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अस्पतालों में कोरोना मरीजों के बेड अब खाली
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घर पर भी ईलाज से ठीक हुए हैं अनेक मरीज
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इंसानी प्रतिरोधक की समय सीमा की परख होगी
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कई विकसित देशों से आगे निकल गयी दिलवालों की दिल्ली
विशेष प्रतिनिधि
नईदिल्लीः देश की राजधानी यानी दिल्ली में अब कोरोना के मरीजों की संख्या अस्पतालों
में घटती जा रही है। लोगों के स्वस्थ होकर घर लौटने की वजह से यह स्थिति आयी है।
दिल्ली को लेकर अनेक किस्म की आशंकाएं इसलिए भी थी कि स्थानीय संक्रमण के
पचास प्रतिशत से अधिक मामलों में यह पता ही नहीं चल पाया था कि यह संक्रमण लोगों
को किस जरिए हुआ है। इस वजह से ऐसा माना जा रहा था कि दिल्ली में कोरोना मरीजों
की संख्या अभी और तेजी से ऊपर जाने वाली है। खुद उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने
कहा था कि यहां जुलाई महीने के अंत तक साढ़े पांच लाख कोरोना के मरीज पाये जा
सकते हैं। जाहिर तौर पर इससे दिल्ली में एक आतंक का माहौल तो बन ही गया था।
अब इस तस्वीर में कुछ अच्छे रंग नजर आने लगे हैं। यहां सक्रिय मरीजों की संख्या अब
घटकर 13,681 रह गयी है। वरना पिछले दो सप्ताह में हर रोज यहां दो हजार से अधिक
मरीज पाये जाने से अस्पतालों में मरीजों के लिए जगह कम पड़ गयी थी। दिल्ली सरकार
द्वारा वैकल्पिक अस्पतालों का प्रबंध समय पर कर लिये जाने की वजह से उतनी परेशानी
नहीं हुई। लेकिन अब तो कोरोना का ईलाज करने वाले अस्पतालों में कोरोना मरीजों के
लिए तैयार किये गये बेड खाली नजर आने लगे हैं। आंकड़े भी इस स्थिति में सुधार होने
का संकेत देते हैं। 1 जुलाई को वहां के 15,892 बेड भरे हुए थे। अब वहां मात्र 3210 लोग ही
अस्पताल में दाखिल हैं। दिल्ली में खास बात यह रही कि अनेक मरीजों ने घर पर नियम
से रहते हुए भी कोरोना से खुद को मुक्त करने में कामयाबी हासिल कर ली है।
देश की राजधानी की स्थिति पर एम्स के निदेशक ने सतर्क किया
इस मुद्दे पर एम्स, नईदिल्ली के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा कि इस स्थिति से बहुत
अधिक खुश होने की जरूरत नहीं है। याद रहे कि एम्स निदेशक ने ही सबसे पहले इस बात
के लिए देश को आगाह कर दिया था कि जून और जुलाई में ही देश में कोरोना का विस्फोट
होने जा रहा है। अब मरीजों की संख्या कम होने के सवाल पर उनकी राय में यह मरीजों की
संख्या का घटना भर दिखा रही है। इसके यह अर्थ नहीं हैं कि कोरोना का संक्रमण का ऊपर
चढ़ना बंद हो गया है। उनके मुताबिक अनेक स्थानों पर मरीजों के अपने प्रतिरोधक की
वजह से भी कोरोना से जीत मिली है। लेकिन यह प्रतिरोधक चूंकि प्राकृतिक तौर पर
मरीज के शरीर के अंदर बना है, इसलिए उसका असर कितने दिनों तक रहेगा, यह देखने
लायक बात होगी। देश में कोरोना टेस्ट का औसत आंकड़ा काफी पीछे होने के बाद भी
दिल्ली में हर दिन बीस हजार जांच कर प्रति दस लाख में 47828 जांच का रिकार्ड कायम
कर अनेक विकसित देशों को इस मामले में पीछे छोड़ दिया है। लेकिन कुछ चिकित्सा
विशेषज्ञ अब भी इस जांच की विधि और उसकी रिपोर्ट की शुद्धता पर संदेह कर रहे हैं।
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