डॉ मनमोहन सिंह को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उसके पीछे लगे अनुयायी पहले मौन
मोहन कहा करते थे। आम तौर पर बहुत कम और मृदु बोलने वाले डॉ मनमोहन सिंह के
खिलाफ नरेंद्र मोदी का यह प्रचार चुनाव जीतने में कारगर भी साबित हुआ था। लेकिन
नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दे पर डॉ मनमोहन सिंह ने बतौर अर्थशास्त्री जो बातें कही थी,
वे अक्षरशः सही साबित हो रही हैं। नोटबंदी से अर्थव्यवस्था के पूरी तरह तबाह होने की
आशंका उन्होंने जतायी थी। साथ ही उन्होंने काला धन के बारे में नरेंद्र मोदी और उनके
समर्थकों द्वारा जो दावा किया जा रहा था उसे भी गलत बताया था। लेकिन वह दूसरा दौर
था और भारतीय जनमानस में एक धारणा बन चुकी थी कि डॉ मनमोहन सिंह की सरकार
में बहुत भ्रष्टाचार है। दरअसल टू जी और थ्री जी के घोटालों का ढोल इतना पिटा गया था
कि हममें से अधिकांश यह मान चुके थे कि यह सरकार सिर्फ चंद लोगों को फायदा
पहुंचाने वाले फैसले लेती है। अब इतने वर्ष बीत जाने के बाद उसी मौन मोहन की बातें
फिर से याद आ रही है, जो उन्होंने बतौर एक लेख लिखा था और संसद के अंदर भी बड़ी
गंभीरता के साथ कहा था। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद कुछ फैसलों से पीछे हट
जाने के बाद उस सरकार को भी यू टर्न सरकार की संज्ञा कांग्रेसियों ने दी थी। लेकिन वह
दौर ऐसा था कि कांग्रेसी नेताओं की हर बात पर साजिश की बू आती थी। अब छह वर्ष से
अधिक समय तथा खास तौर कर कोरोना संकट को झेलकर आगे बढ़ता भारतवर्ष यह
समझ पा रहा है कि डॉ मनमोहन सिंह की बातें ही सही थी।
डॉ मनमोहन सिंह के रास्ते पर ही चलना पड़ रहा है भाजपा को
यू टर्न के अनेक मामले हम पहले ही देख चुके हैं। अब लगता है कि डॉ सिंह ने बतौर
अर्थशास्त्री इसी जीएसटी पर जो बातें कही थी, उसे भी सरकार अपनाने जा रही है। हो
सकता है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की मार्च में होने वाली बैठक में कर की
दरों को वाजिब बनाने और कई स्लैब का आपस में विलय करने के बारे में फैसला लिया
जाए। इससे दरें राजस्व तटस्थ दर के करीब आ सकेंगी और अप्रत्यक्ष कर की यह प्रणाली
पहले से ज्यादा सरल बन जाएगी। बैठक की तारीख अभी तय नहीं हुई है मगर बैठक
इसीलिए अहम है क्योंकि 15वें वित्त आयोग ने 12 फीसदी और 18 फीसदी कर के स्लैब
आपस में मिलाने की सिफारिश की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कल प्राकृतिक गैस को
जीएसटी के तहत लाने का संकल्प जाहिर किया। मगर अधिकारियों का कहना है कि ऐसे
किसी भी प्रस्ताव के लिए राज्यों की रजामंदी जरूरी है और आंध्र प्रदेश समेत कुछ राज्य
इसका विरोध कर रहे हैं। जीएसटी दरें राजस्व तटस्थ दर से नीचे हैं और परिषद ही फैसला
करेगी कि वाजिब दर क्या होनी चाहिए। इसके पीछे लक्ष्य यही होगा कि जीएसटी
व्यवस्था साफ सुथरी बने और राजस्व बढ़ जाए। अधिकारी ने यह भी कहा कि जीएसटी से
हर महीने 2 लाख करोड़ रुपये तक का राजस्व मिल सकता है। इस साल जनवरी में
जीएसटी से रिकॉर्ड 1.19 लाख करोड़ रुपये की कमाई हुई थी। दिसंबर, 2020 में भी आंकड़ा
1.15 लाख करोड़ रुपये रहा था। एन के सिंह की अगुआई वाले 15वें वित्त आयोग ने केवल
तीन जीएसटी दरें रखने की सिफारिश की है। आयोग ने 12 और 18 फीसदी की मौजूदा दरों
को मिलाकर नई दर, 5 फीसदी की दर और 28-30 फीसदी की दर रखने का सुझाव दिया
है।
वित्त आयोग ने आईएमएफ की दुहाई दी और पीछा छुड़ाया
वित्त आयोग का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के हिसाब से जीएसटी
की प्रभावी दर 11.8 फीसदी बैठती है, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक इसे 11.6 फीसदी बताता
है। वित्त आयोग को यह भी लगता है कि जीएसटी से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 7.1
फीसदी के बराबर राजस्व पैदा करने की क्षमता है मगर अभी यह 5.1 फीसदी के बराबर
राजस्व ही जुटा पा रहा है। देश को जीडीपी में करीब 4 लाख करोड़ रुपये की क्षति हो रही
है। फिलहाल जीएसटी के चार स्लैब 5, 12, 18 और 28 फीसदी हैं। केंद्र सरकार ने 5 फीसदी
दर वाले स्लैब को बढ़ाकर 6 से 8 फीसदी के बीच लाने और 12 फीसदी का स्लैब हटाने के
प्रस्ताव पर भी गौर किया था। लेकिन कई वर्गों से तीखी प्रतिक्रिया आने पर उसे कदम
खींचने पड़े थे। अब पेट्रोल के भी एक सौ रुपये के पार जाने के बाद भाजपा के पास इसकी
सफाई में कुछ कहने को नहीं बचा है। यानी जीएसटी पर डॉ मनमोहन सिंह ने जो कुछ
कहा था वह सच साबित होने के साथ साथ हम फिर से इस सरकार का एक और यू टर्न
देखने जा रहे है।
[…] ईरानी का उल्लेख इसलिए जरूरी है कि उस दौर में वह तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन […]