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कोरोना काल में तो दिहाड़ी मजदूर भी बनना पड़ा
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किसी सरकार ने कोई ध्यान ही नहीं दिया हमपर
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अंतिम समय में कीड़ा लगने से हुआ भारी नुकसान
दीपक नौरंगी
मुंगेरः मुंगेर के किसानों से बात करने के बाद एक नहीं कई जानकारियां मिली। अफसर
गांव में नहीं आते हैं, यह तो पुरानी बात हुई। पहली बार वहां के लोगों ने इस बात की भी
शिकायत की कि उनका दुख दर्द समझने कोई मीडिया कर्मी भी इससे पहले नहीं पहुंचा
था। यह वाकई हैरत करने वाली बात थी।
वीडियो में देखिये इस पर विस्तृत रिपोर्ट
जिस गांव के किसानों से बात चीत का सिलसिला प्रारंभ हुआ, वहां के नब्बे प्रतिशत लोग
कृषि से ही जुड़े हुए हैं। सभी ने कोरोना काल में भीषण तंगी और संकट झेला है। उन्हें
उम्मीद थी कि खेती से उपजी फसल को सही दाम पर बेचकर वह फिर से खड़े हो जाएंगे।
लेकिन अब हालत यह है कि सरकारी स्तर पर धान की खरीद की कोई व्यवस्था नहीं है।
दूसरी तरफ अधिकांश किसानों की आर्थिक हैसियत यह नहीं बची कि वे अच्छी कीमत
मिलने तक धान को रोक कर रख सके। लिहाजा औने पौने दाम में वे बिचौलियों को धान
बेचने पर मजबूर है। इस मौके के हाथ से जाने देंगे तो उनकी अगली फसल का मौसम
निकल जाएगा। आने वाले दिनों में उन्हें अपने खेतों में गेंहू की फसल बोने की चुनौती
सामने खड़ी दिख रही है।
मुंगेर के किसानों से मिली नुकसान की नई जानकारी
वहां के किसानों से हुई बात चीत से ही पता चला कि जब धान पकना प्रारंभ हुआ था तो
उस खड़ी यानी तैयार फसल पर कीड़े का प्रकोप हो गया। स्थिति इतनी विकट थी कि कीड़ा
लगे धान को अलग करने के लिए मजदूर भी नहीं मिल रहे थे। इसका नुकसान यह हुआ
कि तैयार फसल की तीन चौथाई हिस्सा कीड़ों की भेंट चढ़ गया। अब एक चौथाई फसल से
वह परिवार कैसे पालेंगे, यह चिंता उन्हें सता रही है। दूसरी तरफ मुंगेर के किसानों ने
बिचौलियों के कारोबार की भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सरकारी दर से तीन
चौथाई पर धान बेचना मजबूरी है क्योंकि उनके पास पैसा नहीं है। इसी पैसे से अगली
फसल और परिवार का पेट पालना है। अब हालत यह है कि सस्ते दाम पर फसल खरीदने
के अलावा बिचौलियो चालीस किलो के बदले 45 किलो तक धान तौल रहे हैं। अपनी
मजबूरी भांपते हुए किसान इसे सहने पर मजबूर है क्योंकि फिलहाल सरकार की तरफ से
घोषणा के अलावा वास्तविकता के धरातल पर कुछ भी नहीं है।
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