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अफसरों के विदेशी कनेक्शन पर लगी है खुफिया नजर
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पहले रक्षा संबंधी सूचनाओं पर नजर होती थी
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एजेंसियां भी एक दूसरे पर नजर रखती थी
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ब्यूरोक्रेटिस का विदेशी निवेश अधिक बढ़ा
रजत कुमार गुप्ता
रांचीः विदेशी एजेंसियां अब दूसरे माध्यमों से भारतीय नीति निर्धारकों पर डोरे डाल रही
हैं। इस बात की भनक केंद्र सरकार को भी है। इसी वजह से अब भारतीय प्रशासनिक सेवा
और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के भी विदेशी संपर्कों को खंगाला जा रहा है।
गुप्तचर एजेंसियों के काम काज में यह नई जिम्मेदारी जुड़ती नजर आ रही है। इस बात
का संकेत रांची में इस वजह से चल पाया है कि झारखंड में पदस्थापित कुछ अधिकारियों
की गतिविधियों पर भी दिल्ली के विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय में लाल बत्ती जली है।
आम तौर पर इससे पहले भारतीय गुप्तचर एजेंसियों को यह काम नहीं करना पड़ता था।
देश के भीतर खास तौर पर रक्षा संबंधी संवेदनशील सूचना रखने वाले सैन्य अधिकारियों
की गतिविधियों पर ही एजेंसियों की नजर रहती थी। एक सेवानिवृत्त अफसर की मानें तो
आम तौर पर अधिकारियों के भ्रष्टाचार और काले धन का पता होने के बाद भी उस मामले
में केंद्रीय गुप्तचर एजेंसियां कोई रिपोर्ट तैयार नहीं करती थी क्योंकि यह उनका काम भी
नहीं था।
विदेशी एजेंसियां अफसरों की लालच का फायदा उठा रही हैं
अब यह बदलाव देखने को मिल रहा है कि अनेक अधिकारी विदेशों में पूंजी निवेश कर रहे
हैं। इसलिए लिए वे अपने विदेशी संपर्कों का सहारा ले रहे हैं। इसी वजह से विदेशी
गुप्तचरी का नया जाल भारत के अंदर फैल रहा है। सूत्रों की मानें तो केंद्र के रडार पर
झारखंड के भी तीन अफसर हैं, जो हमेशा ही सत्ता के करीब पाये जाते हैं। उनकी
गतिविधियों के साथ साथ अब उनके द्वारा अर्जित की गयी संपत्तियों का विवरण भी
उनके बारे में तैयार होने वाली रिपोर्टों में नियमित तौर पर दर्ज किया जा रहा है।
भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो यह निगरानी सीधे केंद्र के निर्देश पर ही हो रही है क्योंकि पूर्व
के विदेश दौरों के दौरान स्थापित संबंधों की मदद से विदेशी एजेंसियां प्रशासनिक
अधिकारियों को अपने प्रभाव में ले रही हैं। उन्हें जाल में फंसाने के लिए छोटी मोटी मदद
करने की लालच दिया जाता है। जाल में फंसने के बाद उनसे पूरे भारत में अपनी बैच के
अधिकारियों से संपर्क साधकर दूसरे काम कराये जाते हैं। इसकी पुष्टि होने के बाद ही
केंद्रीय एजेंसियां नियमित तौर पर ऐसे संदेहास्पद अफसरों की गतिविधियों पर नजर रख
रही हैं।
गोपनीय दस्तावेज और जासूसी में पहले भी लोग फंसे हैं
एक दूसरे सूत्र की मानें तो गुप्तचर सेवा के एक अधिकारी के गोपनीय दस्तावेजों के साथ
अमेरिका भाग जाने के दौरान ही इसके हल्के संकेत मिल गये थे। बाद में जब नियमित
तौर पर इस पर काम हुआ तो राज दर राज खुलते ही चले गये हैं। विदेशी एजेंसियों को भी
इस बात का पता होता है कि सैन्य तथा खुफिया सेवा के लोगों पर एक दूसरे की नजरदारी
रहती है। इससे पहले ब्यूरोक्रेट्स पर ऐसी नजरदारी नहीं हुआ करती थी। इसी वजह से इस
माध्यम से लालच देकर अपना काम साधने की यह नई चाल इस्तेमाल में लायी जा रही
है। राष्ट्रीय सुरक्षा से यह मुद्दा जुड़ा होने की वजह से शीर्ष स्तर पर इसकी नियमित
निगरानी भी हो रही है।
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