जनता पर कोरोना टीकाकरण पर सरकार पैसे खर्च करेगी अथवा नहीं, यह स्पष्ट नहीं हो
पा रहा है। सरकारी स्तर पर जो फैसला लिया गया था उसके तहत प्रथम और दूसरे चरण
के कोरोना टीकाकरण का खर्च सरकार को ही उठाना था। लेकिन अब तीसरे चरण में मुख्य
तौर पर आम जनता को कोरोना का यह टीका लगाया जाना है। लेकिन जनता पर यह खर्च
कौन उठायेगा, इस पर मौन है। यानी अब तक कोविड 19 के टीकाकरण में काफी तेजी से
जारी काम के बीच सरकार यह फैसला नहीं कर पायी है कि वह जनता पर टीकाकरण के
लिए होने वाले खर्च को उठायेगी अथवा नहीं। जनता पर इसके बीच ही पेट्रोल, डीजल और
रसोई गैस का नया बोझ डाला जा चुका है। कोरोना संकट में भी सरकार की जेब खाली क्यों
हुई यह अब आम आदमी समझ रहा है। स्पष्ट है कि सभी सरकारों की गाड़ी दरअसल
जनता द्वारा दिये गये पैसे से ही चलती है। संसद से लेकर सरकारी कर्मचारियों के वेतन
का सारा बोझ जनता पर ही है। लेकिन जनता पर खर्च कितना किया जाए, यह स्पष्ट नहीं
है। दूसरी तरफ यह बार बार एलान किया जा रहा है कि अभी खुले बाजार में यह टीका
उपलब्ध नहीं कराया जाए। खुले बाजार में टीका उपलब्ध नहीं कराने का फैसला शायद
सही भी है क्योंकि चीन में ही कोरोना टीका के नाम पर हुए फर्जीवाड़ा की सूचना भी आम
हो चुकी है। टीकाकरण में तेजी लाने के लिए आम लोगों के वास्ते समय लेने और
पंजीकरण कराने की प्रणाली शुरू किए जाने को तैयार है। इस प्रणाली से 50 साल से
ज्यादा उम्र या अन्य रोगों से भी पीडि़त व्यक्ति टीका लगवाने के लिए अपनी पसंद की
तारीख, स्थान और समय ले सकता है।
जनता पर खर्च में आनाकानी पर जनता से पैसे लेने में परहेज नहीं
सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को उमीद है कि टीकाकरण के लिए एक सिरे से
दूसरे सिरे तक क्लाउड-आधारित सूचना प्रौद्योगिकी समाधान-कोविन के जरिये
पंजीकरण के बाद मार्च के अंत तक सार्वजनिक टीकाकरण शुरू हो जाएगा। एक अधिकारी
के अनुसार अब तक इस बात पर कोई फैसला नहीं किया गया है कि 50 साल से ज्यादा
और अन्य रोगों से भी पीडि़त लोगों के लिए आगामी टीकाकरण वाले दौर की लागत कौन
वहन करेगा। ऐसे संकेत हैं कि सरकार भुगतान के लिहाज से हाइब्रिड मॉडल का रुख कर
सकती है जिसमें कुछ लोगों के लिए इंजेक्शन मुफ्त या शायद सब्सिडी वाले स्तर पर दिए
जाने के लिए आय मानदंड पर विचार किया जा सकता है। उद्योग के साथ-साथ राज्य
सरकारों के सूत्रों ने भी कहा कि केंद्र कम से कम शुरुआती दौर में अन्य रोगों से भी पीड़ित
लोगों के टीकाकरण के लिए भुगतान कर सकता है। इस दौर में 27 करोड़ लोगों के
टीकाकरण का लक्ष्य है। इस घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने कहा कि
हालांकि खुले बाजार में टीका बेचे जाने को लेकर अब तक कोई निश्चित योजना नहीं है,
लेकिन इस टीकाकरण अभियान में निजी क्षेत्र के शामिल होने की संभावना है। रिलायंस
इंडस्ट्रीज और टाटा सहित कई कॉरपोरेट समूहों द्वारा अपने कर्मचारियों के लिए टीका
खरीदने के लिए बातचीत किए जाने की सूचना है। उदाहरण के लिए आरआईएल के पास
9,00,000 की सूची तैयार है जिसमें कर्मचारियों और उनके परिवार शामिल हैं। एक सूत्र ने
कहा कि निजी क्षेत्र को विनिर्माताओं से टीका खरीदने की अनुमति दी जा सकती है। एक
अधिकारी ने कहा कि सरकार द्वारा कॉरपोरेट कर्मचारियों के लिए भुगतान किए जाने की
संभावना नहीं है।
निजी कंपनियां अपने स्तर पर कर्मचारियों को टीका देने की तैयारी में
उन्होंने कहा कि भले ही निजी क्षेत्र इसकी खरीद करे, लेकिन सरकार कीमत तय कर
सकती है। इसके अलावा टीकाकरण का अंतिम प्रमाण-पत्र दिए जाने की जिम्मेदारी
सरकार की होगी, फिर भले ही खुराकों की खरीद कोई भी क्यों न कर रहा हो या कोई भी
टीका क्यों न लगवा रहा हो। सूत्र ने कहा कि यह एक केंद्रीकृत प्रक्रिया होगी ताकि यह
सुनिश्चित हो सके कि प्रणाली में कोई चूक नहीं है। अलबत्ता कोविन प्लेटफॉर्म की
शुरुआती तकनीकी गड़बडिय़ों के बाद प्रौद्योगिकी बैकएंड तैयार है, जिसे अब कोविड
संपर्क पर नजर रखने वाली ऐप-आरोग्य सेतु के साथ एकीकृत किया गया है। कोविड
टीकाकरण के लिए प्रौद्योगिकी नेटवर्क की देखरेख कर रहे समूह की अध्यक्षता करने
वाले आरएस शर्मा ने कहा कि कोविन खोज संबंधी सुविधा की पेशकश करेगा। टीकाकरण
के लिए समय लेने वाले किसी भी व्यक्ति को उसकी लोकेशन के करीब अस्पताल या
स्वास्थ्य केंद्र दिखाए जाएंगे। शर्मा ने कहा कि इसके मूल में एक नागरिक केंद्रित
दृष्टिकोण है। फिर भी यह प्रश्न अनुत्तरित है कि जनता के पैसे से चलने वाली सरकारें
जनता पर होने वाले इस खर्च को वहन करेंगी अथवा नहीं।
[…] रखने से उन्हें कम कीमत पर पेट्रोल और डीजल भी मिल रहे […]