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वुहान से यूरोप आने तक हुए बदलाव
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लेकिन उसकी मारक क्षमता घट रही है
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बदलाव के कारक की पहचान हो चुकी है
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बदलाव के बाद भी वैक्सिन का असर कायम रहेगा
प्रतिनिधि
नईदिल्लीः कोरोना वायरस अब स्वरुप बदल रहा है यानी जिसे वैज्ञानिक परिभाषा में
म्युटेशन होना कहते हैं। इससे वायरस अपने मूल स्वरुप से भिन्न होने लगता है। हर
वायरस के साथ ऐसा होता है। इसी म्युटेशन की वजह से अब टीबी के वायरस पहले की
टीवी की दवाइयों से प्रभावित नहीं होते। लेकिन कोरोना की वैक्सिन बनाने में जुटे
वैज्ञानिक इससे कतई चिंतित नहीं हैं। उनके मानना है कि वायरस की संरचना और काम
करने के तरीको पर जो कुछ रिसर्च हो चुका है, उसके आधार पर जब वैक्सिन बन जाएगी
तो वह इस म्युटेशन के बाद भी कोरोना वायरस पर समान रुप से असरदार रहेगा।
यह पाया गया है कि चीन के वुहान शहर में जो वायरस के चिह्न मिले थे, उससे यूरोप के
नमूने काफी बदले हुए हैं। इस बदलाव को भी ध्यान से समझा गया है। इस परिवर्तन को
डी 614 जी कहा गया है। पहली बार यह यूरोप में फरवरी माह में पकड़ में आ गयी थी।
इसके चिह्न सारी दुनिया में मिले हैं। यह बदलाव ही चीन के वुहान शहर के मुकाबले
अधिक संक्रामक साबित हुआ है। लेकिन वैक्सिन रिसर्च में जुटे वैज्ञानिक इस बदलाव को
भी वैक्सिन से रोक पाने की उम्मीद रखते हैं। इस बदलाव का असर यह भी देखने को मिल
रहा है कि दुनिया के कई इलाकों में तेजी से फैलने के बाद भी कोरोना वायरस अब से होने
वाली मौत के आंकड़े तेजी से नीचे जा रहे हैं। यानी वायरस अधिक लोगों के तक फैलने के
बाद भी इससे मृत्यु का प्रतिशत नीचे आ रहा है। इस बारे में सिंगापुर के नेशनल
यूनिवर्सिटी के सलाहकार पॉल तामबियाह कहते हैं कि यह शायद एक अच्छी बात है कि
यह अधिक संक्रामक होने के बाद भी कम मारक बनता जा रहा है।
कोरोना वायरस अब तक के जीवन चक्र का अध्ययन हुआ
दरअसल वैज्ञानिकों ने इस वायरस के अपने जीवन चक्र का भी अध्ययन किया है। सार्स
कोव-2 एक एकल आरएनए आधारित वायरस पाया गया है। यह किसी इंसान के शरीर में
प्रवेश करने के बाद भी अपने प्रतिकृति बनाने का काम प्रारंभ कर पाता है। बाद में यह
शरीर के अन्य कोषों में भी अपनी संख्या बढ़ा लेता है। लेकिन इंसानी शरीर के जिनोम
श्रृंखला से जुड़ने की वजह से इसकी अपनी संरचना में भी बदलाव होता जाता है। शायद
इस बार की कोरोना वायरस के स्वरुप बदलने में ऐसा ही कुछ हो रहा है।
इसी बदलाव की वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक मानते हैं कि हो सकता है
कि यह वायरस स्पैनिस फ्लू के मुकाबले कम समय में अचानक हमारे बीच से गायब ही हो
जाए। उनका आकलन है कि अगले दो वर्षों में कई कारणों से इसका प्रभाव तेजी से कम
होने की पूरी उम्मीद है। उन्होंने याद दिलाया कि वर्ष 1918 में जब स्पैनिस फ्लू आया था
जो उसे भी नियंत्रित करने में दो वर्ष का समय लगा था। लेकिन तब से अब तक चिकित्सा
और वायरस विज्ञान में काफी तरक्की हो चुकी है। इसलिए अभी वायरस के आने के बाद से
उसके स्वरुप और आचरण के साथ साथ जेनेटिक संरचना को काफी कम समय के अंदर
ही पकड़ा जा सका है। उनके मुताबिक आज की दुनिया में परिवहन सेवा और आवागमन
बेहतर होने की वजह से वायरस को एक इलाके से दूसरे इलाके तक फैलने में अधिक समय
नहीं लगा, यह सही बात है। लेकिन इस दौर में हमारे पास अब उन्नत तकनीक है, जिसकी
मदद से इसे समझने और उसकी काट खोजने का काम और तेज हो पाया है।
पीपीई किट का भ्रष्टाचार भी पूरी दुनिया में चर्चा में
आधुनिक जेनेटिक विज्ञान पहले के मुकाबले ज्यादा उन्नत है। इसलिए वैश्विक स्तर पर
चल रहे तमाम प्रयासों की वजह से उसे रोक पाना ज्यादा कारगर साबित होगा।
वैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने पीपीई किट के भ्रष्टाचार पर भी कहा कि इस
किस्म का आचरण ऐसा भ्रष्टाचार है, जो इस संकट की घड़ी मे कतई स्वीकार्य नहीं है।
याद रहे कि भारत में भी इस पीपीई किट में भारी घोटाला होने की सूचनाएं सार्वजनिक हो
चुकी है। इसलिए हरेक को ऐसे भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। जो लोग इस
भ्रष्टाचार के साथ हैं, वे दरअसल भ्रष्टाचार ही नहीं बल्कि पूरी मानव जाति के साथ
अन्याय कर रहे हैं, जो इस संकट की घड़ी में एक अक्षम्य अपराध है।
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