सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि
झारखंड जैसा राज्य अधिक लागत की फिजूलखर्ची का बोझ उठाने की स्थिति में नहीं है।
ऐसे में आमदनी बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे। वसूली का लक्ष्य हासिल करने
के लिए सरकार को कई गड़बड़ियों को दूर करना होगा जो अब तक राज्य की विकास में
निरंतर बाधक बनते रहे हैं।
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