-
हताहतों की संख्या चीन की तरफ और अधिक
-
करीब छह घंटे तक चलता रहा संघर्ष
-
चीन की पूरी सीमा पर सेन्य सतर्कता
-
वायुसेना भी युद्ध के हमले की तैयारी में
विशेष प्रतिनिधि
नईदिल्लीः चीन को समझ में यह बात आ गयी कि यह 1962 वाली भारतीय सेना नहीं है।
हमलावर होने के बाद भी जब भारतीय सैनिक भी उसी तेवर में आ गये तो नुकसान दोनों
तरफ का हुआ है। फर्क सिर्फ इतना है कि भारत ने अपनी सेना के जवानों की शहादत को
खुले तौर पर स्वीकार किया है। दूसरी तरफ चीन ने अपने आंतरिक परेशानियों की वजह
से इस खबर को दबाने का काम किया है। सेना के प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से जो सूचनाएं
यहां तक पहुंची है, उसके मुताबिक असली हताहतों की संख्या और भी बढ़ सकती है।
वीडियो में देखिये इसी बात को अच्छी तरह सुन भी लीजिए
फिलहाल तो भारतीय सैनिकों में से बीस के मारे जाने और कुछ के लापता होने की सूचना
है। दूसरी तरफ घटना को देखने वालों को मानना है कि चीन की सेना के 45 से अधिक
जवान और अफसर या तो मारे गये हैं अथवा घायल हुए हैं। दोनों ही तरफ से गोलियां नहीं
चली है। चीन की तरफ से पत्थर और तार बंधे डंडों से हमला किये जाने के बाद भारतीय
सेना ने भी उसे उसी की भाषा में जवाब दिया है। दरअसल भारतीय सेना को फिर से यह
समझने में चूक हो गयी थी कि वार्ता में सहमति बन जाने के बाद भी चीन की तरफ से
अचानक ऐसी कार्रवाई हो सकती है। दूसरी तरफ कुछ कूटनीतिक विशेषज्ञ यह राय रखते
हैं कि हो सकता है कि चीनी सैनिकों की यह कार्रवाई चीन के अंदर मची उथल पुथल का
नया नमूना हो।
नाथूला पास के युद्ध में भी चीन पराजित हो चुका है
चीन की समझ में यह बात परसों रात के बाद पूरी भारत चीन सीमा पर दिख रही हैं, जहां
पहली बार उसे भारतीय सेना की मौजूदगी साफ साफ दिख रही है। खास तौर पर जहां को
लेकर बार बार चीन की समझ में जो उसका इलाका है, वह अरुणाचल प्रदेश अब चीन के
लिए सरदर्द बना नजर आ रहा है। अत्यधिक कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले तमाम
इलाकों में भारतीय तोपखाना की उपस्थिति में उसे नजर आ रही है। चीन के वायु सैनिक
भी आसमान से चीन की सीमा के निकट बने भारतीय वायुसेना का अड्डों पर हवाई युद्ध
की तैयारियों को भांप रहे होंगे। लेकिन कारगिल के पास बने इलाकों पर भारतीय वायुसेना
का अड्डा भी चीन के लिए बहुत बड़ा सरदर्द है।
चीन को समझ में आ रही है कि भारत अब पीछे नहीं हटेगा
गालवान घाटी में हाथापायी के दौरान अधिक मौते पत्थर खिसकने से सैनिकों के ठंडे पानी
में गिर जाने की वजह से हुई है। दूसरी तरफ भारतीय सेना शारीरिक ताकत में जब भारी
पड़ गये तो चीन की तरफ से भी अनेक सैनिक खाई में गिर गये अथवा धक्कामुक्की के
दौरान गिरा दिये गये हैं। समुद्र तल से करीब पंद्रह हजार फीट की ऊंचाई पर दरअसल चीन
के एक अस्थायी शिविर के टेंट को हटाने को लेकर प्रारंभ हुई कहासुनी इतनी भयानक
मार-पीट में तब्दील हो गयी। इस शिविर को हटाने पर दोनों देशों के सैन्य उच्चाधिकारियों
के बीच हुई बैठक में सहमति बन गयी थी। इसी वजह से ऐसा भी माना जा रहा है कि चीन
की सेना के अंदर भी राष्ट्रपति जि जिनपिंग का प्रभाव शायद तेजी से घटता चला जा रहा
है। सेना के भीतर भी अनुशासन की घोर कमी हो गयी है और यह परिस्थिति चीन के अंदर
किसी विस्फोट को जन्म दे सकता है।
भारत की सैन्य शक्ति अब चीन को घुसकर मारने की
घटना के बारे में जो प्रत्यक्षदर्शियों की रिपोर्ट पहुंची है उसके मुताबिक छोटी सी भारतीय
टुकड़ी पर अचानक हमला कर देने के बाद यह क्रम लगातार बढ़ता ही चला गया। पहले से
ही सतर्क दोनों देशों की तरफ से सेना का जमावड़ा भी बढ़ता चला गया। कड़ाके की ठंड के
बीच नदी के पानी में गिरने की वजह से अधिकांश लोग इसी मौसम के शिकार हो गये।
यहां की मारपीट में हाथापायी के अलावा डंडे और कांटी लगे डंडों का अधिक इस्तेमाल हुआ
है, जिसकी वजह से लोग अधिक घायल हुए और तापमान की वजह से उनपर इन चोटों का
मारक असर हुआ। करीब छह घंटे तक लगातार हंगामा चलता रहा और रात करीब 12 बजे
दोनों तरफ के उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप से मामला शांत हुआ है। लेकिन इस बीच मौके
की नजाकत को भांपते हुए भारतीय सेना ने पूरे चीन सीमा पर खुद को साफ तौर पर युद्ध
की तैयारियों में खड़ा दर्शा दिया है। इस तैयारी को दर्शाने का सीधा अर्थ है कि चीन की
समझ में यह बात आ जाए कि यह वर्ष 1962 वाली भारतीय सेना नहीं है।
[subscribe2]
[…] याद होगा कि हमारी मुलाकात सिर्फ 1962 में ही नहीं हुई थी। उसके पांच साल बाद […]
[…] […]
[…] राईजिंग स्टार कोर की जमीनी स्तर पर सैन्य तैयारियों का समीक्षा […]
[…] पर अड़ा हुआ है। लिहाजा भारतीय सेना भी चीन की सेना के सामने डटी हुई है। […]
[…] पंद्रह दिन और कड़ाके की ठंड के बीच किसान अब भी मोर्चे पर डटे हुए […]
[…] से निर्वहन किया । सन् 1962 में चीनी आक्रमण के विरूद्ध संसद […]