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अंधापन नियंत्रण में पंजाब कै शोधकर्ताओं की उपलब्धि
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भारत जैसे देशों में इसके मरीजों की संख्या अधिक
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दूरस्थ इलाकों तक चिकित्सा सुविधा की पहुंच नहीं
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आई ड्रॉप से आंख में जाकर अपना काम कर लेगा
प्रतिनिधि
नयीदिल्लीः आई ड्रॉप वह काम कर देगा, जिसके लिए पहले ऑपरेशन की जरूरत पड़ती
थी। अंधापन दुनिया के लिए एक तेजी से बढ़ती हुई चुनौती है। इसमें भी मोतियाबिंद की
वजह से होने वाले अंधापन और दृष्टिदोष के मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो
रही है। खास कर अल्प चिकित्सा सुविधा वाले इलाकों में उम्र के साथ साथ मोतियाबिंद
की चपेट में आने वाले भी बढ़ रहे हैं। जिनके पास इसकी समय पर जांच और ईलाज की
सुविधा भी मौजूद नहीं है। इसी संकट को समझते हुए देश के अनेक नेत्र चिकित्सक अब
दूरस्थ गांवों में नेत्र जांच शिविर लगाते हैं। इसका एकमात्र मकसद चिकित्सा सुविधा को
ग्रामीणों के दरवाजे तक ले जाना होता है ताकि उन्हें पता चल सके कि उनकी आंखों को
क्या परेशानी है। इस किस्म के चिकित्सा शिविरों ने हजारों लोगों की आंखों को नई
जिंदगी देने का काम किया है।
इसी क्रम में पंजाब के वैज्ञानिकों ने एक नई विधि तैयार करने में सफलता पायी है।
इंस्टिट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने एस्पिरीन की मदद से वह
सुक्ष्म हथियार तैयार किया है, जो मोतियाबिंद के प्रोटिन को बनने नहीं देता। सबसे बड़ी
बात है कि यह काफी सस्ती और बिना किसी शल्य क्रिया के किया जाने वाला उपचार है।
जाहि है कि इस विधि के सस्ता होने और किसी ऑपरेशन की जरूरत नहीं होने की वजह से
भारत जैसे विकासशील और कम चिकित्सा सुविधा वाले देशों में इसका बहुत ज्यादा लाभ
मिल सकता है।
आई ड्रॉप ही मोतियाबिंद के प्रोटिन को तोड़ देगा
दरअसल वैज्ञानिकों ने एस्पिरीन से वह नैनो रॉड तैयार कर लिया है, जो उस प्रोटिन के
हिस्सों को तोड़ देता है जो बाद में चलकर मोतियाबिंद की वजह बनते हैं। मोतियाबिंद में
आंख की झिल्ली के ऊपर प्रोटिन के थक्के आने की वजह से ही देखने की क्षमता कम हो
जाती है। दरअसल रेटिना के सामने इस किस्म की बाधा होने की वजह से ही इंसान या
दूसरे जानवर सही तरीके से देख नहीं पाते हैं। संस्थान की तरफ से इस उपलब्धि के बारे में
आधिकारिक तौर पर जानकारी दी गयी है।
कैटारेक्ट यानी मोतियाबिंद के बारे में बताया गया है कि यह दरअसल आंख के पर्दे के
ऊपर बनने वाला प्रोटिन का वह पर्त है जो अपारदर्शी होते हैं। इसी वजह से जिसकी आंख
में यह प्रोटिन बन जाते हैं, वे साफ तरीके से देख नहीं पाते। फिर से नजर सही करने के
लिए ऑपरेशन के जरिए इस प्रोटिन को हटाना पड़ता है। वर्तमान में इस मोतियाबिंद
ऑपरेशन की अनेक विधियां मौजूद हैं। पंजाब के वैज्ञानिकों ने इसी प्रोटिन की पर्त को
बिना शल्यक्रिया के हटाने के लिए यह नैनो रॉड तैयार किया है। इस विधि से आंख के पर्दे
के ऊपर बनने वाली हल्के नीले अथवा भूरे रंग की वह झिल्ली समाप्त हो जाएगी तो
मोतियाबिंद का कारण बनती है।
जिस विधि को इस उपचार के लिए आजमाया गया है वह दरअसल नैनो टेक्नोलॉजी पर
आधारित है। एस्पिरीन से तैयार यह नैनो रॉड आंख के अंदर प्रोटिन के समूहों का थक्का
बनने से रोक देते हैं।
नैनो टेक्नोलॉजी पर आधारित है यह प्रक्रिया
सबसे बड़ी बात यह है कि यह कोई शल्यक्रिया भी नहीं है। इससे मरीजों को अस्पताल में
दाखिल भी नहीं होना पड़ेगा। दरअसल मोतियाबिंद के प्रोटिन की संरचना का गहन
अध्ययन करने के बाद ही वैज्ञानिकों ने इस ओर अनुसंधान प्रारंभ किया था। सभी किस्म
के मोतियाबिंद को प्रोटिन की पर्त को समझ लेने के बाद यह देखा गया कि उन्हें बिना
किसी ऑपरेशन के कैसे समाप्त किया जा सकता है। इसके लिए नैनो विधि सबसे कारगर
साबित हुई है। इस प्रयोग में यह भी उल्लेख किया गया है कि यह विधि किसी स्टेराय़ की
मदद से किया जाने वाला उपचार भी नहीं है। इसलिए इसके साइड एफेक्ट भी न्यूनतम हैं।
चूंकि इन नैनो रॉडों का आकार अत्यंत सुक्ष्म होता है इसलिए किसी भी आई ड्रॉप के
माध्यम से उन्हें आंख के अंदर पहुंचाया जा सकता है। एक बार वहां पहुंच जाने के बाद यह
अपने आप ही प्रोटिन को तोड़कर समाप्त करने का काम करने लगता है।
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