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पिच के फल की फॉसिल से हुई जानकारी
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यूरोप के द्वीप पर इंसानों की बस्ती थी
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जो महिला इसे खा रही थी, उसकी तस्वीर बनी
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फल का प्रयोग च्यूइंग गम की तरह होता था तब
प्रतिनिधि
नईदिल्लीः पांच हजार साल से पहले के इंसान कुछ इस तरीके के नजर आते
थे। वैसे आज के दौर के इंसान से उनमें ज्यादा कुछ अंतर देखने में नहीं
मिलता है। लेकिन जो तस्वीर वैज्ञानिकों ने तैयार की है, वह कंप्यूटर
आधारित है। डेनमार्क के कोपेनहेगेन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अति
प्राचीन च्यूइंग गम के अवशेष के आधार पर यह काम कर दिखाया है। जो
अवशेष मिला था वह करीब 5700 साल पुराना है। इसके माध्यम से वैज्ञानिक
उस काल के भोजन पद्धति और खास कर महिला जीवन पद्धति पर यह शोध
आगे बढ़ा रहे हैं। जिस चीज की पहचान च्यूइंस गम के तौर पर हुई है वह
दरअसल पिच का फल है। इस फल को पांच हजार साल से पहले समय की
कोई महिला चबा रही थी। इस फल की विशेषता च्यूइंग गम के जैसी ही होती
है। इसी वजह से जो अवशेष पाया गया है वह गहरे काले रंग का है। आम तौर
पर यह फल गहरे बैंगनी रंग का होता है। माना जा रहा है कि काफी समय से
इसी अवस्था में होने की वजह से भी उसके रंग में कुछ बदलाव हुआ होगा।
पांच हजार साल पुराने अवशेष की वैज्ञानिक जांच हुई है
इस शोध से जुड़े वैज्ञानिकों को जब यह फल इस फॉसिल की अवस्था में मिला
तो सबसे पहले उसकी जांच कर इस बात की पुष्टि की गयी तो यह वाकई कोई
प्राचीन फॉसिल है। इसकी पुष्टि होने के बाद उसके कालखंड का विश्लेषण के
बाद उसके रासायनिक अवशेषों की वैज्ञानिक जांच की गयी। इसी जांच से
उसके पिच फल होने का पता चला। इतना कुछ होने के बाद उसकी वैज्ञानिक
जांच में उसमें मौजूद पांच हजार साल पूर्व के डीएनए की तलाश की गयी।
डीएनए अवशेष मिलने के बाद उसकी जांच से एक एक कर सारे गुण निकाले
गये। इन्हीं डीएनए तथ्यों के आधार पर कंप्यूटर मॉडल बनायी गयी तो उस
प्राचीन काल के महिला की तस्वीर बनी। वैसे वैज्ञानिकों ने यह स्पष्ट कर
दिया है कि यह सिर्फ एक कंप्यूटर मॉडल भर है। इसमें अधिक अंतर होने की
गुंजाइश कायम है।
डीएनए नमूनों के उपलब्ध होने के आधार पर ऐसा माना जा रहा है कि
दरअसल यह महिला भी उस काल के यूरोप के शिकारी समुदाय की सदस्य थी
अथवा उनकी निकट संबंधी थी। ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि डीएनए
में काफी कुछ समानताएं पायी गयी हैं। इसकी जानकारी नेचर कम्युनिकेशंस
की पत्रिका में प्रकाशित शोध प्रबंध में दी गयी है।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यूरोप के इलाके में होने के बाद भी उस महिला
की चमड़ी सांवली है, उसके बाल काले हैं लेकिन उसकी आंखों का रंग नीला है।
तमाम आंकड़ों को मिलाने के बाद एक रंगकर्मी से उस महिला का चित्र भी
बनाया गया है। यह चित्र अब सार्वजनिक हो चुका है। वैज्ञानिकों ने शोध के
तहत सिर्फ च्यूइंग गम से बनी तस्वीर में दिखने वाली महिला का नाम लोला
रखा है।
कलाकार ने चित्र बनाया तो नाम रखा गया लोला
वैज्ञानिक इस उपलब्धि से अधिक संतुष्ट है क्योंकि पहली बार किसी इंसान
के बारे में उसकी हड्डियों से नहीं बल्कि किसी अन्य पदार्थ में मौजूद उसके
डीएनए नमूनों से किया गया है। कोपेनहेगेम विश्वविद्यालय के सहायक
प्रोफसर और इस शोध दल के नेता हैन्स शोरेडर का यह कथन है। उन्होंने कहा
कि इसके आधार पर इंसान के मुंह के अंदर मौजूद जीवाणु और अन्य सुक्ष्म
जीवों के अस्तित्व का भी पता चला है। इस लिहाज से इसे एक महत्वपूर्ण
उपलब्धि के तौर पर आंका जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने बताया है कि शोध के तहत होने वाली खुदाई में पिच फल का यह
टुकड़ा डेनमार्क के लोलैंड द्वीप पर सिलथोम के इलाके में पाया गया था।
इससे यह भी साबित हो जाता है कि इस इलाके में उस दौरान आबादी हुआ
करती थी।
इस खुदाई और बाद के घटनाक्रमों के आधार पर वैज्ञानिक इस नतीजे पर
पहुंचे हैं कि इंसान के मुंह में मौजूद जीवाणुओं की संरचना की गहन जांच से
इस बात का भी पता चल पायेगा कि उस काल से अब तक जीवाणुओं की
संरचना में क्या कुछ बदलाव आया है। साथ ही उस दौर के खान-पान के बारे
में भी कुछ और नई जानकारी मिल पायेगी। इससे इंसानों के क्रमिक विकास
के बारे में नये तथ्य जुड़ सकते हैं। वरना उस काल का इंसान कैसा था, इस
बार में बहुत कुछ पता चल चुका है।
उस दौर के वायरसों के बारे में भी जानकारी मिली है
वैसे इस शोध के दौरान एक खास किस्म के वायरस का भी पता चला है। इस
वायरस का नाम इपेस्टिन बार वायरस है। इसके असर से इंसानों को बुखार
हुआ करता था। इसके हमले में इंसान की ग्रंथियों में सूजन भी आ जाता था।
समझा जाता है कि पिच का फल उसी बीमारी में दवा के तौर पर इस्तेमाल
किया जाता होगा। वैसे वैज्ञानिक इन जीवाणुओं और विषाणुओं के बदलाव के
आधार पर भविष्य में इनके हाल चाल पर भी जान लेना चाहते हैं ताकि
भविष्य में इंसानों पर होने वाले वायरसों के हमलों की पूर्व जानकारी मिल
सके।
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