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अनुसंधान में इस जेनेटिक समानता का पता चला
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आसमान में चमगादड़ शिकार करता है
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समुद्र में ह्वेल प्रजाति यही काम करती है
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बहरेपन का ईलाज भी इससे संभव हो पायेगा
प्रतिनिधि
नईदिल्लीः सुनकर किसी लक्ष्य की तरफ बढ़ना अनेक प्राणियों में मौजूद है।
इनमें से इंसान जैसे अपना लक्ष्य भले ही सुनकर तय नहीं करते हों
लेकिन इसी की बदौलत शिकार करने वाले प्राणी पूरी तरह इसी पर आश्रित होते हैं।
जब कभी भी यह स्थिति बाधित होती है तो ऐसे प्राणी दिशा भटक जाते हैं।
उदाहरण के लिए हम चमगादड़ को ले सकते हैं। यह रात के अंधेरे में शिकार करता है।
हमें पता है कि वह दिन के उजाले में ठीक से देख भी नहीं पाता।
इसके बाद भी सही दिशा और गति का निर्धारण वह अपने सुनकर मिलने वाले संकेतों से कर पाता है।
दूसरी तरफ गहरे समुद्र में ह्वेल और डॉल्फिन जैसे प्राणी भी काफी दूर से सुनकर ही अपनी दिशा और लक्ष्य तय करते हैं।
इनके शिकार के लिए भी सुनना महत्वपूर्ण होता है।
यहां तक कि इसी गुण की वजह से वह सुनकर जान लेते हैं कि उनके साथी कहां और किस हालत में है।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक दल ने इस पर काफी रिसर्च किया है।
इसमें मिले आंकड़ों के आधार पर वे इसका एक कंप्यूटर मॉडल भी अब तैयार कर रहे हैं।
इनके शोध का निष्कर्ष है कि दरअसल सुनकर अपना लक्ष्य निर्धारित करने की क्षमता के लिए खास तौर पर जेनेटिक पद्धति जिम्मेदार है।
इस अनुसंधान के क्रम में वैज्ञानिकों ने उन 18 किस्म के खास जीनो की पहचान की है, जो प्राणियों को इस काम के लिए मदद पहुंचाते हैं।
सुनकर लक्ष्य करने में दिमाग तक संकेत पहुंचते है
परीक्षण में यह पाया गया है कि इन जीनों से मिलने वाले संकेत ही एक नसों के समूह से होता हुआ कान से दिमाग तक पहुंचता है।
इस क्रम के पूरा होने के आधार पर ही जीवन का दिमाग यह तय करता है कि उसे किस तरफ और कैसे पहुंचना है।
सुनकर ऐसे प्राणी यह पहचान लेते हैं कि जो आवाज वह सुन पा रहे हैं वे उनके लिए भोजन हैं अथवा खतरा।
अपने सह प्राणियों के मौजूदगी का पता भी वे सुनकर ही लगा लेते हैं।
रात के घने अंधेर में चमगादड़ जब छोटे कीट पतंग अथवा मच्छरों को तलाशता है
तो यह तलाश सुनकर ही की जाती है। यह सभी क्षुद्र जीवन उसके भोजन होते हैं।
वे सुनकर ही अपने भोजन की स्थिति और स्थान की अच्छी तरह पहचान कर हमला करते हैं।
यह आसमान की बात है तो समुद्र की गहराई में भी एक जैसी स्थिति होती है।
समुद्र के अंदर ह्वेल अथवा डॉल्फिन जैसे प्राणी भी अपने शिकार को सुनकर पहचानते हैं
और लक्ष्य तय कर हमला करते हैं।
प्राणियों में जेनेटिक समानता के बाद भी जैविक बदलाव
दो अलग अलग स्थितियो के प्राणियों में एक जैसी समानता क्यों है, इसी सवाल ने वैज्ञानिकों को
यह शोध करने के लिए प्रेरित किया था।
तमाम आंकड़ों के विश्लेषण के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि जीनों की समानता की वजह से
यह सभी एक जैसा काम अलग अलग परिस्थितियों में रहते हुए भी कर लेते हैं।
इस बात को समझ लेने के बाद वैज्ञानिक यह मानते हैं कि इसी आधार पर भविष्य में
इंसान के बहरेपन की समस्या को भी जेनेटिक पद्धति से दूर किया जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि इसी जेनेटिक समानता के बाद भी अलग अलग परिस्थितियों में
रहने वाले प्राणियों में उनकी जरूरत के मुताबिक जेनेटिक बदलाव हुए हैं।
लेकिन सुनकर अपना लक्ष्य तय करने का यह गुण इन्हीं जेनेटिक समानताओं की वजह से
सभी में एक जैसा ही विद्यमान है।
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