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पहली बार पैरों वाला यंत्र वहां जांच करने जाएगा
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अपनी पैरों की वजह से यह नये इलाकों तक जाएगा
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चंद्रमा अभियान में पहली बार एचडी वीडियो भेजा जाएगा
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चंद्रमा पर और अधिक बेहतर ढंग से शोध और खोज करने की तैयारी
राष्ट्रीय खबर
रांचीः मकड़ा जैसा रोबोट शायद चंद्रमा के उन इलाकों तक आसानी से पहुच पायेगा, जहां
पहले कोई रोवर नहीं जा पाया है। चंद्रमा पर और अधिक गहन शोध करने की होड़ तेज
होती जा रही है। अमेरिका और चीन के द्वारा वहां हुए खोज और अनुसंधान के बाद अब
ब्रिटिश अंतरिक्ष यान भी वहां जाने वाला है। ब्रिटिन अंतरिक्ष अनुसंधान का यह काम इसी
साल होना है। इस ब्रिटिश अभियान में जो रोबोट वहां खोज के लिए भेजा जा रहा है, वह
अपने आप में अद्भूत है। वैज्ञानिकों ने मकड़ा जैसा यह रोबोट बनाने के बाद उसका नाम
आसागुमो रखा है। इसमें कई ऐसी विशेषताएं हैं, जिनकी मदद से वह अन्य चंद्र अभियानों
के मुकाबले अधिक बेहतर तरीके से काम कर पायेगा। यह मकड़ा जैसा रोबोट अपने
आकार की वजह से बेहतर ढंग से चंद्रमा की धरती पर चल पायेगा। ब्रिटिश फर्म स्पेसबिट
ने इसकी घोषणा की है। कंपनी ने इस रोबोट की कार्यकुशलता का कई स्तरों पर परीक्षण
भी कर लिया है। पहली बार चांद पर ऐसा रोबोट भेजा जा रहा है, जिसके पैर होंगे। उसके
पैर भी मकड़े के जैसे ही हैं। इससे पहले चंद्रमा के अभियान पर जो रोवर भेजे गये थे, वह
सभी चक्का वाली गाड़ियों के आकार के थे। पैर युक्त रोबोट होने की वजह से ही इसकी
अधिक कार्यकुशलता की उम्मीद की जा रही है।
मकड़ा जैसा रोबोट आधुनिक तकनीकों से लैश है
इस रोबोट को तैयार करने में भी अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इसे
एक ही ढांचा के घनाकार फ्रेम में बनाया गया है। छोटे आकार के सैटेलाइट बनाने में भी
इसी तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इसके बारे में जो जानकारी अब तक मिल पायी है,
उसके मुताबिक यह मात्र 1.3 किलो वजन का है। अपेक्षाकृत कम वजन का होने के साथ
साथ यह सौर ऊर्जा से संचालित होता है। इसके चार पैर होने की वजह से यह बिल्कुल
मकड़े की तरह ही आगे बढ़ सकता है। स्पेसबिट कंपनी का दावा है कि वह क्यू 3 2021
अभियान के तहत इसे चांद पर भेजने की तैयारियों में जुटी है। इसे बनाने में ऐसे आकार
का इस्तेमाल भी उसकी लागत को बहुत कम कर देता है।
इसे तैयार करने के काम से जुड़े वैज्ञानिकों का दावा है कि अपनी चार पैरों पर चलने वाला
यह रोबोट उन इलाकों तक भी पहुंच सकता है जहां चक्के वाले रोवर नहीं जा सकते थे।
इसलिए यह चांद पर दूसरे रोवरों के मुकाबले अधिक बेहतर ढंग से अपना काम कर
पायेगा। यह ऊंची चढ़ाई पर चढ़ने के अलावा अधिक कुशलता के साथ खाई में भी उतरने
के बाद वापस लौट आयेगा। इससे हर तरफ की बेहतर जानकारी एकत्रित कर पाना उसके
लिए संभव होगा। यह मकड़ा जैसा रोबोट कितनी कुशलता के साथ काम कर पायेगा,
उसका परीक्षण भी पहले ही कर लिया गया है। आसागुमो का परीक्षण जापान के
कोमोकाडो काजाना गुफा के इलाके में किया गया है।
जापान के सुरंग में इसका सफल परीक्षण किया गया
वहां उतरकर इस रोबोट ने लावा के प्रवाह के इलाको में अपना परीक्षण किया और वहां से
मिलने वाले आंकड़ों का वैज्ञानिकों ने अपने तरीके से मिलान कर इसके काम को
संतोषजनक माना है। दरअसल जापान के इस इलाके में यह परीक्षण इसलिए भी किया
गया था क्योंकि वहां की संरचना चंद्रमा की खाइयों के जैसी ही है। इसे बनाने वाले
वैज्ञानिक यह जांच कर लेना चाहते थे कि चांद पर पहुंचने के बाद वह नियंत्रण कक्ष से
मिलने वाले संकेतों को पकड़कर सही तरीके से अपना काम पूरा कर सकता है अथवा नहीं।
परीक्षण में यह सफल पाया गया है। कंपनी का दावा है कि जापान में हुए परीक्षण के बाद
यह माना जा सकता है कि यह मकड़ा जैसा रोबोट चांद पर भी इतनी ही कुशलता के साथ
काम कर पायेगा। इस रोबोट को एस्ट्रोबोटिक के पेरेग्रीन लुनार लैंडर अंतरिक्ष यान के साथ
भेजा जाना है। चंद्रमा की धरती पर उतरने के बाद यह मकड़ा जैसा रोबोट लैंडर से करीब
दस मीटर की दूरी पर चला जाएगा। परीक्षण के दौरान इसमें लगे सारे उपकरणों की एक
एक कर जांच की गयी है। यह बताया गया है कि इसमें जो कैमरे लगे हुए हैं, वे भी एचडी
वीडियो भेज सकते हैं। साथ ही इसमें लगा थ्री डी लिडार आंकड़ा भी पृथ्वी स्थित नियंत्रण
कक्ष तक सीधे पहुंच सकता है। इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि इस रोबोट के चांद पर
पहुंचने के बाद चंद्रमा पर और अधिक गहन शोध और वहां की संरचना को बेहतर तरीके से
समझ पाना और आसान हो जाएगा।
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