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उत्तरी क्षेत्र के सेना कमांडर वाई के जोशी का साक्षात्कार
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चीन को भारतीय सेना की फुर्ती से हैरानी हुई है
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विवाद सुलझने का एक कारण यह भी रहा है
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पुनरावृत्तिकी उम्मीद नहीं लेकिन सतर्क रहेंगे
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः भारतीय टैंकों को पूर्वी लद्दाख के इस इलाके में इतनी जल्दी पहुंचाया जा
सकता हैं, इसकी उम्मीद चीन की सेना को नहीं थी। वह दरअसल इस बात का आकलन
नहीं कर पाये थे कि वर्ष 1962 के युद्ध के बाद से भारतीय सेना कितना बदली और
आक्रामक स्थिति में रहती थी। उत्तरी कमांड से प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल वाई के जोशी ने
एक अंग्रेजी दैनिक को दिये साक्षातकार में इस बात का खुलासा किया है। जनरल जोशी ने
इंडियन एक्सप्रेस को यह साक्षातकार दिया है। उन्होंने कई अनजाने तथ्यों की भी
जानकारी इस इंटरव्यू में दी है। उनके मुताबिक रेचिन ला और रेजांग ला तक भारतीय टैंक
पहुंच गये तो सारी परिस्थितियां एकाएक बदल गयी। शायद यहां भारतीय सेना के टैंक
इतनी जल्दी पहुंच जाएंगे, इसकी उम्मीद चीन की पीएलए को नहीं थी। अब स्थिति यह है
कि समझौते के बाद दोनो देशों की सेना अप्रैल 2020 की पूर्व स्थिति में लौट रही हैं।
भारतीय सेना अपनी अंतिम चौकी धन सिंह थापा पोस्ट पर मौजूद है। दोनों देशों के सैन्य
कमांडरों के बीच इस बात की सहमति हुई है। प्योगौंग झील के फिंगर 4 से फिंगर 8 के
बीच दोनों ही देशों की सेना की गश्ती नहीं होगी।
इस इलाके के शीर्ष सैन्य अधिकारी ने बताया कि जो समझौता हुआ है उसके मुताबिक
पहले चरण में भारी हथियारों को हटाया जा रहा है। यह काम भी पूरा हो चुका है। दूसरे
चरण के तहत छोटी तोपों को हटाने का काम चल रहा है। अंतिम चरण में कैलाश रेंज से
सेना को पीछे लेना है। जनरल जोशी ने कहा कि अब तक के घटनाक्रमों को देखकर लगता
है कि चीन की सेना समझौते का पूरी तरह पालन कर रही हैं।
भारतीय टैंकों को भी चीन के साथ ही पीछे किया जा रहा है
उनकी तरफ से दो सौ से अधिक टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों एवं छोटी तोपों को पीछे ले
जाने की पुष्टि तो सैटेलाइट चित्र भी कर रहे हैं। भारतीय वायुसेना भी इसकी नियमित
निगरानी कर रही है। चार चरणों का यह काम पूरा होने के बाद दोनो देशों के सैन्य कमांडर
फिर से अगली कार्रवाई पर चर्चा करेंगे। अभी तो चौबीस घंटे में दो बार स्थिति की
नियमित समीक्षा की जा रही है। भारत द्वारा चीन को अपनी जमीन देने के सवाल पर
उन्होंने स्पष्ट किया कि इस तनाव के पहले भी भारतीय सेना धन सिंह थापा पोस्ट पर
मौजूद थी और आज भी भारतीय सेना वहां पर मौजूद है। उस समय चीन की सीमा फिंगर
आठ पर अपनी चौकी रखती थी। अब तय हुआ है कि इस फिंगर आठ से चीनी सेना आगे
नहीं गश्त करेगी। तनाव के दौरान चीन की सेना फिंगर 4 तक आगे बढ़ आयी थी और
बंकर भी बना लिये थे, जिन्हें हटाया जा रहा है। दरअसल फिंगर 4 से आठ के बीच ही
असली विवाद था। लिहाजा इस स्थान को खाली छोड़ दिया गया है।
जनरल जोशी के मुताबिक पहले चीन की सेना पीछे हटने के लिए तैयार ही नहीं थी। तब
जाकर भारतीय टैंक आगे बढ़ाये गये। उनके मुताबिक इस इलाके तक भारतीय टैंक इतनी
जल्दी पहुंच जाएंगे, इसकी उम्मीद शायद चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को नहीं थी।
एक बार वहां पहाड़ की चोटियों पर भारतीय टैंक तैनात हो गये तो चीन को भी बात समझ
में आ गयी कि यह 1962 की भारतीय सेना नहीं है। वार्ता में भी भारतीय कमांडरों ने साफ
कर दिया था कि वह अप्रैल 2020 की स्थिति से कम पर कोई समझौता नहीं करने जा रहे
हैं। इसके बाद माहौल बदला और अब सेना की वापसी प्रारंभ हो चुकी है।
चीन ने स्वीकारा कि उसके पांच अफसर और जवान मारे गये हैं
चीन ने स्वीकारा है कि गलवान घाटी के संघर्ष में उसके भी सैनिक मारे गये हैं। इतने दिनों
तक इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहने के बाद अंततः चीन ने इसकी जानकारी दी है। आठ
महीनों के बाद चीन ने पांच अधिकारियों और सैनिकों के नामों की घोषणा की है, जो
गलवान घाटी के संघर्ष में मारे गये थे। जो लोग वहां भारतीय सेना के साथ हाथापायी में
मारे गये थे, उनमें रेजिमेंट के कमांडर क्वी फावाओ के अलावा चेन होंगजून, चेन
झियांगरोंग, जिआओ सियूआन और वांग झूओरान अफसर हैं। गलवान घाटी की इस
लड़ाई में भारत ने पहले ही स्वीकार किया था कि उसके बीस सैनिक मारे गये थे। अब चीन
के एलान के मुताबिक इन पांच अधिकारियों के अलावा उसके 40 अन्य सैनिक भी मारे
गये थे। रुस की एजेंसी तास ने चीन के अखबार के हवाले से यह जानकारी दी है।
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