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छह साल पुराना अभियान पूरा होगा
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सौरमंडल के बारे में नई जानकारी मिलेगी
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उल्कापिंड रिगुयू की मिट्टी के नमूने ला रहा है
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उसकी रासायनिक संरचना को समझेंगे वैज्ञानिक
राष्ट्रीय खबर
रांचीः जापान का अंतरिक्ष यान हाईबूसा 2 रविवार की सुबह ऑस्ट्रेलिया के इलाके में
जलते हुए आग के गोलो के तरह वह कैप्सूल उतारेगा, जिसमें उल्कापिंड रिगुयू की मिट्टी
के नमूने और पत्थर के कण हैं। वैसे आग के गोले की तरह नजर आने के बाद भी इस
कैप्सूल में खास किस्म की पर्त है। इसलिए इसके अंदर कोई नुकसान नहीं होगा। इस तरह
कल सुबह उस अंतरिक्ष अभियान के पहले चरण की समाप्ति हो जाएगी, जो करीब छह
वर्ष पूर्व प्रारंभ किया गया था। जापान का अंतरिक्ष यान इसी जिम्मेदारी को पूरा करने के
लिए ही अंतरिक्ष में भेजा गया था। वर्ष 2018 में उल्कापिंड पर सफलतापूर्वक उतरने के
बाद ही उसने अपना काम प्रारंभ कर दिया था। उसके उतरने के दौरान का वीडियो भी
रिकार्ड किया गया था क्योंकि यान में ही कैमरे लगे हुए थे। यह देखा गया था कि यान के
उल्कापिंड पर उतरने के दौरान किस तरीके से वहां के धूलकण उड़ने लगे थे। अपना काम
पूरा करने के तुरंत बाद वह अपनी वापसी प्रारंभ कर चुका था। अब रविवार की सुबह वह
अपने साथ उसी उल्कापिंड के नमूने लेकर वापस लौट आयेगा। नियंत्रण कक्ष को मिल रहे
संकेतों के मुताबिक अब तक यान की वापसी का कार्यक्रम बिल्कुल सही चल रहा है।
इसलिए उस कैप्सूल के पृथ्वी पर सकुशल लौटने की वैज्ञानिक बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं
क्योंकि इन नमूनों के विश्लेषण से अंतरिक्ष और हमारे सौर मंडल के आस पास की कई
चीजों का पता चल पायेगा।
जापान का अंतरिक्ष यान 180 मिलियन मील से लौट रहा
जान लें कि अपनी वापसी के दौरान यह रिगुयू से करीब 180 मिलियन मील का सफर तय
कर चुका होगा। हीरे के आकार का यह उल्कापिंड पृथ्वी और मंगल ग्रह के बीच है और
लगातार सूर्य के चक्कर काट रहा है। प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक इस उल्कापिंड के जो
नमूने लेकर यह यान लौट रहा है, वह करीब चार बिलियन वर्ष पुराने हैं। लिहाजा इन चार
बिलियन वर्षों में सौर मंडल में क्या कुछ घटित हुआ है और उनका इस उल्कापिंड पर क्या
प्रभाव पड़ा है, इस बारे में नई जानकारी मिल पायेगी।
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इस बारे में कारनेगी इंस्टिट्यूशन ऑफ साइंस के खगोल वैज्ञानिक लैरी निटलर ने कहा
कि इसके नमूनों के विश्लेषण से उस धारणा की शायद पुष्टि हो पायेगी कि आखिर यह
सौरमंडल बना कैसे है। प्रारंभिक वैज्ञानिक सोच है कि गैस और धूलकणों के बीच
रासायनिक प्रतिक्रिया से एक महाविस्फोट हुआ था। इसी महाविस्फोट को वैज्ञानिक
परिभाषा में बिग बैंग कहा जाता है। इसी महाविस्फोट की वजह से ही सौरमंडल और ग्रहों
एवं उपग्रहों की क्रमिक रचना हुई थी। अब उल्कापिंड के नमूनों में इसके संबंध में क्या
कुछ साक्ष्य और सबूत मौजूद हैं, उसकी जांच की जाएगी। रिगुयू को इस काम के लिए
इसलिए चुना गया था कि उसके जैसे कई अन्य उल्कापिंड भी हैं, जो ग्रह बनने की प्रक्रिया
में बीच में ही रूक गये और उल्कापिंड बनकर चक्कर काटने लगे।
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इस उल्कापिंड का चयन भी खास वजह से किया गया था
इस उल्कापिंड के चयन का दूसरी खास वजह से उसके घूमने की दिशा और धुरी है। वह हर
आठ घंटे के अंतराल में पूरी तरह घूम जाता है। लिहाजा सौरमंडल से हर दिशा से उस पर
प्रभाव पड़ता है। एक वैज्ञानिक सोच यह भी है कि इस किस्म ग्रह बनने की प्रक्रिया के बीच
ठहरे उल्कापिंडों में वैसे जीवन की उत्पत्ति के कारक मौजूद है। शायद रिगुयू जैसा ही कोई
बड़ा उल्कापिंड पृथ्वी से आ टकराया था, जिससे इस धरती पर जीवन की नींव पड़ी थी।
इनकी कार्बन संरचना में वे रसायन भी मौजूद हैं, जो जीवन के कारक समझे जाते हैं। साथ
ही यह आपस में भी टकराते रहते हैं। जिसकी वजह से उनमें निरंतर बदलाव भी होता
रहता है। वैज्ञानिक इस बात को पहले ही जान चुके हैं कि जब कोई ऐसा उल्कापिंड धरती
से आ टकराता है तो नई किस्म की रासायनिक प्रतिक्रिया होती है। हाईबूसा 2 और नासा
के अध्ययन दल से जुड़े रोवन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक हैरल्ड कोनोली ने कहा कि इस
बार आने वाले नमूनों के अध्ययन से जो कुछ पहले से पता नहीं है, उसके बारे में नई
जानकारी मिल सकती है। याद रहे कि नासा ने भी अपनी तरफ से ओसिरिस रेक्स को इसी
काम के लिए अंतरिक्ष में भेजा है। इसकी वापसी ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तानी इलाके में
होगी। जहां पहले से ही जापान के वैज्ञानिक मौजूद हैं। वहां से कैप्सूल को किसी साफ
इलाके में रखा जाएगा ताकि उसका तापमान कम होने के बाद उसके अंदर मौजूद नमूनों
को संग्रहित किया जा सके। सब कुछ देख समझ लेने के बाद इन नमूनों को जापान लाया
जाएगा।
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