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यह मोदी वनाम ममता की लड़ाई है बाकी सारे लोग गौण हैं
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ममता के अलावा स्टालीन का चुनाव प्रचार भी देख रहे हैं
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तमिलनाडू पर मीडिया ध्यान न दें, यह भी साजिश है
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महिलाओं के आक्रामक मतदान का अर्थ समझिये
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः तीन अंकों तक पहुंचने की बात पर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर अब भी
कायम है। उन्होंने प्रथम चरण का मतदान समाप्त होने के बाद कई विषयों पर अपनी राय
जाहिर की है। उन्होंने साफ साफ कहा कि भाजपा के चुनावी कौशल की वजह से अंततः
यह मोदी वनाम ममता की लड़ाई बन चुकी है। इसलिए नफा नुकसान सिर्फ इन दोनों को
ही होना है। भाजपा के अन्य नेताओँ और खेमा बदलकर भाजपा में आने वाले भाजपा के
प्रचार की वजह से अब गौण हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि वह अब भी मानते हैं कि मीडिया
जिस तरीके से चीजों को दिखा रही है, धरातल पर स्थिति वैसी नहीं है। उन्होंने पिछले
दिसंबर महीने में कहा था कि भाजपा इस बार पश्चिम बंगाल में तीन अंकों की सीट नहीं
ला पायेगी। यानी इस बयान का अर्थ था कि भाजपा को एक सौ से भी कम सीटें आयेंगी।
प्रशांत किशोर ने कहा कि मतदान के पहले चरण को देखकर ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि
उन्होंने जो आकलन किया था, जमीन पर वह सारी परिस्थितियां वैसी ही हैं। फर्क सिर्फ
महिलाओं के आक्रामक मतदान का है। इसे समझना होगा कि ग्रामीण समाज की
महिलाएं इतने आक्रामक ढंग से अगर मतदान कर रही हैं तो वह किसके पक्ष में आ रही
हैं। उन्होंने कहा कि इसके पूर्व चुनावों में किसी सत्तारूढ़ राष्ट्रीय दल को क्षेत्रीय दलों से
चुनौती मिलती थी। अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं और क्षेत्रीय दलों से राष्ट्रीय दलों को
जूझना पड़ रहा है। यह भी भारतीय राजनीति के बदलाव का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। श्री
किशोने तीन अंको के अपने बयान के साथ साथ यह भी जोड़ा कि भाजपा ने पांच तरीके से
इस चुनाव को लड़ने की रणनीति पर काम किया है। इसके पहले चरण में हिंदू ध्रुवीकरण
का जोरदार प्रचार किया गया है।
तीन अंकों के बयान की परिस्थितियां अब भी मौजूद हैं
यह काम बहुत पहले से ही प्रारंभ कर दिया था। इसके दूसरे चरण में ममता बनर्जी को हर
स्तर पर बदनाम करने की योजना अमल में लायी गयी है। तीसरी योजना के तहत
तृणमूल को अंदर से तोड़ने की साजिशों को अंजाम दिया गया है और पांचवां एवं अंतिम
हथियार मोदी की लोकप्रियता को भूनाना है। इन सभी में भाजपा काफी हद तक सफल भी
हुई है। लेकिन चुनावी गणित यह कहते हैं कि हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का अर्थ साठ
प्रतिशत हिंदू वोट हासिल करना है। यह हर कोई समझ सकता है कि भाजपा अपने इस
लक्ष्य को हासिल करने से काफी पीछे रह गयी है। ऐसे में तीन अंकों तक उसका पहुंच पाना
कठिन है। वैसे भी पश्चिम बंगाल में इस तरीके से ध्रुवीकरण करना एक कठिन कार्य है।
दस साल के निरंतर शासन की वजह से ममता के खिलाफ स्वाभाविक तौर पर एक
नाराजगी है लेकिन पूरे राज्य में घूमने के बाद यह पता चल जाता है कि यह नाराजगी
तृणमूल के स्थानीय नेताओँ के प्रति है ममता बनर्जी के प्रति नहीं। ऐसी स्थिति में अगर
महिलाएं आगे आकर अधिक मतदान कर रही हैं तो उसका परिणाम क्या होने जा रहा है,
इसे समझा जा सकता है। वैसे श्री किशोर ने इस बात का भी उल्लेख किया कि पश्चिम
बंगाल के साथ साथ तमिलनाडू में भी चुनाव हो रही है। वहां के बारे में मीडिया कवरेज नहीं
के बराबर है। ऐसे में यह भी समझा जाता है कि मोदी सरकार ने मीडिया को यहीं फोकस
करने का निर्देश दे रखा है क्योंकि तमिलनाडू में वह कोई कमाल नहीं दिखा पायेंगे, यह
पहले ही स्पष्ट हो चुका है।
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