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गर्भ जांच की पट्टी जैसा ही काम करेगा
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कोरोना के संपर्क में आकर प्रतिक्रिया होगी
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एन 95 मास्क का भी दोबारा इस्तेमाल हो सकेगा
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वायरस के करीब आते ही रंग बदलेगा मास्क का स्टीकर
राष्ट्रीय खबर
रांचीः कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक अभी एक नये किस्म के अनुसंधान में
जुटे हुए हैं। इस काम में आंशिक सफलता मिलने की वजह से शोध दल काफी उत्साहित
है। वे मुंह में लगाये जाने वाले मास्क में महज एक स्टीकर लगाने वाले हैं, जो कोरोना
वायरस के संपर्क में आते ही अपना रंग बदल लेगा। यह स्टीकर कुछ उसी किस्म का है,
जैसा कि महिलाओं के गर्भधारण के लिए इस्तेमाल होने वाले स्ट्रीप में होता है। इसमें
सिर्फ रंग बदलने से ही स्थिति का पता चल जाया करता है। वर्तमान में कोरोना जांच की
जो पद्धति है वह न सिर्फ कठिन हैं बल्कि उसमें हर प्रकार के संसाधन भी बहुत अधिक
लगते हैं। शोध दल का मानना है कि यह स्टीकर मास्क को लगाने का खर्च महज कुछ सेंट
( अमेरिकी पैसा) का होगा। साथ ही यह कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए भी
अधिक कारगर सिद्ध होगा। इस किस्म का मास्क बनाने वाले शोधकर्ताओं ने बताया कि
यह तकनीक कुछ वैसी ही है जैसे मकान में आग लगने के सेंसर होते हैं। आग लगने के
सेंसर धुआं का एहसास होते ही खतरे का साइरन बजा देते है। मास्क में लगाया जाने वाले
स्टीकर भी कुछ ऐसा ही होगा। जो कोरोना वायरस का संकेत पाते ही अपना रंग बदल
लेगा। इस किस्म के स्टीकर युक्त मास्क से नियमित कोरोना संक्रमण की जानकारी
मिलते रहेगी और उसकी मदद से कोरोना संक्रमण को अधिक फैलने के पहले ही रोका जा
सकेगा। वर्तमान में एक परेशानी यह भी है कि कौन व्यक्ति कैसे कोरोना संक्रमण की
चपेट में आया, उसके बारे में अब कुछ भी पता नहीं चल पा रहा है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की यह विधि काफी सस्ती भी होगी
अब मास्क में रंग बदलने वाले स्टीकर होने से तुंरत ही उसका पता लगेगा और संक्रमण
को और फैलने से रोका जा सकेगा। अमेरिका के नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ हेल्थ के 13
लाख डॉलर की परियोजना का यह भी एक हिस्सा है, जिसमें कोरोना की त्वरित पहचान
करने की कोशिशें की जा रही हैं। एनआइएच ने इस पूरी परियोजना को रैडएक्स- रैड नाम
दिया है। सॉन डियागो के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफसर जेस्सी जोकेर्स्ट ने इस
बारे में कहा कि मास्क पहनना अभी कोरोना से बचाव का एक अनिवार्य हिस्सा है।
इसलिए अगर मास्क में ही ऐसे स्टीकर लगा दिये जाएं तो पहनने वाले के अपने बारे में
संक्रमण की तुरंत पता चल जाएगा। इससे संक्रमण को लोग अपने स्तर पर ही रोकने में
भी कामयाब हो जाएंगे। वरना अब तक लोगों को खुद के संक्रमित होने की जानकारी जब
तक मिलती है तब तक वे बहुत लोगों तक यह संक्रमण फैला चुके होते हैं। इसके लिए
किसी भी मास्क पर यह जांच स्टीकर लगाने की व्यवस्था की जा सकती है। इस स्टीकर
में प्रोटिन से प्रतिक्रिया देने वाले रसायन का लेप लगाया जाएगा। इस लेप को प्रोटीसीस
कहा जाता है। सार्स कोव 2 के वायरस के संपर्क में आते ही यह रासायनिक प्रतिक्रिया
करने की वजह से रंग बदल लेता है। मास्क पहनने वाला व्यक्ति अपने घर लौटने पर खुद
इसकी जांच कर समझ सकता है कि वह दिन भर में कोरोना के संक्रमण में आया है अथवा
नहीं।
एक तरल यौगिक के संपर्क से पता चलेगा कोरोना संक्रमण का
इस स्ट्रीप को जांचने के लिए एक रसायन की शीशी भी साथ रहेगी। इसके बूंद स्ट्रीप पर
डालते ही अगर यह पट्टी रंग बदल ले तो समझा जाएगा कि मास्क के साथ स्टीकर को
लेकर चलने वाला कोरोना के संपर्क में आ चुका है। यानी कोई भी व्यक्ति अपने घर पर
बिना किसी अतिरिक्त सुविधा के यह जांच नियमित कर सकता है। कुल मिलाकर यह
वैसी ही विधि है, जिसके माध्यम से महिलाएं अपने घर में ही गर्भधारण का पता लगाती
हैं। वैज्ञानिक उस स्ट्रीप को बडे बड़े रोल में उत्पादित करना चाहते हैं। इससे लागत भी कम
हो जाएगी और हर स्टीकर की कीमत महज कुछ सेंट की होगी, जो किसी भी व्यक्ति की
जेब की पहुंच के दायेर में होगा। अधिक भीड़ वाले इलाकों में जाने वालों के लिए यह एक
रक्षा कवच के जैसा होगा कि अधिक बीमार होने के पहले ही संबंधित व्यक्ति को अपने
संक्रमण का पता चल जाएगा। इस स्ट्रीम को बनाने और उसके परीक्षण में प्रोफेसर
विलियम पेन्नी, प्रोफसर लुइस लॉरेंट और रॉब राइट जैसे वैज्ञानिक जुड़े हुए हैं। इसके साथ
ही प्रोफसर जोकरेस्ट और प्रोफसर यींग शिरले इस पर भी काम कर रहे हैं ताकि एन 95
मास्क को भी दोबारा प्रयोग में लाया जा सके। प्रारंभिक दौर में उन्हें इस कोशिश में
कामयाबी मिल चुकी है। एन 95 मास्क को फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाये जाने की
स्थिति में कई किस्म की परेशानियों और मास्क संबंधी कमी से मुक्ति मिल जाएगी।
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