कोयला के कारोबार पर फिर से जांच तेज होने की खबर है। गाहे बगाहे
ऐसी चर्चा अक्सर ही सामने आती रहती है। लेकिन आज तक इस
मामले में असली गुनाहगारों तक कानून के पंजे की पकड़ नहीं होने की
सच्चाई को भी समझ लेना चाहिए। कोयले के कारोबार में अवैध
कारोबार सिर्फ वह नहीं करते, जो रामगढ़ रोड पर साइकिल से कोयला
ढोते नजर आते हैं। इस कारोबार के लिए सिर्फ उन ट्रकों को भी
जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता जो रात के अंधेरे में कोयला उठाते
हैं। सवाल है कि जहां से कोयला उठता है और जहां तक इसकी असली
कमाई की बात है तो जिनलोगों का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है,
अगर यह कमाई उन तक सीमित होती तो सारे के सारे अब तक काफी
अमीर हो चुके होते। लेकिन दरअसल यह कमाई काफी ऊपर तक
पहुंचती है। इसी वजह से जांच प्रारंभ होने के बाद जब इसकी आंच
ऊपर को जलाने लगती है तो अपने आप ही जांच सुस्त पड़ती है और
बाद में यह फाइल रद्दी बन जाती है। अभी की बात करें तो कोयला के
अवैध कारोबार को स्पष्ट तौर पर राजनीतिक संरक्षण मिलता है। इसी
संरक्षण की वजह से कोयला वाले इलाकों में तैनात पुलिस वाले भी
बहती गंगा में हाथ धोने से कतई परहेज नहीं करते। अगर कोई
सरफिरा पुलिस वाला कोयले के अवैध कारोबार को रोकना चाहता
है तो शीघ्र ही किसी दूसरे बहाने से उसका तबादला भी हो जाता है। इन
सच्चाइयों पर से वर्तमान व्यवस्था स्थायी तौर पर पर्दा उठाने का काम
कभी नहीं करती क्योंकि इससे अनेक लोगों का हित जुड़ा हुआ है।
वर्तमान में नक्सलियों को कोयला के अवैध कारोबार से मिलने वाली
लेवी की जांच एनआईए द्वारा की जा रही है।
कोयला के कारोबार की जांच अब तक हर बार रोकी गयी है
यह बता देना प्रासंगिक है कि यह जांच पहले भी हो रही थी। एक खास
मुकाम तक जांच के पहुंचने के बाद अचानक ही जांच से जुड़े एक
एसपी रैंक के अफसर को रातोंरात हटा दिया गया था। जिसके बाद
जांच को फिर से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। अब दोबारा से जांच
हो रही है तो असली मुद्दे को छोड़कर अन्य मुद्दों की तरफ ध्यान केंद्रित
किया गया है। जिस मुद्दे को जांच को रोका गया था, उसमें धनबाद
और दुर्गापुर के दो कारोबारी चर्चा में आ चुके थे। यह सूचना भी शायद
सही है कि इन दोनों के बारे में नक्सलियों का पैसा इनतक पहुंचाने
वालों ने दोनों के नामों और उनके माध्यम से लाभान्वित होने वाले
नेताओं और अफसरों के नामों का खुलासा भी कर दिया था। इसके
पहले भी कोयला के कारोबार में खुलकर हिस्सा लेने वाले कई पुलिस
अफसर पहले से ही चर्चा में रहे हैं। कुछ के खिलाफ अब भी लोकायुक्त
के यहां शिकायत लंबित है। दिक्कत इस बात की है कि आय से अधिक
संपत्ति की जांच का मामला जब फंसता है तो जांच करने वाले अफसर
भी अपनी बिरादरी के लोगों को बचाने में पूरी ताकत लगा देते हैं। इस
वजह से दस्तावेजी सबूत मौजूद होने तथा अन्य परिस्थितिजन्य
साक्ष्यों को नजरअंदाज करने का खेल खुलेआम खेला जाता है। सत्ता
के शीर्ष को हमेशा ही अपने पक्ष में रखने के माहिर लोगों को यह पता
होता है कि किसकी दाल कैसे गलेगी। इसलिए दाल गले उसका
इंतजाम भी उसी तरीके से किया जाता है। वरना आय से अधिक
संपत्ति के मामले में तो अनेक नेता यूं ही बिना जांच के दोषी नजर
आते हैं। खास तौर पर झारखंड की बात करें तो अनेक अफसरों की
जीवन शैली भी उनकी आमदनी से मेल नहीं खाती।
आय से अधिक संपत्ति खुली आंखों से दिख जाती है
आय से अधिक संपत्ति में सबसे बड़ा योगदान इसी कोयला के
कारोबार का लेकिन इन बातों की जांच इसलिए नहीं होती क्योंकि
बहती गंगा में एक साथ सभी हाथ धोने में व्यस्त हैं। कोयले के अवैध
कारोबार में सिर्फ ट्रकों से वसूली जाने वाली लेवी का बंटवारा कैसे होता
है, यह सच भी सामने आ जाए तो बहुत कुछ समझना पानी की तरफ
साफ हो जाएगा। यह कारोबार इसीलिए चलता भी है कि दिहाड़ी
मजदूर जैसे लोग परिश्रम करते रहें और तमाम किस्म की परेशानियां
वे ही झेलें और असली माल दूसरे लोगों की जेबों तक पहुंचता रहे।
यह प्रक्रिया काफी अरसे से चली आ रही है और अनेक ऐसे सफेदपोश
हैं, जिनका जीवन आलीशान तरीके से सिर्फ इसी कोयला की अवैध
कमाई से संचालित हो रहा है। इसलिए वे भी सार्वजनिक तौर पर
कोयला की तस्करी को भले ही गाली दें लेकिन अंदर ही अंदर वे जानते
हैं कि इस धंधे का असली सच क्या है। दूसरे शब्दों में कहें को कोयला
का अवैध कारोबार शायद झारखंड का सबसे संगठित अपराध है। यह
ऐसा कारोबार है, जिसमें हर कोई शामिल हैं और इनमें से कोई भी यह
नहीं चाहता कि यह कारोबार वास्तव में बंद हो।
[…] के मुताबिक इस सरकार में शीघ्र ही तबादले होने वाले […]
[…] हैं और कौन कोयले सा काला […]