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सही दिशा में बढ़ रहा है यह वैश्विक प्रयोग
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वैक्सिन बनाने में सबसे आगे है सीरम इंस्टिट्यूट
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देश के बीस शहरों में एक साथ होगा परीक्षण
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इस साल के अंत तक वैक्सिन आना मुश्किल
प्रतिनिधि
नईदिल्लीः भारत में भी मानव परीक्षण का दौर उस वैक्सिन का होगा, जिसके प्रति दुनिया
को सबसे अधिक उम्मीदें हैं। यह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया जाने
वाला वैक्सिन है। भारत में भी इसके क्लीनिकल ट्रायल के लिए सीरम इंस्टिट्यूट को
जिम्मेदारी सौंपी गयी है। उल्लेखनीय है कि यह दुनिया का अन्यतम बड़ा सीरम उत्पादक
संस्था है। दुनिया के तमाम वैक्सिनों का अधिकांश इसी केंद्र में उत्पादित होता है। सीरम
इंस्टिट्यूट को इस मानव परीक्षण वाले क्लीनिकल ट्रायल की विधिवत अनुमति भी मिल
गयी है। पता रहे कि मानव परीक्षण प्रारंभ करने के पहले जानवरों पर इसका परीक्षण कर
उसके परिणामों की जांच कर ली जाती है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैक्सिन का
दूसरा क्लीनिकल ट्रायल का दौर चल रहा है जबकि तीसरे में भी अनेक स्वयंसेवकों को
वैक्सिन के डोज दिये जा रहे हैं।
वैसे भारत सरकार ने ऑक्सफोर्ड की वैक्सिन के क्लीनिकल ट्रायल के नियमों में आठ
संशोधनों का सुझाव दिया है। इसके तहत यह बताने को कहा गया है कि कहां कहां इसका
क्लीनिकल ट्रायल होने जा रहा है, उसका विस्तृत विवरण उपलब्ध करा दिया जाए।
उपलब्ध जानकारी के मुताबिक पहले चरण में भारत में भी बीस शहरों में इस परीक्षण को
करने की तैयारी कर ली गयी है। इसके तहत पहले चरण में सोलह सौ स्वयंसेवकों को
वैक्सिन के डोज दिये जाएंगे।
|ऑक्सफोर्ड का अनुसंधान एस्ट्राजेनेका के सहयोग से
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के इस वैक्सिन प्रोजेक्ट को एस्ट्राजेनेका कंपनी के सहयोग से
बनाया जा रहा है। इसके परीक्षण के सफल होने पर एक साथ एक खरब वैक्सिन तैयार
किये जाएंगे। खास तौर पर गरीब और विकासशील देशों के लिए यह वैक्सिन सस्ते दर पर
उपलब्ध करा दिया जाएगा। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने पहले ही इस बात को साफ कर
दिया है कि वह इस अनुसंधान को सिर्फ मानव कल्याण के लिए आगे बढ़ा रही है। इसमें
मुनाफे की कोई सोच शामिल नहीं की गयी है। इस अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिक मानते हैं
कि अभी इस वैश्विक संकट की घड़ी में आर्थिक मुनाफा कोई मायने नहीं रखता है। भारत
में व्यापक स्तर पर इसके क्लीनिकल ट्रायल को प्रारंभ करने के पहले ही शोधकर्ताओं
द्वारा बंदरों पर किये गये अनुसंधान की रिपोर्ट भी उपलब्ध करा दी गयी है। इसके तहत
यह वैक्सिन बंदरों में कोरोना वायरस के संक्रमण को विकसित होने से रोकने में सफल
साबित हुई है।
उधर यह जानकारी भी मिली है कि जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा तैयार की जा रही दूसरी
वैक्सिन में भी यही परिणाम निकले हैं। दोनों वैक्सिनों के पशुओं पर हुए प्रयोग के बारे में
विस्तृत वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध करायी गयी है। दूसरी तरफ चीन और रुस में
विकसित होने वाली वैक्सिन की सफलता के दावे तो किये गये हैं लेकिन उनके वैज्ञानिक
आंकड़े उपलब्ध नहीं कराये गये हैं। इन सभी में अनुसंधान अभी मानव परीक्षण के अलग
अलग दौर में जारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि ऑक्सफोर्ड और अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना
क्लीनिकल ट्रायल के तीसरे दौर में हैं जबकि अन्य कंपनियां पहले अथवा दूसरे दौर का
क्लीनिकल ट्रायल कर रही हैं।
भारत में भी एजेंसी का चयन उसकी क्षमता के अनुरुप
विशेषज्ञों ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि इस तीसरे चरण के परीक्षण के आंकड़ों के
विश्लेषण में कमसे कम कुछ महीने लग सकते हैं। सारा कुछ स्पष्ट होने और इंसानों पर
इस्तेमाल के लायक पाने जाने के तमाम आंकड़ों को नये सिरे से देख लेने के बाद ही उस
वैक्सिन को इंसानों के प्रयोग के लायक घोषित किया जा सकता है। इसलिए सारा काम
पूरा करने में यह काल बीत सकता है। यानी जो भी वैक्सिन अनुसंधान में सफल पायी
जाती है, उसके वृहद उत्पादन में अगले वर्ष के प्रारंभ तक का समय लग सकता है। यानी
इस साल के अंत तक वैक्सिन का आना संभव नहीं है। दूसरी तरफ रुस में विकसित की जा
रही वैक्सिन के बारे में यह दावा किया गया है कि इस माह के मध्य तक उसे अपने यहां
परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर अनुमति मिल सकती है। अगर यह दावा सही है तो सितंबर
महीने तक रुस का यह वैक्सिन पूरी दुनिया में उपलब्ध हो जाएगा। यूं तो चीन ने भी
अपनी वैक्सिन के सफल होने का दावा किया है लेकिन अब दुनिया को चीन के दावों पर
भरोसा नहीं हो पा रहा है। लेकिन रुस की वैक्सिन के बारे में इतना ही बताया गया है कि
दूसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल में सफल होन के बाद ही तीसरा चरण प्रारंभ होता है। उस
तीसरे चरण के बारे में अब तक रुस ने कोई जानकारी नहीं दी है।
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