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वे काम के अंजाम को भी समझ लेते हैं
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सामाजिक आचरण भी दिमाग से सीखते हैं
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54 कुत्तों पर किये अनुसंधान का नतीजा निकला
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इंसानों की तरह सोचने वालों में श्वान प्रजाति भी शामिल
राष्ट्रीय खबर
रांचीः कुत्ते अपनी दिमाग लगाते हैं। यानी वे भी इंसानों को तरह अपने आस पास की
चीजों को देखते समझते हुए दिमागी फैसला लेते हैं। वैज्ञानिकों ने एक शोध के बाद यह
निष्कर्ष निकाला है। इस शोध में यह भी पाया गया है कि कुत्तों को यह भी पता होता है कि
उनके किसी कार्य का क्या नतीजा होने वाला है। यानी वे अपनी तरफ के अपने किसी भी
कार्य का परिणाम आंकते हैं। गत गुरुवार को साइंटिफिक रिपोर्ट्स नामक पत्रिका में इस
शोध के बारे में एक शोध प्रबंध प्रकाशित किया गया है। इसके तहत खास तौर पर यह
समझने की कोशिश की गयी है कि श्वान की अधिकांश प्रजातियां इस मामले में एक जैसा
ही दिमागी आचरण किया करती हैं। वैज्ञानिकों ने पाया है कि इंसानों की तरह कुत्तों को
भी अपने शरीर के बारे में पूरा पता होता है। वे अच्छी तरह इस बात को समझते हैं कि वह
अपने इस शरीर से क्या कुछ कर सकते हैं अथवा उन्हें क्या नहीं करना चाहिए। यह ज्ञान
सिर्फ दिमाग में पैदा होता है, लिहाजा यह माना गया है कि कुत्ते भी सोच सकते हैं। अपनी
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पहचान और अपनी दशा का आकलन कर किसी फैसले तक पहुंचना भी दिमाग के
इस्तेमाल की बड़ी पहचान हैं। इसलिए यह माना जा सकता है कि कुत्ते भी सोच समझकर
काम करते हैं। पैदा होने के बाद से अपने शरीर के नियंत्रण और उसका दिमाग से रिश्ता भी
उनका मजबूत होता चला जाता है। कुछ ऐसी ही स्थिति इंसान के बच्चों की भी होती है।
जैसे जैसे उसका शारीरिक विकास होता है, दिमाग के साथ उसके रिश्ते और बेहतर होते
चले जाते हैं। बाद में यह और कुशल हो जाता है। यह भी दरअसल सोचने समझने की
शक्ति का विकसित होने का दूसरा लक्षण है।
कुत्ते अपनी सोच से सही फैसला लेकर काम करते हैं
पैदा होने के वक्त अपने शरीर पर कोई नियंत्रण नहीं रख पाता है। लेकिन जैसे जैसे उसका
शारीरिक विकास होता है वह दिमाग और शरीर के तालमेल को बेहतर बनाता चला जाता
है। मसलन पांच माह का बच्चा अपने पैरों को हिलाने डुलाने की बात को खुद ही समझने
लगता है। जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती है वह अपनी दिमागी शक्ति से शरीर के अन्य अंगों
पर भी नियंत्रण पा लेता हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति कुत्तों के साथ भी होती है। इस बात को
वैज्ञानिकों ने कुत्तों पर किये गये कई किस्म के प्रयोगों से समझा है। मसलन किसी खास
दूरी तक छलांग लगाने के पहले कुत्ते अपने दिमाग में इस लक्ष्य की सफलता को तय
करता है। आवश्यकता के मुताबिक वह अपनी दिशा और शक्ति के संतुलन को बेहतर बना
लेता है। यह काम होने के बाद ही वह छलांग लगाता है। यह भी दिमागी नियंत्रण का एक
बेहतर उदाहरण है। कुछ खास प्रजाति के कुत्ते बहुत ऊंचाई तक छलांग लगा सकते हैं।
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लेकिन यह भी देखा गया है कि किसी खास ऊंचाई तक छलांग लगाने के पहले कुत्ता कुछ
पल तक सोचता है और इस दौरान उसकी शारीरिक स्थिति भी बदलती है। यानी सब कुछ
देख समझ लेने के बाद ही वह अपनी कार्रवाई को अंजाम देता है। ऐसा इसलिए होता है कि
उसका दिमाग शरीर की शक्ति की जरूरत और लक्ष्य तय करने की सफलता को दिमाग
के अंदर निर्धारित कर रहा होता है।
बंदर भी इसी तरह सोचकर लंबी छलांग लगाता है
समझ लेने के बाद एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक की लंबी छलांग लगाते हैं। इसी शक्ति की
बदौलत वे कई बार शिकारी जानवर को भी धोखा देने में कामयाब होते हैं। कुत्तों के शोध
में यह और बेहतर तरीके से समझ में आयी है। कुत्ते अपने दिमाग के इस्तेमाल की
बदौलत ही सामाजिक आचरण भी सीखते चले जाते हैं। कुत्तों के झूंड में कौन अपना है
और कौन पराया है, यह पहचान भी कुत्ते अपने दिमाग से और सामाजिक प्रशिक्षण से
सीख लेते हैं। इसलिए किसी दूसरे इलाका का कुत्ता अगर उनके इलाका में आ जाए तो
उस पर वे दल बनाकर हमला भी करते हैं। इओटवोज विश्वविद्यालय, हंगरी के शोध दल
ने अपने परीक्षण में 54 अलग अलग कुत्तों को शामिल कर दिमाग शक्ति संबंधित अनेक
परीक्षण किये थे। इन्हीं परीक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि कुत्ते
अपनी दिमाग का सही इस्तेमाल कर सकते हैं।
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