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शोध के केंद्र में हैं भारतीय मसाला हींग, औषधि है अथवा कीटनाशक

  • भारत में पहले इसकी खेती नहीं होती थी

  • कई देशों में इसका औषधीय प्रयोग होता है

  • निरामिश भोजन का स्वाद बदला है इस मसाले ने

राष्ट्रीय खबर

रांचीः भारतीय खास कर उत्तरी भारतीय रसोई में हर अच्छे भोजन में इस मसाला का प्रयोग होता है। चूंकि यह महंगा भी होता है इसलिए गृहिणियां किफायत से इसका इस्तेमाल करती हैं। इस मसाला को हर कोई हींग के नाम से जानता है। वनस्पति विज्ञान की परिभाषा में इसे असाफोयेटिडा कहा जाता है।

इसकी महक भी भोजन को और बेहतर बनाती है। लेकिन इसकी महक की वजह से ही वैज्ञानिक इसे गहराई से समझना चाहते हैं। दरअसल भारतीय रसोई में इसके पेड़ की जड़ों से निकलने वाले गोंद को ही इस्तेमाल किया जाता है। उसे पहले बुरादा बनाया जाता है।

इसके बाद ही अपनी खास तेज महक की वजह से हींग को पहचान पाना आसान है। वैसे इस अनुसंधान के क्रम में यह राज भी खुला है कि सिर्फ इस एक मसाले के प्रयोग से ही भोजन की पद्धति का पता चल जाता है। अब वैज्ञानिक यह समझना चाहते हैं कि यह दरअसल क्या है। यह भोजन में इस्तेमाल होने के बाद भी औषधीय गुणों वाला पदार्थ है अथवा यह अपनी महक की वजह से एक कीटनाशक भी है।

इसके पेड़ जंगली पेड़ की तरह अफगानिस्तान, ईरान और उजबेकिस्तान के इलाके में पाये जाते हैं। समझा जाता है कि प्राचीन भारतीय भूभाग जब इन देशों की सीमा तक फैला हुआ था तभी से इस मसाले का उपयोग भारतीय भोजन में होने लगा था। यह क्रम आज भी जारी है।

शोध के तहत वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि फारसी में इसके असा का अर्थ गोंद होता है। फोटिडा को लैटिन भाषा में महकदार कहा जाता है। भारतीय रसोई के लिए यह हींग नाम से प्रसिद्ध होने की वजह से अब दुनिया में भी हींग के नाम से अधिक जाना जाता है।

हाथ में हींग पड़ने के बाद अनेकों बार साबून से हाथ धोने के बाद भी इसकी महक नहीं जाती है। इसके थोड़े से हिस्से को किसी दूसरे मिश्रण के साथ मिलाकर भी अगर जीभ पर रख दिया जाए तो जलन महसूस होती है। दिल्ली सहित कई बाजारों में हींग की मौजूदगी का एहसास उसकी महक की वजह से होने लगती है।

भारतीय रसोई में इस हींग ने प्याज और लहसुन के बीच की खाई को भरने का काम किया है। इन दोनों का अनेक भारतीय घरों में प्रवेश वर्जित होने की वजह से हींग ने अपनी जगह आसानी से बना ली है। आटा या चावल के साथ मिलाकर इसकी बहुत कम मात्रा का प्रयोग ही महक और स्वाद बदलने के लिए पर्याप्त है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक अलेकजेंडर ने जब भारत पर आक्रमण किया था तो हींग का प्रवेश उसी काल में हुआ था लेकिन दूसरे मानते हैं कि गुप्त काल में ही यह उन इलाकों से दूसरे भारतीय इलाकों तक फैल गया था। लेकिन असली प्रश्न इसकी उपयोगिता को लेकर है।

पता चला है कि कफ सीरप बनाने में भी इसका इस्तेमाल होता है। इसमें कई ऐसे गुण हैं जो खांसी को नियंत्रित करते हैं। दूसरी तरफ यह भी परीक्षण में पता चला है कि इसमें परजीवियों और कुछ कीड़ों को मार डालने का गुण भी है। उसके अलावा तेज महक की वजह से भी ढेर सारे कीट पतंग इसके करीब नहीं आते हैं। भारतीय आयुर्वेद में पेट का गैस निकालने में भी इसका इस्तेमाल होता है।

अंतर्राष्ट्रीय शोध के तहत पता चला है कि अफ्रीका और जमैका के लोग भी इसका इस्तेमाल बुरी शक्तियों को दूर भगाने के लिए करते रहे हैं। पुराने समय में स्पैनिश फ्लू को भगाने के लिए भी इसका प्रयोग होता रहा है।

लेकिन शोध दल यह जानकर हैरान है कि दुनिया में हींग की सबसे अधिक खपत करने वाला देश भारत ने कभी इसकी खेती नहीं की है। हिमालय के ठंडे इलाके के किसानों ने इसकी खेती का काम अब प्रारंभ किया है। भारतीय किसानों की इस पहल का आर्थिक पहलु यह है कि अगर पर्याप्त हींग का उत्पादन भारत में होने लगा तो भारत इसकी खरीद पर होने वाले लाखो डॉलर के विदेशी मुद्रा की बचत भी कर सकता है।

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