नई दिल्ली : आर्थिक मंदी का असर दुपहिया वाहन कम्पनी पर इस कदर दिखा कि देेेश के बडेे दुपहिया वाहन कम्पनी को स्थाई कर्मचारियो को काम से हटाने पर मजबुर होना पड़ गया।
इतना ही नही लगातार हर दो तीन महिने में कई कई बार काम रोकने की भी नौबत आ गयी है।
बता दे कि इस मंदी के असर से प्रभावित होने वाले दुपहिया वाहन कम्पनी होंडा की है।
जिसकी मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया की प्लांट मानेसर में स्थित है।
कम्पनी की बिक्री में आई गिरावट इस कदर है कि होंडा की तरफ से कर्मचारियों को कहा गया है कि गतिरोध के चलते अगले आदेश तक प्लांट में ऑपरेशंस को बंद रखा जाएगा।
हालांकि पुर्णत: सभी कर्मचारियो को नही निकाला गया है पर लगातार हर तीन महिने के दरम्यान 100 से 150 कर्मचारियो की छटनी कर दी जाती है।
कुछ कर्मचारियो को तो पुन: काम पर रख लिया जाता है पर कई अब भी बेरोजगार बैठे है।
कम्पनी की ओर से जारी ब्यान में बताया गया कि प्लांट में पिछले छह दिन से गतिरोध जारी है।
जिसके कारण अगले आदेश तक प्लांट में चल रहे कार्य को स्थगीत करने का आदेश दिया गया है।
समझौते पर फंसा मामला
होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया कम्पनी अपने मानेसर स्थित प्लांट को फिलहाल एक समझौते के तहत लटका दिया है।
दरअसल कम्पनी का कहना है कि जब तक 2000 अनुबंधित कर्मचारियों और प्रबंधन के बीच समझौता नहीं हो जाता है कुछ समय के लिए काम को बंद रखा जाएगा।
जानकारी के अनुसार इस प्लांट में पिछले छह दिन से यह गतिरोध लगातार जारी है।
क्य कहते है युनियन के प्रधान?
यूनियन के प्रधान सुरेश गौड़ ने इस मामले में जानकारी देते हुए बताया कि कंपनी कई दिनों से 100 से 150 कर्मचारियों को हटाती जा रही है।
इसी सीलसीले में पांच नवंबर मंगलवार को सुबह 10.30 बजे एक नये आदेश के तहत करीब तैयार सुची में 150 कर्मचारियों को हटाने को आदेश किया गया था।
जो कार्यरत श्रमिको के लिये स्वीकार्य नही था चुंकि यह उनकी रोज़ी रोटी का सवाल है,
इसलिये वे इस अचानक जारी हुए आदेश पर अपना आक्रोश जताने लगे।
मालुम हो कि होंडा कंपनी में करीब 2200 अनुबंधित कर्मचारी चार-पांच वर्ष से काम कर रहे हैं।
वहि लगभग 1900 कर्मचारी स्थायी हैं जो सभी कर्मचारी तीन शिफ्ट में काम करते हैं।
पर अचानक से निकाले गये आदेश से परेशान कर्मचारियो ने अपना गुस्सा जताया।
जिस मसले पर कम्पनी प्रबंधन से कई बार बात भी हुई, लेकिन ठोस नतीजा नहीं निकला।
सुरेश गौड़ ने बताया कि कंपनी हर तीन महीने बाद कर्मचारियों को तीन से चार माह के लिए हटा देती है।
पहले हटाए गए काफी कर्मचारियों को रखा भी नहीं गया।
इन हालात में वह आर्थिक तंगी से जूझते रहते हैं।
कंपनी प्रबंधन से कई बार बात भी हुई, लेकिन ठोस नतीजा नहीं निकला।
दिवाली से पहले भी स्थायी कर्मचारी को निकालने पर प्लांट में विवाद बढ़ गया था।
लेकिन कंपनी प्रबंधन ने दिवाली होने की वजह से स्थिति को संभाल लिया और प्लांट चालू रखा।
[…] दिल्ली : ब्रिटैनिया और पारले कम्पनी की स्थिती अक्टूबर महिने में काफी […]
[…] सचिव ने तकनीक के सहारे वित्तीय प्रबंधन को पारदर्शी बनाने के […]
[…] पर्यावरण असंतुलन का असर अब पशु पक्षियों पर भी पड़ने लगा […]